राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : मिजाज का असर काम पर भी...
20-Jun-2020 8:00 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : मिजाज का असर काम पर भी...

मिजाज का असर काम पर भी...

लोगों का मिजाज अलग-अलग होता है। कुछ काम ऐसे रहते हैं जिन्हें एक खास किस्म के मिजाज की जरूरत पड़ती है, और अगर वहां किसी दूसरे मिजाज के लोगों को बिठा दिया गया तो बर्बादी की कोई सीमा नहीं होती। सरकारों में बैठे हुए लोग उसे बेहतर समझ सकेंगे कि सीएनजी के लोगों को अगर योजना मंडल में बिठा दिया गया, तो वे हिसाब-किताब और प्रक्रिया की खामियां निकालने के काम में लग जाएंगे, और आगे की कोई योजना ही नहीं बन पाएंगी। इसी तरह अगर किसी योजनाशास्त्री को सीएजी में बिठा दिया जाए, तो बारीकी से ऑडिट होना खत्म ही हो जाएगा।

सामाजिक आंदोलनों से जुड़े हुए लोगों का पूरा परिवार अगर सामाजिक आंदोलन से जुड़ा हुआ न हो, तो घर के भीतर भी बवाल होते रहते हैं। एक सोशल एक्टिविस्ट के घर पर किसी ने कुछ जोर देकर कहा कि खाने में नमक कुछ कम डलना चाहिए, तो परिवार के सामाजिक कार्यकर्ता सदस्य ने कहा कि घर का खाना किसी एक की मर्जी से नहीं बन सकता, सबकी बात सुननी चाहिए। गनीमत यही कि एक बैनर बनवाकर बाप के खिलाफ धरने पर नहीं बैठ गए।

कुछ समझदार लोग होते हैं तो वे इस बात का ध्यान रखते हैं कि ऐसे जागरूक और सक्रिय लोगों को न उलझा जाए जिनका कि काम ही ऐसे मुद्दों पर संघर्ष करना है। नतीजा यह होता है कि कानूनी अधिकार के लिए लड़ाई लडऩे वाली लड़कियों की शादी की बात चलती है, तो लोग तुरंत माफी मांग लेते हैं कि हमारे घर बहू भेजना चाहते हो, या हमारे खिलाफ कोई वकील खड़ी करना चाहते हो?

लोगों के मिजाज में उनकी राजनीतिक विचारधारा भी इतनी हावी हो जाती है कि वामपंथी सोच के लोग दक्षिणपंथी सोच के परिवारों से रिश्ते भी करना नहीं चाहते, और इसका ठीक उल्टा भी लागू होता है कि संघ की सोच वाले परिवार कम्युनिस्टों से बचकर चलते हैं। लोगों को पता नहीं याद है या नहीं कि अपने कॉलेज के दिनों में अटल बिहारी वाजपेयी जिस लडक़ी से मोहब्बत करते थे, और शादी करना चाहते थे, उसके पिता कम्युनिस्ट थे, और ट्रेड यूनियन वाले थे। उन्होंने संघ की शाखा वाले अटलजी के लिए शुरू से ही मना कर दिया था, और वह शादी कभी हो ही नहीं पाई, यह अलग बात है कि जिंदगी का आखिरी बहुत लंबा हिस्सा अटलजी ने इसी महिला के साथ गुजारा था, जो उस वक्त शादीशुदा हो चुकी थीं।

इसलिए लोगों को मिजाज को भूलकर कोई काम नहीं करना चाहिए। जिस तरह का मिजाज हो उसी किस्म के काम पर लगाना चाहिए। मजदूरों के हक के लिए लडऩे का जिसका इतिहास हो, उसे कोई समझदार कंपनी कर्मचारियों के मामले देखने की ड्यूटी पर नहीं लगाती।

घड़ा फोडऩे एक सिर मिला...

