राजपथ - जनपथ
सोशल मीडिया पर अफसरों की ताकत...
छत्तीसगढ़ के कई आईएएस और आईपीएस सोशल मीडिया पर खूब सक्रिय हैं। इसमें से कई अफसर ऐसे हैं, जिन्हें फील्ड में या मंत्रालय में बड़ी जिम्मेदारी है। फिर भी उनकी सोशल मीडिया, खासतौर पर ट्वीटर पर सक्रियता देखते ही बनती है। अफसर न केवल अपने विभाग से जुड़ी जानकारियों को साझा करते हैं बल्कि सुविचार, जोक्स और व्यक्तिगत गतिविधियों के बारे में लिखते हैं और तस्वीरें शेयर करते हैं। उनकी पोस्ट पर लाइक्स और शेयर भी जमकर होते हैं। खैर, सोशल मीडिया का प्लेटफार्म चीज ही ऐसी है कि इसका नशा चढ़ जाए तो सिर चढक़र बोलता है। इसमें कोई बुराई भी नहीं है। अफसर हुए तो क्या सोशल मीडिया तो सभी के लिए है।
इस पर यहां पर चर्चा करने का कारण ये भी है कि अफसरों के इस शौक से सत्तारूढ़ नेताओं को तकलीफ हो रही है। उनको लगता है कि अफसरों का काम फाइल निपटाना और प्रशासन के कामकाज में ध्यान देने का है। सोशल मीडिया तो प्रचार-प्रसार का माध्यम है। इस पर तो सर्वाधिकार नेताओं का सुरक्षित है। कुछ माननीय तो इसके लिए गाइड लाइन बनाने के पक्ष में है। हालांकि पिछली सरकार में सोशल मीडिया में सक्रियता के कारण कई अफसरों को नुकसान भी उठाना पड़ा था, लकिन वह सोशल मीडिया की वजह से नहीं, उस पर राजनीतिक या विवादस्पद बातें लिखने की वजह से हुआ था । नई सरकार बनने के बाद अफसर कुछ ज्यादा वक्त सोशल मीडिया पर बिता रहे हैं। कोराना काल भी इसकी बड़ी वजह है। अफसर का मेल-जोल काफी कम हो गया है। लिहाजा वे बचे हुए समय का सोशल मीडिया में उपयोग कर रहे हैं। कुछ लोगों को यह बात भी खटकती है कि अफसर पूरे समय सोशल मीडिया पर सक्रिय रहते हैं तो काम कब करते हैं। इसका यह मतलब भी निकाला जा रहा है कि ऐसे अफसर काम पर ठीक से ध्यान नहीं दे रहे हैं। अब मामला कुछ भी हो, लेकिन इतना तो तय है कि अफसरों की सक्रियता ने माननीयों की नींद में खलल डाल दी है।
हकीकत यह है कि बिलासपुर आईजी दीपांशु काबरा अपनी खुद की फिटनेस के बारे में तस्वीरें और वीडियो पोस्ट करके पूरे अमले के सामने रोजाना ही फिटनेस का एक बड़ा चैलेंज पेश करते हैं, जिसकी पुलिस विभाग को बहुत जरूरत है. दूसरी तरफ उन्होंने लॉकडाउन के पूरे दौर में चारों तरफ लोगों की जितनी मदद की, उसकी वाहवाही तो सरकार को ही मिली. एक और अफसर सोनमणि बोरा भी दीपांशु की तरह देश भर के अफसरों से बात करके लौटते मजदूरों की मदद करते रहे. सरकार को सोशल मीडिया और अफसरों की ताकत का आगे भी इस्तेमाल करना चाहिए।
पैसा है तो वैक्सीन लगना शुरू?
कोरोना के इलाज के लिए बाजार में अब तक कोई कारगर दवा नहीं आ पाई है। अलबत्ता देश-विदेश में वैक्सीन का ट्रायल चल रहा है। वैक्सीन को लेकर लोगों में काफी उत्सुकता है। लोगों को उम्मीद है कि अगले दो-तीन महीनों में कोई न कोई वैक्सीन लॉच हो जाएगी। इससे ही बीमारी से बचाव हो पाएगा। देश की तीन कंपनियों और ब्रिटेन की ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा कोरोना वैक्सीन विकसित की जा रही है। भारत में भी सरकारी मंजूरी से इसका चुनिंदा अस्पतालों में मानव परीक्षण चल रहा है। सुनते हैं कि रायपुर के एक बड़े अस्पताल के डॉक्टरों ने अघोषित रूप से वैक्सीन मंगवाकर लगा भी ली है। डॉक्टरों ने किस कंपनी की वैक्सीन लगवाई है, यह साफ नहीं हो पाया है। मगर बताते हैं कि 15 हजार रूपए में अनाधिकृत तौर पर वैक्सीन मिल भी रही है। कोरोना संक्रमण से बचने के लिए कई लोग वैक्सीन के जुगाड़ में लग गए हैं। अब वैक्सीन से फायदा होगा या नहीं, इसका तो अभी परीक्षण ही चल रहा है। लेकिन इससे नुकसान नहीं है यह मानकर लोग लगवाने की कोशिश कर रहे हैं।