राजपथ - जनपथ
किस्सा नेता प्रतिपक्ष का
चर्चा है कि पूर्व मंत्री राजेश मूणत ने रायपुर नगर निगम में भाजपा पार्षद दल के नेता के चयन प्रक्रिया को रोक लगवाकर दिग्गज नेता बृजमोहन अग्रवाल को पटखनी दे दी है। बृजमोहन, सीनियर पार्षद सूर्यकांत राठौर का नाम तो तय करा चुके थे, लेकिन बाद में राजेश मूणत की दबाव में घोषणा रूक गई। भाजपा पार्षद दल के नेता के चयन के लिए पार्टी के अंदरखाने में चली खींचतान की कहानी काफी दिलचस्प है।
पार्टी ने निगम चुनाव के लिए बृजमोहन अग्रवाल को संयोजक बनाया था। तमाम कोशिशों के बाद भी निगम में भाजपा को बहुमत नहीं मिला। इसके बाद से भाजपा पार्षद दल के नेता के चयन के लिए चर्चा चल रही थी। सभापति ने जब भाजपा पार्षद दल से नेता के नाम मांगे, तो पार्टी संगठन ने नाम तय करने के लिए कवायद शुरू कर दी। सुनते हैं कि प्रदेश महामंत्री (संगठन) पवन साय ने हाउसिंग बोर्ड के पूर्व चेयरमैन भूपेन्द्र सिंह सवन्नी को पार्षद दल का नेता चुनने के लिए पर्यवेक्षक नियुक्त किया।
जैसे ही सवन्नी का नाम पर्यवेक्षक के लिए तय किया गया, बृजमोहन खेमे ने इस पर आपत्ति जताई। चर्चा है कि खुद बृजमोहन अग्रवाल ने पवन साय से चर्चा कर सवन्नी को पर्यवेक्षक बनाए जाने पर ऐतराज किया। बृजमोहन की आपत्ति इस बात को लेकर थी कि चुनाव के लिए उन्हें संयोजक बनाया गया, तो पार्षद दल का नेता चुनने के लिए अलग से पर्यवेक्षक क्यों बनाया जा रहा है। बृजमोहन की आपत्ति के बाद पवन साय ने सवन्नी को पार्षद दल की बैठक में आने से मना कर दिया।
फिर बृजमोहन अग्रवाल ने शहर जिलाध्यक्ष श्रीचंद सुंदरानी को पार्षद दल की बैठक बुलाने कहा। श्रीचंद ने बिना देर किए पार्षदों की बैठक बुलाई। पार्षद दल के नेता के लिए तीन प्रमुख दावेदार मीनल चौबे, सूर्यकांत राठौर और मृत्युंजय दुबे थे। राजेश मूणत मीनल, और बृजमोहन सूर्यकांत को पार्षद दल का नेता बनाने के पक्ष में थे। मूणत खेमे ने बैठक के पहले ही पार्षदों के बीच मीनल को नेता बनाने के लिए माहौल बना दिया था। उन्हें श्रीचंद समर्थकों का भी साथ मिला।
बृजमोहन और तीनों विधानसभा के पूर्व प्रत्याशियों की मौजूदगी में पार्षदों से राय ली गई। सुनते हैं कि सबसे ज्यादा पार्षद मीनल के पक्ष में थे। मीनल को नेता बनाने के पक्ष में करीब 15 पार्षदों ने राय दी थी। सात पार्षद सूर्यकांत और बाकी पार्षद मृत्युंजय को नेता बनाने के पक्ष में नजर आए। चर्चा है कि बृजमोहन ने सूर्यकांत का नाम तय कर पार्टी संगठन को इसकी सूचना भेज दी। फिर क्या था, राजेश मूणत ने बिहार फोन लगाकर सौदान सिंह को वस्तु स्थिति की जानकारी दी।
सौदान सिंह ने तुरंत पवन साय को फोन कर नेता प्रतिपक्ष के नाम की घोषणा करने से रोक दिया। बात यहीं खत्म नहीं हुई। नाम की घोषणा अटकी, तो सूर्यकांत राठौर भागे-भागे पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गौरीशंकर अग्रवाल के घर पहुंचे और उनसे सौदान सिंह से बात कर नाम की घोषणा करवाने का आग्रह किया। मगर गौरीशंकर ने हस्तक्षेप करने से मना कर दिया। कहा जा रहा है कि अब नए प्रदेश प्रभारी ही अब इस विवाद को सुलझाएंगे।
कभी सौ फीसदी सही पीएससी हो पायेगी?