छत्तीसगढ़ में एक पखवाड़े के भीतर आधा दर्जन हाथी अलग-अलग जगहों पर, अलग-अलग वजहों से मारे गए, और एक बीमार का इलाज जारी है। इसमें आखिरी के तीन हाथी तो दो दिनों के भीतर गुजरे और उसके भी पहले से वन विभाग में यह हल्ला शुरू हो गया था कि पीसीसीएफ (वन्यजीवन) अतुल शुक्ला का तबादला कर दिया जाए। यह एक अलग बात है कि उनके तबादले में हाथियों की मौत का एक संयोग या दुर्योग जुड़ गया, उनके तबादले की पूरी तैयारी पहले से कर ली गई थी क्योंकि वे विभाग के कई तौर-तरीकों को निभा नहीं पा रहे थे। जो लोग उन्हें हटाना चाहते थे उनको हाथियों की मौत हथियार के रूप में मिल गई, और आनन-फानन उन्हें सरकारी जुबान की लूपलाईन में भेज दिया गया। जबकि इस कुर्सी पर आने के बाद से अतुल शुक्ला ने जानवर या जानवर के हाथों इंसानों की मौत, सभी मामलों में पूरे प्रदेश में जमकर दौड़-भाग की थी। और अगर बिजली के अवैध तारों की वजह से दो-दो, तीन-तीन हाथी मर रहे हैं, लोग जहर देकर मार रहे हैं, या हाथी रास्ते के दलदल में फंसकर मर रहे हैं, इनमें से किसी भी बात की जिम्मेदारी रायपुर में बैठे किसी वन अधिकारी की नहीं हो सकती, और यह बात सरकार भी अच्छी तरह जानती थी। लेकिन बड़े-बड़े सिरों वाले हाथियों की इतनी मौत का घड़ा किसी बड़े सिर पर ही फूटना था, इसलिए बिना राजनीतिक संबंधों वाले ईमानदार अफसर अतुल शुक्ला को एकदम उपयुक्त सिर माना गया।

अब जानवरों और इंसानों के बीच छत्तीसगढ़ में जो कठिन लड़ाई चल रही है, उसके चलते इस पर काबू पाने के लिए नरसिंह राव नाम के अफसर को लाया गया है जिनके नाम में इंसान भी है, और जानवर भी, और किसी बात का असर हो या न हो, नाम के असर से हो सकता है कि टकराव और मौतें घट जाएं।

कोरोना की दहशत

राजधानी में कोरोना पांव पसार रहा है। राजभवन के आसपास और सीएम हाऊस के बाहर एक सुरक्षाकर्मी भी कोरोना पॉजिटिव पाए गए हैं। सरकारी दफ्तरों में भी कोरोना का खौफ देखने को मिल रहा है। स्वास्थ्य विभाग की जिस महिला अफसर को कुछ दिन पहले तक फ्रंटलाइनर कोरोना वारियर्स के रूप में प्रचारित किया जा रहा था, वह अपने दफ्तर के एक कर्मचारी की कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आने की सूचना मिलते ही आनन-फानन दफ्तर छोडक़र निकल गयीं।

कुछ इसी तरह की स्थिति दो दिन पहले महानदी भवन मंत्रालय में भी बन गई थी। आरोग्य सेतु एप में मंत्रालय के आसपास कोरोना संक्रमित होने का अलर्ट दिखाया गया। यह देखते ही लंच तक कई अधिकारी-कर्मचारी दफ्तर छोडक़र निकल गए। मंत्रालय में वे लोग ही बच गए थे, जिन्होंने एप नहीं देखा था। या फिर वे जिन्हें इस अलर्ट पर भरोसा नहीं था या खुद को सुरक्षित महसूस कर रहे थे। दूसरी तरफ, कोरोना संक्रमण से रोकथाम के लिए कई दफ्तरों में सैनिटाइजर टनल लगाए गए हैं। अरण्य भवन, उद्योग भवन के टनल तो खराब भी हो गए। उद्योग भवन स्थित एक निगम के दफ्तर का हाल यह है कि वहां सभी को सैनिटाइजर उपलब्ध कराने का जिम्मा एक बाबू को दिया गया है। बाबू के पहुंचने के बाद ही सबको हाथ साफ करने के लिए सैनिटाइजर मिल पाता है। तब कहीं जाकर दफ्तर का काम शुरू हो पाता है।

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