राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : सप्रे मैदान के लिए जिद
07-Jun-2020 6:13 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : सप्रे मैदान के लिए जिद

सप्रे मैदान के लिए जिद

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के सबसे पुराने सप्रे स्कूल मैदान को छोटा करने का विरोध हो रहा है। इसके बावजूद शहर के मेयर एजाज ढेबर इसको पूरा करने में खासी दिलचस्पी दिखा रहे हैं, इससे कई तरह के सवाल भी खड़े हो रहे हैं, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि वे इस मुद्दे पर किसी को विश्वास में लेने के पक्ष में भी दिखाई नहीं देते। इस मसले पर एक टीवी चैनल को दिया गया इंटरव्यू तो यही साबित कर रहा है। उनके इंटरव्यू का एक हिस्सा सोशल मीडिया में जमकर वायरल हो रहा है, जिसमें वे यह कहते हुए दिखाई दे रहे हैं कि वे इस वार्ड के पार्षद हैं और उन्हें नहीं लगता कि इस विषय में किसी से कुछ भी पूछने की जरुरत है। लेकिन वे शायद भूल रहे हैं कि उन्हें पार्षद तो जनता ने ही बनाया है और वार्ड की जनता को विश्वास में लेना उनका पहला दायित्व है। खैर, यह तो सियासत की रीति है कि चुनाव के समय जनता ही जनार्दन होती है लेकिन चुनाव जीतने के बाद पांच साल के लिए जनार्दन का अता-पता नहीं होता। लगता है कि रायपुर के मेयर भी जनता जनार्दन को भूल गए हैं, तभी तो वे कह रहे हैं कि उन्हें किसी से पूछने की जरुरत नहीं। यह उनका अभिमत हो सकता है, लेकिन दानी स्कूल, डिग्री कॉलेज और सप्रे स्कूल राजधानी रायपुर की पहचान है। इसमें कोई शक नहीं कि शहर के बीचों-बीच स्थित इस मैदान पर हर किसी की नजर है। जब भी कोई सत्ता में काबिज होता है, तो सबसे पहला प्रोजेक्ट यही होता है। इस बार भी लोगों को आशंका है कि इसके व्यवसायिक उपयोग के लिए मैदान को छोटा किया जा रहा है। सिविल सोसायटी और खेल संगठन इसका विरोध कर रहे हैं, लेकिन मेयर का रुख देखकर तो लगता नहीं कि वे समझौता करने के मूड में है। कुछ लोग इसके ऐतिहासिक महत्व के आधार पर मैदान को बचाने की कोशिश कर रहे हैं। उनका कहना है कि यहां देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु की सभा हुई थी। यहीं पर आपातकाल के बाद विजयलक्ष्मी पंडित की ऐतिहासिक सभा हुए थी. यहीं से अटल बिहारी वाजपेयी ने अलग छत्तीसगढ़ राज्य की घोषणा की थी। ऐसे तमाम कारण गिनवाए जा रहे हैं, लेकिन इसके साथ ही दूसरे कारण भी है, जिसके कारण खेल मैदान को बचाना जरुरी है। अब देखना यह है कि प्रशासन ऐतिहासिक और व्यवहारिक बातों को महत्व देता है या फिर व्यवसायिक कारणों को। लेकिन कई सियासतदारों का अनुभव है कि ये पब्लिक है, जो सब जानती है और पांच साल बाद पूरा हिसाब चुकता जरुर करती है। ऐसे में जनता जनार्दन को भूलना भारी भी पड़ सकता है।

कितने पास कितने दूर

कोरोना के खौफ के बीच विष्णुदेव साय ने शनिवार को प्रदेश भाजपा अध्यक्ष दायित्व संभाल लिया। मगर उनके पास सभी को साथ लेकर चलने की चुनौती है। इसका नजारा उस वक्त देखने को भी मिला, जब अध्यक्ष पद के दावेदार रहे रामविचार नेताम, अजय चंद्राकर और नारायण चंद्राकर, साय के शपथ ग्रहण समारोह से दूर रहे। हालांकि साय खुद अध्यक्ष बनने के इच्छुक नहीं थे। पार्टी का एक बड़ा खेमा इस बात से भी खफा है कि साय की अनिच्छा के बावजूद उन्हें मुखिया बना दिया गया।

सुनते हैं कि पार्टी के असंतुष्ट नेताओं ने अब खुद को अलग-थलग करने की रणनीति बनाई है। रायपुर-दुर्ग सहित कई जिलों के अध्यक्षों के साथ-साथ प्रदेश पदाधिकारियों की नियुक्ति होनी है। असंतुष्ट नेताओं ने तय किया है कि पदाधिकारियों की नियुक्ति को लेकर अपनी तरफ से कोई राय नहीं देंगे। पार्टी जिसे चाहे, नियुक्त करें। रायपुर और दुर्ग जिले में अध्यक्ष की नियुक्ति असंतुष्ट नेताओं के अडऩे के कारण अटक गई थी।

अब तय हो गया है कि नियुक्तियों में संगठन में हावी धड़ा जो चाहेगा वह होगा। देखना यह है कि सरकार के खिलाफ सडक़ की लड़ाई में असंतुष्ट नेता पूरी क्षमता से साथ देते हैं अथवा नहीं। मगर यह साफ है कि विष्णुदेव साय के लिए वर्ष-2008 के मुकाबले काफी कठिन है। उस समय भाजपा की सरकार थी, तब सबका साथ मिल रहा है। लेकिन इस बार विपक्ष में होने के बावजूद अपने दूर होते जा रहे हैं।

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