राजपथ - जनपथ
सोनू सूद की छत्तीसगढ़ में मदद
सोनू सूद ने जब लॉकडाउन में फंसे लोगों को घर पहुंचाने में मदद शुरू की तो लोगों ने उनके काम को बहुत सराहा। कई बार संदेह हुआ कि वे इतने सक्रिय इसलिये हैं क्योंकि राजनीति में उतरना चाहते हैं। यह भी आरोप लगा कि बिहार के आम चुनाव के लिये उन्हें तैयार किया जा रहा है, लेकिन उन्होंने साफ कर दिया कि वे ऐसा कुछ नहीं करने जा रहे हैं। लॉकडाउन में उनके काम की इतनी चर्चा हुई कि अब देशभर से लोग अलग-अलग मुसीबतों में उन्हें याद करते हैं।
ऐसी ही एक मदद मिली बिलाईगढ़ के धोबनी गांव की एक 20 साल की युवती को। उसे टीबी की बीमारी है। उसने दवा लेने में कुछ लापरवाही बरती और रोग उसकी रीढ़ की हड्डी में पहुंच गया। खर्चीला इलाज था। उसने ट्वीट कर सोनू सूद से मदद मांगी। युवती के इलाज के लिये सोनू सूद ने व्यवस्था कर दी है। एक निजी अस्पताल में उसका इलाज चल रहा है। ऑपरेशन का सारा खर्च सोनू सूद वहन करेंगे।
इसके पहले सोनू सूद रायपुर की ही एक कोरियोग्राफर के इलाज का खर्च उठा चुके हैं। सोनू सूद इलाज का खर्च भेजने के बाद मरीज को भूले भी नहीं, उनसे नियमित अपडेट लेते हैं कि स्वास्थ्य कैसा है, कोई दिक्कत तो नहीं। दुआ करें कि सोनू सूद के नेक काम का नतीजा अच्छा हो और युवती जल्द स्वस्थ हो।
3 करोड़ से अधिक ‘सबले बढिय़ा छत्तिसगढिय़ा’, और यहां के बीमारों के इलाज के लिए जरूरत पड़ रही है सोनू सूद की !
कहानी नन्हीं सी, कामयाबी बड़ी सी
बचपन में सुनी कहानियां सपनों में खोने के लिये नहीं बल्कि कामयाबी अपने नाम करने के लिये भी लाई जा सकती है। यह साबित किया दुर्ग की पांच साल 11 माह की नायरा ने। एक संस्था इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स ने इस साल के लिये उसे सबसे कम उम्र की स्टोरी टेलर के रूप में उसका नाम दर्ज किया है। उसे मंच पर आकर कहानी सुनाने के लिये यह सम्मान मिला। नायरा ने बताया है कि वह अपनी मां से रोज रात एक कहानी सुना करती है। इसीलिये ऐसा कर पाई। यह दौर ऐसा है जिसमें बच्चे भी में देर रात तक जागकर मोबाइल में डूबे रहते हैं। नाना-नानी, मां-पापा से कहानी सुनने, सुनाने का कल्चर बहुत कम परिवारों में बचा है। ऐसे में छोटे उम्र की नायरा की उपलब्धि छोटी नहीं है।
कोई भी बाल मनोवैज्ञानिक बताएँगे कि बच्चे जब सुनते हैं, और सुनी हुई बातों की तस्वीर अपनी कल्पना से बनाते हैं, तो उनका मानसिक विकास होता है. जब वे सिर्फ वीडियो देखते हैं, तो उनका कोई विकास नहीं होता।
कोरोना से बचाने टॉवर से निगरानी
प्रदेश में एकाएक कोरोना के मामले फिर बढऩे लगे हैं। त्यौहारों के कारण खरीदी के लिए लोग बड़ी संख्या में निकल रहे हैं और बाजारों में कोविड के लिए तय मापदंडों का न तो ग्राहक पालन कर रहे हैं और न ही दुकानदार। इधर प्रशासन की सख्ती भी धीरे-धीरे कम हो रही है। मामले बढऩे की यह एक बड़ी वजह हो सकती है। प्रशासन की समझ में भी यह बात आ रही है। अब रायपुर में एक बार फिर लोगों को सार्वजनिक स्थानों पर कोविड नियमों का पालन करने के लिये जागरूक किया जा रहा है। बाजारों में स्वयंसेवी तैनात रहकर लोगों को समझायेंगे और माइक से उद्घोषणा की जायेगी। यह तो पहले भी किया गया, पर अब बाजारों में वाच टॉवर भी लगाये जा रहे हैं। इन पर चढक़र निगाह रखी जायेगी कि कहां पर भीड़ इक_ी हो रही है। सोशल डिस्टेंस नहीं रखने और मास्क नहीं पहनने पर अमूमन 100 रुपये का जुर्माना लगाया जाता है, जिसका ज्यादातर लोगों को खौफ नहीं है। ये सब उपाय अपनी जगह है पर सच यह है कि जब तक लोग खुद अपनी जिम्मेदारी नहीं समझेंगे, नियम टूटते रहेंगे।