राजपथ - जनपथ
नेताजी भांजा न बचा पा रहे..
पिछली सरकार में एक संस्थान के मुखिया रहे नेता के भांजे को कुछ दिन पहले दिल्ली पुलिस पकडक़र ले गई। नेताजी ने भांजे को हिरासत से बचाने की भरपूर कोशिश की और भाजपा के बड़े नेताओं से मदद भी मांगी। किंतु कुछ नहीं हुआ।
सुनते हैं कि नेताजी के भांजे का हवाला का कारोबार है। एक व्यापारी जो कि चीन से सामान मंगाते हैं, उन्होंने कुछ भुगतान हवाला के जरिए किया था। हाल के दिनों में चीन के साथ संबंध तनावपूर्ण हैं। ऐसे में चीन से आयातित सामानों की काफी जांच-पड़ताल हो रही है। अब जांच का दायरा बढ़ गया है, तो नेताजी के भांजे भी हत्थे चढ़ गए। नेताजी को दुख इस बात का है कि पार्टी के लोग भी मुसीबत में साथ नहीं दे रहे और छिटक गए हैं।
कुछ तेज संसदीय सचिव
सरकार ने संसदीय सचिवों की नियुक्ति तो कर दी है। मगर ज्यादातर को अपने विभाग के प्रमुख अफसरों से मेल-मुलाकात का मौका तक नहीं मिल पाया है। दो संसदीय सचिव काफी तेज निकले। आदिवासी इलाके के एक संसदीय सचिव ने तो लॉकडाउन के बीच एक निगम के दफ्तर में अपने लिए कमरा तैयार करवा लिया है।
लॉकडाउन के चलते मंत्रालय-सचिवालय और निगम के दफ्तर भले ही बंद हैं, लेकिन संसदीय सचिव नियमित अपने कक्ष में बैठते हैं। वे अफसरों की मीटिंग भी लेते हैं। संसदीय सचिव राजनीति में आने से पहले ठेकेदार थे। वे निर्माण कार्यों की बारीकियों से परिचित हैं। भले ही संसदीय सचिवों को फाइल पर हस्ताक्षर करने का अधिकार नहीं है, लेकिन उनके विभाग के मंत्री ने उन्हें फ्री हैंड दे रखा है। यही वजह है कि अनिच्छा के बावजूद अफसरों को संसदीय सचिव को फाइल का अवलोकन कराना पड़ रहा है।
दूसरे संसदीय सचिव को तो राज्य बनने के बाद से पिछली और वर्तमान सरकार में नियुक्त सभी संसदीय सचिवों से ज्यादा तेज माना जा रहा है। उनका रूतबा ऐसा है कि पहले दिन ही विभाग के सीनियर अफसर उनके आगे-पीछे होते देखे गए। संसदीय सचिव की सक्रियता से मंत्री के स्टाफ के लोग असहज दिख रहे हैं।