राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : कहां मलाई बाकी है, कहां खुरचन भी नहीं..
24-Jun-2020 9:01 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : कहां मलाई बाकी है, कहां खुरचन भी नहीं..

कहां मलाई बाकी है, कहां खुरचन भी नहीं..

निगम-मंडलों की सूची जल्द जारी हो सकती है। कुछ दावेदार तो पसंदीदा निगम-मंडल छांट रहे हैं। एक दावेदार ने निगम-मंडलों का अध्ययन कर पाया कि ज्यादातर निगमों की माली हालत बेहद खराब है। कुछ तो अपने कर्मचारियों को वेतन तक नहीं दे पा रहे हैं। यह कहा जा रहा है कि पूर्व में काबिज लोगों ने इतने गुलछर्रे उड़ाए कि कुछ निगम-मंडल तो दिवालिया होने के कगार पर है। 

आरडीए, हाऊसिंग बोर्ड और पर्यटन बोर्ड को ही लीजिए, यहां बैठे लोगों ने इतने पैसे बनाए कि एक-दो तो खुद की कॉलोनियां बनवा रहे हैं। आरडीए का हाल अब यह है कि पुरानी प्रापर्टी बेचकर किसी तरह कर्ज अदा कर पा रही है। आरडीए की खराब माली हालत को देखते हुए विभाग ने हाऊसिंग बोर्ड में विलय का प्रस्ताव दे दिया है। हाऊसिंग बोर्ड के चेयरमैन का पद काफी मलाईदार रहा है। पर मौजूदा हाल यह है कि बोर्ड के पास अपने कर्मचारियों को किसी तरह वेतन दे पा रहा है। 

पर्यटन बोर्ड का हाल भी कुछ ऐसा ही है। प्रदेश के तकरीबन सभी पर्यटन पूछताछ केन्द्रों को बंद कर दिया गया है। संविदा-दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों को निकाल दिया गया है, जो काम कर रहे हैं, उन्हें भी समय पर वेतन नहीं मिल पा रहा है। ब्रेवरेज कॉर्पोरेशन को लेकर अब  धारणा बदल गई है। पहले मलाईदार माने जाने वाले इस कॉर्पोरेशन में नियुक्ति के लिए काफी हसरत रहती थी। 

पिछली सरकार में तो एक मीसाबंदी ने कॉर्पोरेशन के चेयरमैन का पद पाने के लिए नागपुर से जुगाड़ लगवाया था। पद पाने के थोड़े दिन बाद ही मीसाबंदी पुरानी मोटरसाइकिल से महंगी गाड़ी में घूमते देखे जाने लगे। मगर अब कॉर्पोरेशन के लिए वैसा आकर्षण नहीं रह गया है। सरकार ने शराब खरीदी के लिए अलग से मार्केटिंग कारपोरेशन का गठन कर दिया है। इससे कॉर्पोरेशन का काम सिमटकर रह गया है। यानी सारी मलाई अब मार्केटिंग कंपनी में है। 

कुछ तो मानते हैं कि ऐसे निगम-मंडलों में तो उपाध्यक्ष-सदस्य के पद से बेहतर तो एल्डरमैन के पद हैं। एल्डरमैन का कम से कम मानदेय तो तय है। अलबत्ता, नागरिक आपूर्ति निगम, छत्तीसगढ़ भवन एवं अन्य संनिर्माण कर्मकार कल्याण मंडल को लेकर क्रेज अभी भी बाकी है। निगम भले ही घपले-घोटालों के लिए कुख्यात रहा है, मगर सालाना टर्नओवर 5 हजार करोड़ से अधिक का है। कुछ इसी तरह कर्मकार कल्याण मंडल में अभी भी पांच सौ करोड़ योजनाओं के मद में रखे हैं। ऐसे में इन्हीं दोनों पद के लिए ज्यादा खींचतान देखने को मिल रही है। 

जोगी की मोदी की यादें... 

