राजपथ - जनपथ
दर्ज छलका अमित जोगी के पोस्ट पर...
मरवाही उप-चुनाव में सारा खेल जोगी के इर्द-गिर्द घूम रहा है। कांग्रेस की एक-एक गतिविधि पर निगाह रखना और उस पर पैनी प्रतिक्रिया इसकी एक वजह है, दूसरी वजह उनकी जाति का मामला है। कांग्रेसी मरवाही में उद्घाटन, शिलान्यास में लगे रहे, उस पर अमित जोगी सवाल करके घेरते रहे। इधर खामोशी के साथ उनकी पत्नी के नाम पर नया जाति प्रमाण पत्र बन गया। इसकी भनक भी कांग्रेसियों को पहले नहीं लगी। बीते 20 साल से अजीत जोगी को गैर आदिवासी सिद्ध करने की कोशिश कर रहे संतकुमार नेताम को इसका सबसे पहले पता चला। उन्होंने सितम्बर महीने के आखऱिी सप्ताह में ही इसकी शिकायत कलेक्टर मुंगेली से कर दी थी। नेताम ने इसकी ख़बर खुद से उजागर भी नहीं की। लोगों को पता चला तो उन्होंने शिकायत की पुष्टि पूछे जाने पर की। इधर अमित जोगी सोशल मीडिया का जमकर इस्तेमाल कर रहे हैं। उनका हर एक बयान पहले सोशल मीडिया पर ही आता है। नये जाति प्रमाण पत्र को लेकर उन्होंने एक पोस्ट डाली है जिसे फेसबुक पर ही तकरीबन साढ़े 6 हजार लाइक्स मिल चुके हैं। ज्यादातर प्रतिक्रिया उनके समर्थन में है, उनके प्रति लोगों का कितना प्रेम है दर्शाता है। पर एक यूजऱ की प्रतिक्रिया गौर करने के लायक है। इस पोस्ट में जोगी ने लिखा है कि जब ऋचा जोगी का पैतृक परिवार कम से कम पांच दशकों से अऩुसूचित जनजाति वर्ग से सरकारी नौकरियां करते आ रहा है, तब तो किसी को उनकी जाति की याद नहीं आई। इसी पर एक युवा की प्रतिक्रिया है। इनका प्रोफाइल, स्काउट गाइड होना बता रहा है- वे कहते हैं- यही तो दर्द है साहब, किसी की पीढ़ी-दर-पीढ़ी, दशकों से नौकरी कर रही है और कोई दो वक्त की रोटी के लिये भी मारे-मारे फिरता है...।
कीटनाशक दवा माफिया....
सडक़ पर पुलिस वसूली करती है हमें भ्रष्टाचार दिखाई दे जाता है, सडक़ें खराब मिलती है तो अफसरों को कोसते हैं। पर कई सरकारी विभाग हैं जिनमें बैठे अफसरों की करतूतें परदे के पीछे चलती हैं और आम लोगों को उसकी भनक नहीं लगती। ऐसा ही एक कृषि विभाग है। किसानों ने बीज बोये नहीं कि नकली और अमानक कीटनाशक दवाओं का कारोबार फलने फूलने लगता है। खंभों, ठेलों, दीवालों में इन दवाओं के इश्तेहार पटे रहते हैं। कृषि विभाग के अफसरों की छत्र-छाया में सब होता रहता है। फसल बर्बाद होने से बचाने के लिये हड़बड़ाया किसान अनाप-शनाप कीमत पर दवाईयां खरीदता है। कीमत पर कोई नियंत्रण नहीं। यह बर्दाश्त कर भी लिया जाये तो दवा डालने के बाद फसल से कीड़े खत्म नहीं होते। दुर्ग के एक किसान ने आत्महत्या कर ली। ऐसी ही नकली कीटनाशक दवा डालकर वह लुट गया। अब प्रशासन और कृषि विभाग के अधिकारी उन दुकानों में छापा मारकर, सील कर रहे हैं। इसके पहले उन्हीं की शह पर यह सब खुलेआम बिक रहा था। कृषि विभाग का भारी भरकम विभाग कर क्या रहा था? छत्तीसगढ़ के कृषि विश्वविद्यालयों के विशेषज्ञ क्या कर रहे हैं? लोगों के उपभोग की दवाओं को बेचने की जिस तरह सख्त निगरानी होती है, लोगों का पेट पालने वाले खेतों में डाले जाने वाली दवाओं पर कोई निगरानी करने वाली टीम क्यों नहीं है। इस घटना में दो चार अफसरों को भी सस्पेंड क्यों नहीं किया जाना चाहिये?