राजपथ - जनपथ
बहुत हो गए, कुछ बाकी हैं...
निगम-मंडलों की एक और सूची जल्द जारी हो सकती है। इसमें वजनदार सीएसआईडीसी, ब्रेवरेज कॉर्पोरेशन, वित्त आयोग, पर्यटन बोर्ड और श्रमिक कर्मकार कल्याण मंडल में नियुक्तियां हो सकती हैं,और नगर निगमों में एल्डरमैन की नियुक्ति होनी है। कुल मिलाकर ढाई-तीन सौ नेताओं के लिए अभी और गुंजाइश बाकी है। कांग्रेस विधायक की कुल संख्या 69 है। जिनमें से 49 को पद मिल चुका है। इससे अधिक की संभावना अब नहीं रह गई है। वैसे भी राज्य में इससे पहले इतनी बड़ी संख्या में विधायकों को पद नहीं मिले थे।
खास बात यह है कि महासमुंद जिले के सभी चार विधायकों को लालबत्ती मिल गई है। विनोद चंद्राकर और द्वारिकाधीश यादव, संसदीय सचिव बनाए गए। जबकि देवेन्द्र बहादुर सिंह को वन विकास निगम का चेयरमैन और किस्मतलाल नंद को प्राधिकरण का उपाध्यक्ष बनाया गया है। पिछली बार भाजपा विधायकों की कुल संख्या ही 49 थी। यानी सरकार अब और मजबूत स्थिति में आ गई है।
सीनियर विधायक धनेन्द्र साहू, सत्यनारायण शर्मा और अमितेश शुक्ल पहले ही पद लेने से मना कर चुके थे। सत्यनारायण के करीबी महेश शर्मा को श्रम कर्मकार मंडल का सदस्य बनाया गया है। इसी तरह अमितेश के करीबी सतीश अग्रवाल को भी इसी मंडल में जगह दी गई है। अलबत्ता, धनेन्द्र के किसी करीबी को ही पद मिलना बाकी है। सुनते हैं कि धनेन्द्र के बेटे प्रवीण को किसी निगम की चेयरमैनशिप दी जा सकती है।
वोरा का खाता खाली
दिग्गज कांग्रेस नेता मोतीलाल वोरा के समर्थकों को निगम-मंडलों में जगह नहीं मिल पाई है। सिर्फ उनके बेटे अरूण वोरा को भंडार गृह निगम का चेयरमैन बनाया गया है। जबकि वोरा के करीबी रमेश वर्ल्यानी, सुभाष शर्मा सहित कई और नेताओं को पद मिलने की संभावना जताई जा रही थी। जिससे वोरा समर्थकों में निराशा है।
दुर्ग के प्रभाव क्षेत्र से खुद सीएम और चार मंत्री आते हैं। यहां के नेताओं को संसदीय सचिव और निगम-मंडल में भी पद मिल चुका है। ऐसे में दुर्ग से वोरा समर्थक नेताओं को पद मिलने की संभावना बेहद कम हो गई है। हालांकि वर्ल्यानी को पद मिलने की संभावना अभी बरकरार है। पेशे से आयकर विक्रय सलाहकार वर्ल्यानी की रूचि वित्त आयोग को लेकर ज्यादा है। वैसे भी सिंधी समाज को प्रतिनिधित्व मिलना बाकी है। इससे परे सिंधी साहित्य अकादमी का गठन हो चुका है। ऐसे में यहां वर्ल्यानी सहित किसी सिंधी नेता को पद मिलने की पूरी संभावना है।