राजपथ - जनपथ
हर चीज ताले में रखने जरूरत
स्टेट बैंक ने अपने एटीएम में सेनेटाइजर की शीशी को एक ताले वाले बक्से में रखा है, और बाहर सिर्फ उसकी टोंटी है जिससे सेनेटाइजर निकाला जा सकता है। बिलासपुर के आईजी दीपांशु काबरा ने इस तस्वीर को पोस्ट करते हुए लिखा कि क्या अपने ही नागरिकों से 50 रूपए की बोतल की हिफाजत नहीं हो सकती? तो ऐसे में प्रगति कैसे होगी? उन्होंने सवाल उठाया कि क्या हमें हमारी हिफाजत के नियम मानने के लिए भी लगातार किसी की चौकीदारी की जरूरत है? क्यों यह अनुशासन खुद होकर नहीं आता? इस पर लोगों ने उनसे असहमति भी जताई और एक ने तो नमूने के रूप में एक एटीएम के भीतर छत पर लगे सुरक्षा कैमरे की रिकॉर्डिंग भी पोस्ट की है जिसमें एक व्यक्ति भीतर आता है, सेनेटाइजर की बोतल से हाथ पर निकालकर हाथ साफ करता है, फिर दाएं-बाएं देखकर बोतल को जेब में रखता है, एटीएम का कोई इस्तेमाल नहीं करता, कचरे की टोकरी में थूकता है, और निकल जाता है।
जब लोगों का हाल जरा-जरा सी बात पर इतना खराब है, तो सार्वजनिक सुविधाओं को सुरक्षित कैसे रखा जा सकता है? लोग ट्रेन के पखाने से 25-50 रूपए दाम वाला स्टील का मग्गा चुराने के लिए चेन तक तोडक़र उसे ले जाते हैं। सीट के गद्दे पर से कवर को काटकर ले जाते हैं, और उससे झोले सिलवा लेते हैं। जब लोग की नीयत इतनी खराब हो तो एटीएम में बिना ताले के सेनेटाइजर कैसे रखा जाए?
लेकिन यह बात सिर्फ गरीबों तक सीमित नहीं है। जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे, और लोगों को टीवी, वीसीआर, या कम्प्यूटर जैसे कई सामान विदेश से लौटते हुए बिना कस्टम ड्यूटी लाने की छूट दी गई थी, तब भारत के बहुत से कारोबारियों ने इसे धंधा बना लिया था कि वे हर कुछ हफ्तों में सिंगापुर चले जाते थे, और लौटते में ये सामान ले आते थे। लेकिन यही लोग प्लेन के बाथरूम में रखा गया लिक्विड सोप, यूडी कोलोन, जैसी बोतलों को जेब में भरने के लिए प्लेन में चढ़ते ही बाथरूम की दौड़ लगाते थे। यह हाल देखकर एयरलाईंस ने बोतलों के ढक्कन हटाकर उन्हें रखना शुरू किया। लेकिन हिन्दुस्तानी दिमाग ने आवश्यकता से तुरंत ही आविष्कार को जन्म दे दिया, पिछली बार लाई हुई बोतलों के ढक्कन लेकर लोग जाने लगे, और बाथरूम में घुसते ही बोतलों पर ढक्कन लगाकर उन्हें जेब में रखकर निकलने लगे।
अंतरराष्ट्रीय उड़ानों में जब मुफ्त की शराब बंटती है, तो महंगे मुसाफिरों के बीच भी उसकी छोटी-छोटी बोतलों के लिए जो छीनाझपटी होती है, उसके सामने छत्तीसगढ़ की शराब दुकानों पर होने वाली धक्का-मुक्की भी फीकी पड़ जाती है। अभी कुछ ही महीने हुए हैं जब सोशल मीडिया पर सिंगापुर या मलेशिया जैसे किसी देश का एक वीडियो आया जिसमें एक हिन्दुस्तानी परिवार ने होटल छोडऩे के पहले उस होटल के कमरे से हर सामान को अपने सूटकेस-बैग में भर लिया था, और होटल वालों ने शक होने पर जब उनका सामान गाड़ी से उतरवाकर तलाशी ली, जो जमीन इन सामानों से पट गई थी, परिवार की शर्मिंदगी देखने लायक थी।