पूर्व सीएम अजीत जोगी के निधन के बाद जोगी पार्टी के प्रमुख  नेताओं की भाजपा से नजदीकियां चर्चा में हैं । पूर्व सीएम के निधन के बाद मरवाही में उपचुनाव होना है। इन सबके बीच दिवंगत पूर्व सीएम के पुत्र अमित जोगी ने श्री जोगी के निधन पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के डॉ. रेणु जोगी को लिखे पत्र को फेसबुक पर साझा किया है। 

अमित ने लिखा कि आदरणीय मोदीजी के प्रति मेरे पिताजी की क्या भावनाएं थीं, उसकी अभिव्यक्ति पापा की कोरोनाकाल में लिखी और जल्द ही प्रकाशित होने वाली आत्मकथा से मैं उन्हीं के ही शब्दों में कर रहा हूं:

मैं इसे भी अपना सौभाग्य मानता हूं कि जब मैं कांग्रेस का मुख्य प्रवक्ता था तो मेरे साथ ही भाजपा के दो अत्यन्त वरिष्ठ नेता, वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी और पूर्व केन्द्रीय मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज, भाजपा के मेरे समकालीन प्रवक्ता थे। उन दिनों टेलीविजन के चारों चैनलों में हमारी जोरदार बहस हुआ करती थी पर कई बार एक साथ टेलीविजन स्टूडियो द्वारा भेजी गई कार में हम लोगों को एक साथ आना पड़ता था और डिबेट के पहले और बाद हम लोगों में बड़े अंतरंग पारिवारिक संबंध बन गये थे। मैं इसे श्री नरेन्द्र मोदीजी का बड़प्पन मानता हूं कि उन्होंने प्रधानमंत्री बनने के बाद भी कभी मुझसे यह प्रेम संबंध नहीं तोड़े। वे बड़े सफल और विश्वस्तरीय नेता बन गये हैं और एक ही उदाहरण उनकी उदारता को प्रमाणित करने के लिये पर्याप्त होगा।

जब 2014 में वो प्रधानमंत्री बने तो उसके पहले कांग्रेस पार्टी के बहुत से नेताओं को शासकीय आवास किसी न किसी बहाने से आवंटित किये गए थे। स्वाभाविक कारणों से वे सभी शासकीय आवास के आवंटन निरस्त किये गये और सभी को अपनी अलग से व्यवस्था करनी पड़ी। कांग्रेस संगठन की जवाबदारियों के कारण मुझे दिल्ली में रहना अनिवार्य था और स्थिति ऐसी नहीं थी कि मैं दिल्ली में महंगे किराये के मकान में रह सकूं।

मेरे सौभाग्य और संयोग से उन्हीं दिनों संसद भवन की आउटर गैलरी में मैं अपनी व्हील चेयर चलाता हुआ जा रहा था कि दूसरी ओर से तमाम सुरक्षा कवच से भरे हुये प्रधानमंत्री जी आ रहे थे। दूर से उन्हें देखकर सम्मान देने की दृष्टि से मैंने अपनी व्हील चेयर अत्यन्त किनारे कर ली और उनके निकलने का इंतजार करने लगा। उनकी पैनी नजर दूर से ही मेरे पर पड़ गई और सीधे सुरक्षा कवच को चीरते हुये मेरे पास तक आये और मेरी व्हील चेयर पर अपने हाथों से पकड़कर भरे प्रेम से मेरा और मेरे परिवार का हालचाल पूछा। हम दोनों प्रवक्ताकाल में एक-दूसरे को भाई साहब कहा करते थे। मुझे सुखद आश्चर्य हुआ कि उन्होंने मुझे भाई साहब कहकर मुझसे बातचीत की।

न जाने क्यों मुझे लगा कि मैं आवास के बारे में अपनी कठिनाई उन्हें बताऊं और मेरे मुंह से निकल पड़ा कि भाई साहब, आप प्रधानमंत्री बन गये हैं और मेरे जैसा व्यक्ति आवास के लिये आपके रहते हुये भी दर-दर भटक रहा है। उनके बड़प्पन की पराकाष्ठा थी कि उन्होंने इस संबंध में मुझे कोई आश्वासन नहीं दिया। मुझे लगा कि वे टालकर चले गये। देर शाम मुझे उनके प्रमुख सचिव और सीनियर आईएएस नृपेन्द्र मिश्रा का फोन आया और मुझसे कहा कि प्रधानमंत्रीजी ने उन्हें आदेशित किया है कि तत्काल नार्थ या साऊथ ऐवेन्यू में मेरी सुविधानुसार आवास आवंटित किया जाय। स्वाभाविक रूप से दूसरे ही दिन मनचाहा आवास मिल गया और उसे खाली करने के लिये कोई नोटिस नहीं मिला। ([email protected])

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