राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : कंधों पर हल्के बोझ का फायदा...
16-Jun-2020 8:04 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : कंधों पर हल्के बोझ का फायदा...

कंधों पर हल्के बोझ का फायदा...

गांवों में किसान नए बैल को हल में जोतने के पहले लकड़ी का एक ढांचा बनाकर उसके गले में पहना देते हैं ताकि उसे गर्दन पर बोझ ढोने की आदत हो जाए। यह बात जिंदगी में हर दायरे में लागू होती है, और किसी भी किस्म का असल बोझ आने के पहले लोगों पर उसके एक हिस्से का बोझ डालकर उसे ढोने की आदत डाल देनी चाहिए।

सरकार में प्रशासन की बुनियादी बातों को देखें तो अच्छा प्रशासन यह कोशिश करता है कि किसी अफसर के कलेक्टर बनने के पहले उसे कम से कम एक म्युनिसिपल का कमिश्नर बनने का मौका मिल जाए जिससे वह शहरी कामकाज समझ सके। इसके अलावा कम से कम एक जिला पंचायत का सीईओ बनने मिल जाए ताकि वह पंचायत और ग्रामीण विकास का काम समझ ले। यह भी एक किस्म से जिले के हल में जोतने के पहले गर्दन पर बोझ डालने जैसा रहता है ताकि गर्दन उसकी आदी हो जाए। यह बात पुलिस की अलग-अलग कुर्सियों पर लागू होती है, और एक अच्छा शासन अफसरों के एसपी रहते हुए उन्हें अलग-अलग किस्म के दो-तीन जिलों में काम करने का मौका देता है ताकि वे शहरी और ग्रामीण, औद्योगिक और आदिवासी, सभी किस्म के जिलों के काम को समझ लें, ताकि आईजी बनने के बाद उन्हें अपनी रेंज के हर तरह के जिले का तजुर्बा रहे। लेकिन ये पुरानी परंपराएं अब खत्म हो चुकी हैं, और अब अफसर अपनी कोशिश से अधिक कमाऊ या अधिक महत्वपूर्ण जिलों से परे कोई और ट्रेनिंग नहीं चाहते। एक वक्त ऐसा था कि जब अजीत जोगी कलेक्टर रहते हुए सिर्फ कलेक्टर ही रहे, और उन्होंने कभी सचिवालय या संचालनालय में कोई काम नहीं किया। इसी तरह राज्य पुलिस सेवा से आगे बढ़े हुए एक वक्त के रायपुर के सीएसपी रूस्तम सिंह आईजी बनने तक कभी फील्ड से बाहर तैनात नहीं रहे, कभी पुलिस मुख्यालय या किसी दफ्तर में काम नहीं किया। जोगी कलेक्टर रहते हुए ही राज्यसभा चले गए थे, और रूस्तम सिंह आईजी रहते हुए ही राजनीति में चले गए, और भाजपा के विधायक बनकर मध्यप्रदेश सरकार में मंत्री बन गए थे।

सांसद निधि बिन सब सून...

कोरोना संकट की वजह से सांसद निधि टालने के फैसले से ज्यादातर सांसद नाखुश हैं। कांग्रेस के सांसद तो खुले तौर पर ऐतराज जता चुके हैं, अब भाजपा सांसद भी दबी जुबान से इसका विरोध कर रहे हैं। कुछ भाजपा सांसदों ने पार्टी फोरम में इस बात को रखा भी है। भाजपा सांसद इस बात से दुखी हैं कि एक साल तक वेतन में 30 फीसदी की कटौती होगी, इसके अतिरिक्त भी पीएम केयर्स में एक माह का वेतन दे चुके हैं। इन सबके चलते अपने कार्यालय का खर्चा निकालने में भी मुश्किलें आ रही है।

छत्तीसगढ़ जैसे प्रदेशों के भाजपा सांसद ज्यादा दुखी हैं, जहां भाजपा की सरकार भी नहीं है। सांसद, सांसद निधि से हर साल 5 करोड़ तक का काम अपने संसदीय क्षेत्र में करा पा रहे थे, वे अब नहीं करा पाएंगे। सांसद निधि का पैसा तुरंत जारी हो जाता है। इसलिए विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में सांसद निधि से काम कराने की होड़ मची रहती थी। कमीशन भी अच्छा खासा बन जाता था।

एक पुराने सांसद के नजदीकी रिश्तेदार, जो उनका कार्यालय संभालते थे। वे कार्यालय के खर्चे के नाम से कमीशन लेने में किसी तरह का संकोच नहीं करते थे। इन सबके बावजूद सांसदों की ग्रामीण इलाकों में पकड़ भी बनी रहती थी। अब जब निधि को ही स्थगित कर दिया गया है, तो सांसदों की पूछ परख कम हो गई है। सुनते हैं कि आगामी संसद सत्र के दौरान कुछ भाजपा सांसद, इस बात को केन्द्रीय मंत्रियों के सामने में रखने की सोच रहे हैं। देखना है कि केन्द्र सरकार-पार्टी उनकी दिक्कतों पर क्या कुछ कदम उठाती है।

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