राजपथ - जनपथ
शादी सादगी से करने की मजबूरी
लॉकडाउन के सख्त नियमों के चलते नामी लोगों के यहां की शादियां बिना बाजे-गाजे के सादगी से निपट रही हैं। ये चाहकर भी ज्यादा लोगों को नहीं बुला पा रहे हैं। पिछले दिनों केन्द्रीय मंत्री रेणुका सिंह की बेटी की शादी भी चुनिंदा लोगों के बीच संपन्न हो गई। रेणुका सिंह की बेटी, सहकारिता अफसर पूर्णिमा सिंह, का रिश्ता बिलासपुर के जसवीर सिंह के साथ तीन-चार महीने पहले तय हुआ था। जसवीर भी एकाउंट अफसर हैं।
रेणुका के परिवार की यह पहली शादी थी। लिहाजा, शादी तय करते वक्त दोनों परिवारों को उम्मीद थी कि कोरोना का दौर जल्द ही खत्म हो जाएगा। तब से धूमधाम से शादी की योजना थी और इसकी तैयारी भी चल रही थी। चूंकि रेणुका प्रदेश से केन्द्र में अकेली मंत्री हैं, और उनका संपर्क भी अच्छा खासा है। ऐसे में स्वाभाविक था कि प्रदेशभर से भाजपा-कांग्रेस के नेताओं के अलावा समर्थक शादी में पहुंचते।
मगर देश-प्रदेश में कोरोना का प्रकोप थम नहीं रहा है। इससे बचने के लिए सामाजिक दूरी जरूरी है। ऐसे में केन्द्र और राज्य सरकार ने शादी और अन्य समारोहों के लिए गाईडलाइन जारी की हैं। इसमें यह साफ है कि शादी में दोनों परिवारों को मिलाकर सौ से अधिक लोग शामिल नहीं हो सकते हैं। ऐसे में रेणुका को अपनी लाडली की शादी परिवार के सदस्यों और कुछ करीबी लोगों की मौजूदगी में ही करनी पड़ी। बिलासपुर के एक होटल में आयोजित इस समारोह में पार्टी के नेताओं में सिर्फ तीन प्रमुख नेता, धरमलाल कौशिक, अमर अग्रवाल और पुन्नूलाल मोहिले, ही मौजूद थे।
चर्चाएं कोरोना की तरह...
पिछली सरकार के जो खास अफसर इस सरकार के निशाने पर हैं, उन्हें लेकर अफवाहें कभी कम नहीं होतीं। कब राज्य के कौन से अफसर इन अफसरों से दिल्ली में मिले, यह सुगबुगाहट चलती ही रहती है, इसके अलावा हर कुछ हफ्तों में यह अफवाह भी सामने आती है कि दिल्ली में बसे इन चर्चित अफसरों में से कौन-कौन छत्तीसगढ़ आकर किस-किस अफसर से मिलकर गए। लोग दिन और तारीख, समय और फॉर्महाऊस सभी के साथ जमकर दावा करते हैं, लेकिन कोई भी बात कभी साबित नहीं हो पाई है। इस बीच इतना जरूर हुआ है कि छत्तीसगढ़ में बड़े अफसर, बड़े नेता, और मीडिया में जो लोग अपने को बड़ा या महत्वपूर्ण मानते हैं, वे सब सिमकार्ड वाले फोन पर कॉल करना कम कर चुके हैं, या बंद कर चुके हैं। कुछ समय पहले तक लोग वॉट्सऐप पर बात कर लेते थे, लेकिन अब उससे परे के सिग्नल और टेलीग्राम जैसे मैसेंजर पर कॉल करते हैं। राज्य सरकार और केन्द्र सरकार, दोनों की एजेंसियों पर लोगों का शक रहता है, और जब सरकार पर बैठे हुए बड़े-बड़े ताकतवर लोग वॉट्सऐप पर भी बात करना नहीं चाहते, और जोर देकर किसी एक कंपनी के मोबाइल फोन के एक एप्लीकेशन पर जोर देते हैं, तो लोगों को लगता है कि सचमुच ही खतरा बड़ा है। लेकिन यह खतरा और लोगों की आवाजाही की अफवाहें कोरोना की तरह अदृश्य हैं, जिनकी दहशत बहुत है, लेकिन कन्फर्म कुछ भी नहीं है।
दिल के बहलाने को खयाल...
भारत सरकार ने चीनी कंपनियों के बनाए हुए 59 मोबाइल एप बंद कर दिए, तो चीन के खिलाफ फतवे देने वाले लोगों को बड़ी खुशी हुई, और लोगों ने एक-दूसरे को बधाई देना शुरू कर दिया। सोशल मीडिया पर कुछ इस तरह का माहौल बन गया है कि मानो 59 सिरों वाले रावण को मार डाला गया है। बहुत से लोगों ने नेहरू को भी याद किया कि नेहरू ने कभी ऐसा हौसला नहीं दिखाया। ऐसा लिखने वाले लोग इस बात को भूल गए कि नेहरू 1964 में गुजर चुके थे, और उस वक्त चीन के साथ कोई कारोबारी रिश्ते भी नहीं थे, और कम से कम उस वक्त का हिन्दुस्तानी बाजार और कारोबार चीन के उस किस्म के चंगुल में नहीं था, जैसा कि आज है। आज भारत की दवा कंपनियों ने केन्द्र सरकार से गुहार लगाई है कि अगर उनका कच्चा माल चीन से आने में इसी तरह का अड़ंगा लगते रहा, तो वे दुनिया के दूसरे देशों से उन्हें मिले दवा के ऑर्डर समय पर पूरे नहीं कर सकेंगे। हिन्दुस्तान का जो असली कारोबार है, वह चीन के कच्चे माल, और चीन के पुर्जों पर टिका हुआ है। वहां से खरीदते कम हैं, उसमें जोडक़र उसे कई गुना अधिक दाम का सामान बनाया जाता है। एक चीनी को भूखा मारने के पहले चार हिन्दुस्तानी भूखे मरेंगे, तो जाकर चीन का बहिष्कार हो पाएगा। मोबाइल एप के बहिष्कार से चीन का तो कुछ नहीं जा रहा, हिन्दुस्तान के करोड़ों लोगों को यह मानसिक संतुष्टि मिल रही है कि उन्होंने दुश्मन को निपटा दिया। अब मानसिक संतुष्टि तो और भी कई किस्म के नशे से मिल सकती है। अपनी-अपनी पसंद की बात है। चीन के प्रतीक के रूप में ड्रैगन नाम के एक आग उगलते अजगर किस्म के प्राणी को दिखाया जाता है? हिन्दुस्तानी बहिष्कार अब तक लपटें उगलते इस ड्रैगन पर पानी की एक बूंद भी नहीं है कि जिससे ड्रैगन की मुंह की लपटें ठंडी हो जाएं।