राजपथ - जनपथ
मेड फॉर ईच-अदर
छत्तीसगढ़ की राजधानी बनाई जा रही बस्ती को नया रायपुर कहा जा रहा था, फिर उसका नाम रमन सरकार ने जाते-जाते अटल नगर कर दिया, और अब भूपेश सरकार ने इन दोनों को मिलाकर, उसमें कुछ छत्तीसगढ़ी छिडक़कर उसका नाम नवा रायपुर अटल नगर कर दिया। खैर, नाम बदलने से कुछ नहीं होता, यह पूरा नगर देश में सन्नाटे के सबसे बड़े और सबसे बड़ी लागत वाले टापू की तरह रह गया है जिस पर एक छत्तीसगढ़ी कहावत लागू होती है- मरे रोवइया न मिले।
मरने पर रोने वाला न मिले, एक्सीडेंट हो तो कोई हाथ लगाने न मिले, कोई छेड़ रहा हो तो बचाने वाले न मिले। सरकारें बदल गईं, लेकिन नया रायपुर के इस पूरे ढांचे का सबसे बड़ा इस्तेमाल प्रेमी-जोड़ों के लिए जारी है जिन्हें वहां तेज रफ्तार में निकलती गाडिय़ां देखती नहीं हैं, और पैदल चलने वाले हैं नहीं। इसलिए सुबह से रात तक कहीं दुपहियों पर और कहीं चौपहियों में प्रेमी-जोड़े डटे रहते हैं, और एक किस्म से यह हिन्दुस्तान में बिखरी हुई नफरत के बीच में प्रेम के टापू की तरह भी हो गया है। एक और तबका है जिसे सडक़ों का यह ढांचा पसंद आता है, वे हैं साइकिल चलाने वाले। उन्हें इतनी सुरक्षित दूसरी कोई जगह मिलती नहीं है, और किसी ने एक बड़ा सुंदर मजाकिया पोस्टर बनाकर अभी फेसबुक पर पोस्ट किया है।
पटाखे जलाने वाले मानेंगे?
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल और सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन के आदेश पर इस बार केवल ग्रीन पटाखे फोडऩे कहा गया है। राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (नीरी) के रिसर्च के बाद तय किये गये मसाले के अनुसार ग्रीन पटाखे बनाये जाते हैं। प्रचलित पटाखों के मुकाबले इसमें प्रदूषण 50 फीसदी कम होता है। सल्फर और नाइट्रोजन कम पैदा करने के चलते ये कम हानिकारक हैं। कुछ पटाखे तो पानी के कण भी पैदा करते हैं।
देश के कई शहरों में पटाखों पर पूरी तरह पाबंदी लगा दी गई है, कई शहरों में रात 8 से 10 बजे तक छूट है। छत्तीसगढ़ के शहर भी इनमें शामिल हैं। पर, यह आदेश बहुत देर से आया। अधिकांश थोक दुकानदारों के पास पहले से ही प्रचलित पटाखे पहुंच चुके हैं और बिक भी रहे हैं। पुलिस के पास ग्रीन पटाखों की सूची भी नहीं है। रात 8 बजे से 10 बजे तक पटाखे जलाने की छूट, बम फोडक़र दीवाली मनाने के शौकीनों के लिये काफी है। पहले से ही सुप्रीम कोर्ट ने रात 10.30 बजे तक ही पटाखों की अनुमति दे रखी है, पर वर्षों पुराने इस आदेश का कहीं पालन नहीं होता। इस बार भी लगता है कि रस्म अदायगी के लिये सर्कुलर निकाला गया है। होगा वही जो हर दीपावली पर होता है।
हाथियों से धान बचाने की मशक्कत
धान खरीदी में देरी की वजह से किसान कई मुसीबतों का सामना कर रहे हैं। फसल पकने के बाद खेतों में छोड़ा नहीं जा सकता, वरना मवेशी नुकसान करेंगे। काट कर घर लाकर रखना भी एक समस्या है क्योंकि सालों से उन्होंने अपने घरों में कोठियों की कोई जगह ही नहीं छोड़ी। कुछ एक बड़े घरों वाले किसानों के पास ही यह सहूलियत है। दीपावली पर जरूरत के लिये किसानों ने मिलर्स और आढ़तियों के पास कम दाम पर बेचा है पर बाकी सरकारी खरीद शुरू होने के इंतजार में बचा रखा है। इधर सिरपुर के हाथी प्रभावित गांवों में अलग तरह की समस्या का सामना है। हाथियों के खौफ से किसानों ने फसल काट तो ली पर अब घरों में रखने का ठिकाना नहीं है। धान की पहरेदारी के लिये उन्हें पूरी रात जागना पड़ रहा है। रात में हाथी धमकते हैं तो उन्हें समय पर उन्हें पता भी नहीं चल पाता। आने वाले 20 दिन तक तो उन्हें इससे जूझना पड़ेगा। धान खरीदी में देरी की वजह बारदानों की कमी बताई जा रही है। केन्द्र सरकार से सहयोग नहीं मिलने की बात कहकर समस्या को टाला नहीं जा सकता। कम से कम ऐसी तैयारी की जाये कि अगले साल किसान ऐसी मुसीबत से बच सकें और फसल कटने के बाद धान तुरंत बेच सकें।