सरकार बदलने के बाद बहुत सी चीजें बदली बहुत सी नहीं बदली। जो नहीं बदली उनमें एक है छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग के काम करने का तौर-तरीका। इन 20 सालों में पता नहीं कितने अध्यक्ष और सदस्य बदल गये, अफसर इधर-उधर हो गये पर हर परीक्षा विवाद से घिर जाती जाती है। ताजा मामला पीएससी मेन्स के एग्ज़ाम पर हाईकोर्ट द्वारा लगाई गई रोक का है। हाईकोर्ट में याचिका लगाई गई थी कि पीएससी ने जो मॉडल आंसर जारी किये वे गलत थे।
जिन छात्रों को लगा कि मॉडल आंसर सही होते तो उन्हें मेन्स में बैठने का मौका मिल जाता, वे कोर्ट चले गये। कोर्ट जाने के अलावा छात्रों के पास कोई चारा नहीं है, क्योंकि आयोग ने शिकायतों की त्वरित सुनवाई के लिये कोई आंतरिक प्रक्रिया अपनाई ही नहीं है, जो जल्दी फैसला करे और समय पर परीक्षाओं को सम्पन्न कराना सुनिश्चित करे।
हाईकोर्ट से फैसला पता नहीं कब आये, रोक कब हटे पर इस बीच गंभीरता से तैयारी कर परीक्षा देने को तैयार बैठे विद्यार्थी किस मानसिक संत्रास से गुजर रहे होंगे इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। अब तक सीजीपीएससी की एक भी परीक्षा ऐसी नहीं हुई है जो विवादों से न घिरी हो। प्राय: हाईकोर्ट में उन्हें चुनौतियां दी जा रही हैं। सन् 2008 की पीएससी परीक्षा में सरकार ने अपनी गलती मानी और आखिरी फैसला अब तक नहीं आया। मामला सुप्रीम कोर्ट तक जा चुका है। कई बार तो ऐसा लगता है कि पीएससी के अधिकारी खुद ही ऐसी गलतियों की अनदेखी करते हैं और अदालतों में मामला ले जाने का रास्ता छोड़ देते हैं।
कोरोना हुआ नहीं इलाज हो गया
कोरोना संक्रमण के फैलाव के तौर-तरीके पर नजर रखने वाले जानकार बता रहे हैं कि पहले वायरस का आक्रमण महानगरों में हुआ, फिर नगरों में उसके बाद कस्बों और अब इसका रुख गांवों की ओर है। जांजगीर-चाम्पा जिले में एक ही दिन में कल आये 300 से ज्यादा केस इस दावे की पुष्टि करते हैं। स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता शहरी क्षेत्रों में चरमराई हुई तो है ही गांवों में और बुरी स्थिति है। शहर के लोग लक्षण महसूस होने पर कोविड टेस्टिंग के लिये पहुंच भी जाते हैं पर गांव के मरीज, सेंटर तक पहुंचने और इलाज कराने की जरूरत को नजरअंदाज कर सकते हैं। वे सामान्य सर्दी, खांसी, बुखार की दवा लेकर कोरोना से निपटने का उपाय कर सकते हैं।
इन सब के बीच जांजगीर-चाम्पा में एक अजीब किस्सा हुआ है। उपभोक्ता संरक्षण समिति के एक सदस्य और वहीं पर काम करने वाले स्टाफ को स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारियों ने फोन करके बताया कि उनकी कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आई है। वे दोनों आइसोलेशन पर चले गये। तबियत ठीक लग रही थी फिर भी पूरे अनुशासन से रहे और दवाईयां खाते रहे। इस दौरान इन दोनों में से एक जो एक स्टेनो हैं, उन्होंने अपनी रिपोर्ट ऑनलाइन देखी तो पता चला कि रिपोर्ट तो निगेटिव थी। फिर फोरम के सदस्य ने अपनी रिपोर्ट देखी वह भी निगेटिव थी। अब ये क्या करते। बिना मर्ज के ही दवा ले चुके थे।
बिलासपुर में तो एक मरीज को कोरोना पॉजिटिव बता कर इलाज किया जाता रहा और उसकी मौत भी हो गई। एक और केस में कोरोना मरीज के पॉजिटिव होने का लक्षण था पर उसे सामान्य मरीज बताकर भर्ती कर लिया गया। उसकी भी मौत हो गई। इन लापरवाहियों पर रोक कैसे लगे, स्वास्थ्य विभाग को विचार करना चाहिये।