राजपथ - जनपथ
सरकारी सप्लाई में पिछले ही काबिज !
सत्ता में आने के बाद भी कांग्रेस के लोगों के काम नहीं हो रहे हैं। यह शिकायत हर स्तर पर हो रही है। सरकारी विभागों में सप्लाई हो या फिर टेंडर, पिछली सरकार के करीबी लोगों का दबदबा कायम है। इसका नमूना फर्नीचर सप्लाई के काम में भी देखने मिला। सप्लाई ऑर्डर पाने से वंचित लोगों ने विभागीय मंत्री को अपना दुखड़ा सुनाया, लेकिन कुछ नहीं हुआ। हुआ यूं कि स्कूल शिक्षा विभाग के स्कूलों में विद्यार्थियों के बैठने के लिए फर्नीचर की व्यवस्था करने के निर्देश दिए गए थे। इसके लिए नए सप्लायर उम्मीद से थे, लेकिन तीन-चौथाई से अधिक काम सूरजपुर के एक बड़े सप्लायर ने हथिया लिए।
चर्चा है कि करीब 20 करोड़ का फर्नीचर सप्लाई होना है, इसमें से 18 करोड़ के ऑर्डर सूरजपुर के अग्रवाल उपनाम के इस सप्लायर और उससे जुड़े लोगों को मिल गए। ये सभी बरसों से यही काम करते रहे हैं, और पिछली सरकार के मंत्रियों से तो उनका घरोबा था। सरकार बदलने के बाद इन सप्लायरों की हैसियत नहीं घटी है। विभाग से जुड़े लोग इन सप्लायरों पर इतनी मेहरबानी दिखाई कि सारे ऑर्डर 31 अक्टूबर के पहले जारी कर दिए गए, क्योंकि इन सप्लायरों का रेट कॉन्ट्रेक्ट उक्त अवधि को खत्म होने वाला था। चर्चा तो यह भी है कि एक औद्योगिक जिले में प्रशासनिक मुखिया अपने करीबी सप्लायरों को भी ऑर्डर नहीं दिलवा पाए, क्योंकि जिला शिक्षा अधिकारी ने उन्हें बता दिया कि ऑर्डर जारी किया जा चुका है।
एक अफसर ने बताया कि कांग्रेस पार्टी से जुड़े लोगों को काम इसलिए भी देने से सत्तारूढ़ लोग कतरा रहे हैं कि उनसे कमीशन उतनी आसानी से नहीं माँगा जा सकेगा।
गौठान पर ऐसे फूंका जा रहा बजट
कोई भी सरकारी योजना लागू होती है तो अफसरों की निगाह उसके बजट पर सबसे पहले होती है। ठेकेदारों को कैसे मुनाफा पहुंचाया जाए और उनका अपना कमीशन कैसे बने, इस पर निगाह हो रही है। गौठान योजना में यही बात सामने आ रही है। सरगुजा संभाग के सूरजपुर जिले में एक करोड़ रुपये खर्च कर 10 पंचायतों में गोबर गैस प्लांट लगाए गए। ठेका कम्पनी ने मशीन लगा दी, घरों में कनेक्शन जोड़ दिया। पर अब ये प्लांट बंद पड़े हैं। प्लांट लगाने से पहले आकलन ही नहीं किया गया कि कितना गोबर निकलेगा और कितने घरों तक गोबर गैस पहुंचाई जा सकेगी।
प्लांट के रख-रखाव के लिए भी कर्मचारियों की नियमित रूप से जरूरत है जो कि नहीं हैं । सूरजपुर की सुंदरपुर पंचायत में प्लांट लगा तो उद्घाटन के लिए खाद्य मंत्री और शिक्षा मंत्री भी वहां पहुंचे थे। उन्होंने गोबर गैस से बनाई गई चाय पी। पर उसके बाद प्लांट किस दशा में है न मंत्रियों ने देखना जरूरी समझा न अधिकारियों ने। हालत यह है कि एक करोड़ रुपये खर्च करने के बाद बमुश्किल दस घरों में गोबर गैस पहुंच रही है। प्रदेश में कई गौठान ठीक चल रहे हैं जिनमें वर्मी कम्पोस्ट बनाया जा रहा है, साग सब्जियां उगाई जा रही है पर अधिकांश की हालत खराब है। यही रवैया रहा तो सरकार की करोड़ों रुपये खर्च कर तैयार की गई महत्वाकांक्षी योजना का विफल होना तया है।