आज एटीएम से सेनेटाइजर को उठाकर ले आना कोई बड़ी बात नहीं रहेगी, लोग किसी कॉफीशॉप या किसी रेस्त्रां में लाकर रखे गए शक्कर के पैकेट, या शुगरफ्री के सैशे बेधडक़ जेब में रखकर ले आते हैं। ऐसे देश में सेहत की हिफाजत के लिए रखे गए सामानों के बस ईश्वर ही मालिक हो सकते हैं।
पीए को लेकर दुविधा
सरकार के एक मंत्री की पैंतरेबाजी से उनके पीए परेशान हैं। मंत्रीजी के पीए को सरकारी नौकरी में आए महज तीन-चार साल ही हुए हैं, लेकिन मंत्री के स्टॉफ में आते ही जिस तेज रफ्तार से बैटिंग कर रहे हैं, उससे कई बार मंत्रीजी भी असहज हो जाते हैं। मंत्रीजी ने तीन-चार बार अपने निजी स्टॉफ में नए पीए की पोस्टिंग के लिए नोटशीट भी चलाई थी, लेकिन तकनीकी कारणों से बात आगे नहीं बढ़ पाई।
जीएडी ने मंत्रीजी के प्रस्ताव के अनुरूप पुराने पीए को मूल विभाग में भेजकर नए पीए की पोस्टिंग के लिए फाइल चलाई, तो मंत्रीजी का अलग ही रूख सामने आ गया। मंत्रीजी ने प्रस्ताव रखा कि पुराने को हटाया न जाए, बल्कि स्टॉफ में एक और की पदस्थापना कर दी जाए। निजी स्टॉफ के लिए नियम तय है, उससे अधिक की पदस्थापना नहीं हो सकती है। ऐसे में नए अफसर की पोस्टिंग नहीं हो पा रही है, लेकिन मंत्रीजी की नोटशीट की भनक मिलने के बाद पीए परेशान हैं। उसे अपने साम्राज्य पर खतरा महसूस हो रहा है, और मंत्रीजी हैं कि दुधारू गाय को छोडऩा भी नहीं चाहते।
आरएसएस भूपेश से खुश !
वैसे तो सीएम भूपेश बघेल आरएसएस-परिवार के घोर आलोचक हैं, मगर जिस तरह भूपेश सरकार ने गांवों और गौवंश के संवर्धन के लिए योजनाएं चलाई हैं , उसकी आरएसएस ने जमकर तारीफ की है। ऐसी तारीफ आरएसएस ने शायद ही कभी रमन सरकार की हो।अजय चंद्राकर और भाजपा के प्रवक्ता सरकार की गोबर योजना पर कटाक्ष कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ आरएसएस के बड़े पदाधिकारी बिरसाराम यादव ने न सिर्फ खुले तौर पर योजना को सराहा बल्कि इसे ऐतिहासिक करार दिया।
आरएसएस पदाधिकारियों का मानना है कि इस योजना से गौ-पालकों को रोजगार मिलेगा। आरएसएस की भूपेश सरकार की तारीफ से भाजपा में हलचल मच गई है। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि आरएसएस के ज्यादातर पदाधिकारी पिछली भाजपा सरकार के कामकाज से नाखुश रहे हैं। कुछ समय पहले भोपाल के एक कार्यक्रम में तो मोहन भागवत ने भाजपा सरकार के रहते बस्तर में बड़े पैमाने पर धर्मान्तरण पर हैरानी भी जताई थी। अब जब आरएसएस के लोग कांग्रेस सरकार की तारीफ कर रहे हैं, तो भाजपा में खलबली मचना स्वाभाविक है।