राजपथ - जनपथ
बुरे वक्त में एक अच्छा बाजार
बुरे वक्त में भी कई अच्छे धंधे पनप सकते हैं। जिस शहर में मच्छर अधिक हैं वहां मच्छर मारने के कई तरह के सामान खूब बिकते हैं। किसी धर्म के लोगों को हिंसा लग सकते हैं, लेकिन सभी धर्मों के कारोबारी ऐसे सामानों का छोटा या बड़ा धंधा करने लगते हैं। अभी कोरोना का हमला हुआ तो तरह-तरह के मास्क बिकने लगे। मुम्बई में सुशांत राजपूत नाम का अभिनेता गुजरा, तो उसकी शोहरत को आनन-फानन भुनाते हुए विशेष श्रद्धांजलि देते हुए मास्क बन गए, और सडक़ों पर बिकने लगे। जब कभी कोई अगला मैच होगा, तो हो सकता है कि कोकाकोला, या पेप्सी जैसी कोई कंपनी अपने इश्तहार के मास्क मुफ्त बांटने लगे, या आज भी दुकानों पर कई सामानों के साथ उनके इश्तहार वाले मास्क आ भी गए हों, तो भी पता नहीं।
कारोबार का उसूल यही है, कि जरूरत न हो तो जरूरत खड़ी की जाए, लोगों को खरीदने के लिए उकसाया जाए, नई-नई फैशन, नए रंग, और नए डिजाइन, इन सबसे लोगों को खरीदने के लिए मजबूर किया जाता है। अब मास्क, सेनेटाइजर के अलावा बाजार में ऐसे दूसरे सामान तेजी से घुस गए हैं जो किसी दरवाजे को बिना छुए खींचकर या धकेलकर खोलने-बंद करने के काम आते हैं, और किसी हैंडिल को बिना छुए वे काम किए जा सकते हैं। यह तो आज चीन के साथ तनातनी बहुत अधिक चल रही है, वरना वहां पर वुहान की लैब से, या वुहान के पक्षी बाजार से कोरोना निकलने के पहले ही उससे निपटने के सामान बनना शुरू हो चुके होंगे। आज भारत में बहिष्कार का खतरा न हो, तो ऐसे दर्जनों सामान गली-गली बिकने लगेंगे जो कि चीन से आए हुए होंगे।
वैसे भी कोरोना कोई जल्दी जाने वाला नहीं है, और ऐसे में कागजों को वायरसमुक्त करने के सामान आ चुके हैं, मोबाइल फोन को वायरसमुक्त करने के उपकरणों के इश्तहार धड़ल्ले से चल रहे हैं, और कोरोना हैरान हो रहा है कि उसकी वजह से मंदा धंधा अब फिर किस तरह नए-नए सामान लेकर खड़ा हो रहा है। यह देश की विज्ञापन एजेंसियों के लिए सही समय है कि वे मास्क एडवरटाइजिंग के काम पर फोकस करें, बिहार का चुनाव इसमें सबसे पहला बाजार बन सकता है। कुल मिलाकर लोगों को मास्क मुफ्त में मिलें, इतना तो हो ही जाना चाहिए। फिलहाल दूल्हा और दुल्हन के लिए तरह-तरह के खूबसूरत मास्क भी बाजार में आ रहे हैं, ऐसे एक ताजा मास्क के जोड़े पर एक पर मिस्टर लिखा है, और एक पर मिसेज।
चीनी सामानों को जलाने का मौसम
हर साल एक-दो बार चीनी सामानों के बहिष्कार का दौर हिन्दुस्तान में आते ही रहता है। लोग चीन के खिलाफ अपनी भावनाओं को दिखाने के लिए उसके बहिष्कार को एक अच्छा जरिया मानते हैं, वहां के राष्ट्रपति की चार तस्वीरें, वहां के चार झंडे, और चीन के बने कुछ खराब हो चुके सामान सडक़ों पर आग लगाकर चीनी कैमरों से ही नजारे की तस्वीर खींचकर चारों तरफ फैलाई जाती है।
अब क्या सचमुच ही दुनिया में ऐसे किसी एक बड़े देश का बहिष्कार हो सकता है जो कि सबसे बड़ा मैन्युफेक्चरिंग-हब हो? हिन्दुस्तान के बिजलीघरों में से बहुत से चीन के बने हुए हैं, और उनकी बनी बिजली नेशनल ग्रिड में जाती है। इस तरह चीनी बिजलीघरों की बिजली देश के हर घर-दफ्तर में पहुंच रही है। तो क्या हिन्दुस्तान बिजली का इस्तेमाल बंद कर सकता है? इसी तरह मोबाइल फोन के अधिकतर हैंडसेट चीन के बने हुए हैं, अधिकतर कम्प्यूटर या उनके हिस्से चीन के बने हुए हैं, फोटोकॉपी की मशीनें चीन की बनी हुई हैं, दूरदर्शन से लेकर दूसरे निजी चैनलों तक कैमरे और माईक, प्रसारण के उपकरण, स्टूडियो की लाईट, ये सब चीन के बने हुए हैं। भारत में बनने वाली बहुत सारी दवाईयों के रसायन चीन से आते हैं। घरेलू मशीनों से लेकर गाडिय़ों तक में चीन के बने हुए हिस्से लगते हैं। क्या सचमुच ही इन सबका बहिष्कार हो सकता है, या फिर सिर्फ प्रतीक के लिए, प्रचार के लिए लोग बहिष्कार का ऐसा फतवा देते हैं? और दूसरी बात यह कि अगर भारत चीन के सामान बुलाना बंद करता है, तो मेक इन इंडिया का पूरा अभियान ठप्प पड़ जाएगा, क्योंकि चीनी पुर्जों के बिना अधिकतर सामान भारत में भी पूरे नहीं बन पाएंगे, और सारा काम-धंधा ही ठप्प हो जाएगा। आज भारत चीन के पुर्जों, चीन के कच्चे माल, और चीन की टेक्नालॉजी के बिना ठप्प हो जाने की हालत में है। इसलिए बहिष्कार के फतवों की तस्वीरें कुछ दिन खींचकर अगर यह भड़ास कम होती है, और अपना खराब हो चुका चीनी मोबाइल जलाने वाले लोगों को खुद के लिए शहीद का दर्जा पाने का हक मिलता है, तो वैसा ही हो जाए।