ऐसे बदल रहा युवाओं का रुझान
राज्य में 38 इंजीनियरिंग कॉलेज हैं, जिनमें से ज्यादातर प्राइवेट कॉलेज हैं। सीट नहीं भरने के कारण 5 निजी इंजीनियरिंग कॉलेज बंद हो चुके हैं। इसके चलते सीटों की संख्या 15 हजार 626 से घटकर 12 हजार 21 रह गई है। इनमें भी 7 हजार यानि आधे से अधिक खाली चल रहे हैं। इन सीटों के लिये तीसरी बार कोशिश की गई तो सिर्फ 789 छात्रों ने आवेदन भरे। अब आवेदन करने वाले सभी को प्रवेश दिया जाता है तब भी 6 हजार से अधिक सीटें खाली रह जायेंगी। प्रवेश इस माह के अंत तक लिया जा सकता है। हो सकता है चौथी बार भी आवेदन मंगाये जायें लेकिन यह साफ है कि युवाओं की रुचि लगातार इंजीनियरिंग की पढ़ाई में घट रही है। दूसरी तरफ रायपुर के दुग्ध प्रौद्योगिकी महाविद्यालय का आंकड़ा है। यहां पहली ही बार के आवेदन में बी टेक की सारी सीटें भर गई हैं। एम टेक की कुछ सीटें जरूर खाली हैं पर उनके भी अगले चरण में भर जाने के आसार हैं। एक समय था जब इंजीनियरिंग का क्रेज एमबीबीएस की पढ़ाई के बराबर हुआ करता था पर अब रोजगार के अवसर वहां नहीं रह गये हैं। कुछ समय पहले एक आंकड़ा आया था कि 75 फीसदी युवा इंजीनियरिंग डिग्री लेकर भी रोजगार हासिल नहीं कर पाये। डेयरी, पशु, कृषि आदि की पढ़ाई को पहले कमतर आंका जाता था, पर अब युवाओं को रोजगार की संभावना इन्हीं विषयों में ज्यादा दिख रही है।
मेडिकल छात्र के परिवार को न्याय मिलेगा?
मध्यप्रदेश मानवाधिकार आयोग ने नेताजी सुभाषचंद्र मेडिकल कॉलेज जबलपुर के छात्र भागवत देवांगन की आत्महत्या के मामले में मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव, डीन, अधीक्षक आदि को नोटिस जारी कर दिया गया है। मूलत: राहौद जिला जांजगीर-चाम्पा के छात्र भागवत ने 1 अक्टूबर को हॉस्टल के अपने कमरे में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी। रैगिंग के नाम पर उसे लगातार प्रताडि़त किया जाता रहा। इसके पीछे पांच सीनियर छात्रों का हाथ होने की बात सामने आई। तंग आकर भागवत अपने घर राहौद लौट गया था, पर एक माह बाद 25 सितम्बर को वापस जबलपुर लौटा था। राहौद में भी उसके घर पर होने के दौरान उसे अपमानित करने वाले मेसैज मोबाइल पर भेजे जा रहे थे। लौटने के बाद फिर उसे प्रताडि़त किया जाने लगा। मौत के बाद बिलासपुर और जांजगीर-चाम्पा में दोषियों पर कार्रवाई की मांग उठी। अब आयोग ने अपनी नोटिस में जिम्मेदार अधिकारियों से पूछा है कि क्या मृतक छात्र के परिवार को कोई आर्थिक सहायता मुहैया कराई गई? क्या दोषियों के खिलाफ आत्महत्या के लिये उकसाने का अपराध दर्ज किया गया? वैसे आयोग की नोटिस को प्रशासनिक अधिकारी प्राय: अधिक गंभीरता से लेते नहीं हैं फिर भी जिस मामले में अब तक कुछ नहीं हो रहा था, पीडि़त परिवार को न्याय मिलने की दिशा में कुछ तो होगा।