राजपथ - जनपथ
कोरोना को दुहने वाले
खबर है कि सरकार निजी अस्पतालों को कोरोना के इलाज के लिए फीस निर्धारित कर पाने में विफल रही है। स्वास्थ्य विभाग चाहता था कि कोरोना के इलाज के लिए ज्यादा फीस न हो, इसके लिए अस्पताल प्रबंधनों से चर्चा भी हुई थी, लेकिन बात नहीं बन पाई। हाल यह है कि निजी अस्पताल एक दिन के इलाज के नाम पर प्रति मरीज 25 हजार रूपए तक वसूल रहे हैं।
दूसरी तरफ, एम्स जैसे संस्थान में बिना कोई शुल्क लिए कोरोना मरीजों का बेहतर इलाज हो रहा है। बाकी सरकारी अस्पतालों में भी मुफ्त इलाज हो रहा है। एम्स में भर्ती एक मरीज ने नर्सिंग स्टॉफ की तारीफ करते हुए बताया कि सेवाभावी छोटे कर्मचारियों को वे अपनी तरफ से कुछ राशि देना चाह रहे थे, लेकिन उन्होंने लेने से साफ तौर पर मना कर दिया। हाल यह है कि एम्स के कोरोना वार्ड भर चुके हैं। बावजूद मरीजों को और भर्ती करने के लिए प्रबंधन पर काफी दबाव रहता है। प्रदेश और देश के बड़े नेताओं के फोन घनघनाते रहते हैं। इससे प्रबंधन के लोग काफी परेशान देखे जा सकते हैं।
बैस की हसरत बाकी ही है
भाजपाध्यक्ष पद से हटाए जाने के बाद विक्रम उसेंडी की नाराजगी दूर करने की कोशिश हो रही है। उसेंडी की पसंद पर उनके गृह जिले कांकेर में सतीश लाठिया को अध्यक्ष बनाया गया। दिलचस्प बात यह है कि उसेंडी खुद प्रदेश अध्यक्ष रहते अपनी पसंद का अध्यक्ष नहीं बनवा पा रहे थे। उनके करीबी सतीश लाठिया का विरोध इतना ज्यादा था कि जिलाध्यक्ष के चुनाव को ही टालना पड़ा। लाठिया की नियुक्ति को उसेंडी को खुश करने की कोशिशों के रूप में देखा जा रहा है।
भाजपा के संगठन में हावी बड़े नेता अपने जिलेों में अपनी पसंद का अध्यक्ष बनवाने में कामयाब रहे हैं। जशपुर जिले में प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदेव साय की अनुशंसा पर रोहित साय की नियुक्ति की गई। गौरीशंकर अग्रवाल की पसंद पर बलौदाबाजार जिले में सनम जांगड़े की नियुक्ति की गई थी। ऐसे में अब दुर्ग और भिलाई जिलाध्यक्ष पद पर सुश्री सरोज पाण्डेय की पसंद को महत्व मिलने के आसार हैं।
रायपुर शहर और ग्रामीण अध्यक्ष पद के लिए सबसे ज्यादा किचकिच हो रही है। यहां सांसद सुनील सोनी, बृजमोहन अग्रवाल और राजेश मूणत की अपनी-अपनी पसंद है। यही नहीं, त्रिपुरा के राज्यपाल रमेश बैस भी दिलचस्पी ले रहे हैं। बैसजी चाहते हैं कि कम से कम ग्रामीण अध्यक्ष पद पर उनकी पसंद को महत्व मिले। संगठन के कर्ता-धर्ता उनकी राय को नजरअंदाज करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं। भाजपा के एक नेता ने कहा, बैसजी की हसरत का कोई अंत नहीं है. और सारी हसरतें कुनबे के लिए हैं।
यह पुलिस की समझदारी नहीं है...
राखी के मौके पर छत्तीसगढ़ के कम से कम एक जिले राजनांदगांव की सडक़ों पर महिला पुलिस अधिकारी या कर्मचारी उन लोगों को राखी बांधते नजर आईं जो मास्क लगाए बिना सडक़ों पर थे। यह मामला कुछ गड़बड़ था। राखी का रिवाज तो बांधने वाली की अपनी हिफाजत के लिए रहता है कि बंधवाने वाला उसकी रक्षा करेगा। अब यहां जिसने खुद ही मास्क नहीं पहना है, वो खुद लापरवाह है, खतरे में है, वह भला राखी बांधने वाली की क्या हिफाजत करेगा?
यह बात एक दूसरे पैमाने पर भी गलत है कि कोई सामाजिक संदेश देने के लिए सरकारी कर्मचारियों का ऐसा इस्तेमाल किया जाए जो उन्हें खतरे में डाले। डब्ल्यूएचओ और भारत सरकार सहित दर्जनों संस्थाएं ऐसे चार्ट ट्वीट कर रही हैं कि एक व्यक्ति मास्क लगाए, और एक न लगाए, तो उन दोनों के बीच संक्रमण का खतरा कितना है। पुलिस कर्मचारियों को ऐसे संक्रमण के खतरे में डालना किसी तरह ठीक नहीं है। पुलिस छत्तीसगढ़ में अतिउत्साह में ऐसे बहुत से काम कर रही है। कुछ हफ्ते पहले हमने बस्तर में नक्सल मोर्चे पर 7 महीने के गर्भ वाली सुरक्षा कर्मचारी के बंदूक लिए जंगलों में ड्यूटी करने की ‘बहादुरी की कहानियों’ के खिलाफ लिखा था कि यह पुलिस के बड़े अफसरों की गलती है। अब राजनांदगांव, या कुछ और जिलों में भी अगर पुलिस ने ऐसा किया है, तो यह निहायत गलत बात है कि गैर जिम्मेदार लोगों को दो फीट की दूरी से राखी बांधना, और अपने को खतरे में डालना पुलिस का समझदारी का काम नहीं है। पुलिस की नीयत अच्छी हो सकती है, उसकी पहल तारीफ के लायक है, लेकिन यह काम नासमझी और गैरजिम्मेदारी का है।