राजपथ - जनपथ
कितने बरस लगेंगे राष्ट्रपति के पास?
आखिरकार कुलपतियों की नियुक्तियों का अधिकार वापस लेने से खफा राज्यपाल ने विश्वविद्यालय संशोधन विधेयक को मंजूरी देने से मना कर दिया है और विधेयक को राष्ट्रपति को भेजने का फैसला ले लिया है। राज्यपाल के पास ऐसा करने का अधिकार भी है। मगर इससे सरकार के लिए मुश्किलें पैदा हो गई है। राष्ट्रपति को भेजे जाने वाले विधेयकों की मंजूरी में लंबा वक्त लगता है और पिछले अनुभवों को देखते हुए कुछ लोगों का अंदाजा है कि शायद ही कांग्रेस सरकार अपने कार्यकाल में नए प्रावधानों के मुताबिक कुलपतियों की नियुक्ति कर पाए।
पिछली सरकार के पहले कार्यकाल में सहकारिता संशोधन विधेयक पारित हुआ था। राज्यपाल कुछ प्रावधानों से असहमत थे और फिर विधेयक मंजूरी के लिए राष्ट्रपति को भेजा गया। विधेयक केन्द्रीय गृहमंत्रालय के माध्यम से राष्ट्रपति को भेजा जाता है। दिलचस्प बात यह है कि सहकारिता विधेयक की फाइल दो बार बेहद संवेदनशील समझे जाने वाले केन्द्रीय गृहमंत्रालय में गुम हो गई। इसके बाद यहां से दोबारा फाइल भेजी गई। सहकारिता विभाग के एक अफसर की इसमें ड्यूटी लगाई गई थी।
ज्यादा कुछ न होने के बावजूद विधेयक को राष्ट्रपति से मंजूरी मिलने में पूरे दो साल लगे। इस बार का मामला थोड़ा ज्यादा पेचीदा है। भाजपा के लोग भी राज्यपाल के रूख से सहमत हैं। केन्द्र में भाजपा गठबंधन की सरकार है। ऐसे में इस विधेयक को मंजूरी मिलने में लंबा वक्त लग सकता है। क्योंकि इसके लिए समय-सीमा तो तय होती नहीं है। ऐसे में कुछ लोग सोच रहे हैं कि नए प्रावधानों के मुताबिक सरकार कुलपतियों की नियुक्ति नहीं कर पाएगी, तो वे पूरी तरह गलत भी नहीं है।
दरअसल यह विवाद कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति पद पर एक ऐसे पुराने पत्रकार को राज्यपाल द्वारा मनोनीत करने से शुरू हुआ जिनका कुल तजुर्बा संघ-परिवार के अख़बारों का है. संघ-विरोधी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के रहते राजभवन से ऐसा हो गया इस पर सभी हक्का-बक्का हैं।
सब कुछ एक कारोबारी के हाथ!
हिन्दुस्तान में चीनी मोबाइल एप्लीकेशन प्रतिबंधित करने के बाद जियो-मीट नाम का एक ऐसा वीडियो कांफ्रेंस एप्लीकेशन भी सरकारी इस्तेमाल से बाहर होते गया है जिस पर लोगों की गोपनीयता चुराने का आरोप है। अभी इसकी जांच चल ही रही है कि केन्द्र और राज्य सरकारों ने इसकी जगह दूसरे एप्लीकेशन शुरू कर दिए हैं। अब मुकेश अंबानी की कंपनी जियो ने ऐसी कांफ्रेंस के लिए एक एप्लीकेशन बाजार में उतार दिया है और कम से कम केन्द्र सरकार उसे बढ़ावा दे रही है। राज्य सरकारों के मन में अंबानी के मोदी से घरोबे को लेकर यह संदेह हो सकता है कि उनकी बातें गोपनीय न रहें। लेकिन जियो जितने आक्रामक तरीके से काम बढ़ा रहा है, उसने वॉट्सऐप के मुकाबले उसी शक्ल का, उसी चेहरे-मोहरे का एक नया एप्लीकेशन जियो-चैट भी उतार दिया है। देश में सबसे सस्ता डेटा देने की वजह से जियो के पास सबसे अधिक ग्राहक वैसे भी हैं, और अधिकतर लोग डेटा की स्पीड की वजह से, कवरेज और सस्ते पैकेज की वजह से जियो पर जा चुके हैं। कुल मिलाकर एक कारोबारी के अलग-अलग औजार पर सारे लोग चले जा रहे हैं, और हर किसी की निजी और कारोबारी, सरकारी और गैरसरकारी जानकारी इसी कंपनी के कम्प्यूटरों पर रहेगी, आगे की बात लोग अपने मन से समझें। हाल ही में दुनिया भर में यह हल्ला हुआ है कि चीन की मोबाइल कंपनियां वहां की सरकार को सारी जानकारी देती हैं।
हमलावर उपासने का नाजुक मामला...
निगम-मंडल में नियुक्ति आज-कल में हो सकती है। कुछ नामों को लेकर अंदाज भी लगाए जा रहे हैं। मगर इस बात की प्रबल संभावना है कि कांग्रेस के मीडिया विभाग से सबसे ज्यादा लोगों को निगम-मंडल में पद मिल सकता है। इनमें शैलेष नितिन त्रिवेदी, किरणमयी नायक, रमेश वल्र्यानी, सुशील आनंद शुक्ला के अलावा आरपी सिंह का नाम चर्चा में है। सुनते हैं कि पहली सूची में सभी नाम भले ही न आए, लेकिन देर सवेर इन्हें पद मिलने की पूरी संभावना है। दूसरी तरफ, भाजपा नेता सच्चिदानंद उपासने ने यह कहकर हलचल मचा दी है कि सूची में वही नाम दिखाई देंगे जिन्होंने धनबल खर्च किया है। उन्होंने एसएनटी, आरजीए, एसए और वीएस नाम वालों की तरफ इशारा भी किया है।
उपासने ने भले ही पूरा नाम लिखने की हिम्मत नहीं दिखाई है, लेकिन उनके इशारों ने कांग्रेस नेताओं को कुपित कर दिया है। अब बारी कांग्रेस नेताओं के जवाब देने की है, जो कि उपासने के दबदबे वाली लोकमान्य गृह निर्माण सोसायटी में गड़बड़ झाले और उनके ब्रेवरेज कॉर्पोरेशन के अध्यक्ष पद पर रहते अपने घर के एक हिस्से को शराब दूकान को किराए पर देने के मामले को उठा सकते हैं। भले ही धनबल से पद लेने का आरोप उपासने पर साबित न हो पाए, लेकिन लोकमान्य गृह निर्माण समिति में गड़बड़ी की फाइल आज भी जिंदा है। ऐसे में सक्रियता दिखाने के चक्कर में उपासने मुश्किल में घिर सकते हैं।