राजपथ - जनपथ
परिक्रमा की परंपरा का फायदा...
हिन्दुस्तान में बहुत से लोगों को यहां की तमाम रीति-रिवाजों के पीछे वैज्ञानिक आधार देखना अच्छा लगता है, फिर चाहे वह सही हो, या न हो। पुराने लोग पुराने वक्त में जमीन पर बैठकर खाना खाते थे, और खाना शुरू करने के पहले थाली आते ही हाथ में पानी लेकर थाली के चारों तरफ एक घेरा सा बना लेते थे। कच्ची फर्श पर मानो एक लक्ष्मण रेखा खिंच जाती थी। इसका एक वैज्ञानिक आधार जो दिखता था, और जो सही भी लगता है वह यह था कि ऐसी गीली लकीर पार करके चींटियां थाली तक नहीं पहुंचती होंगी।
ऐसे ही भारत के हिन्दू धर्म में जगह-जगह परिक्रमा की परंपरा है। पूजा में परिक्रमा, शादी में परिक्रमा, मंदिर में परिक्रमा। और हिन्दू धर्म से परे दूसरे धर्मों में भी कहीं दरगाह में परिक्रमा, तो कहीं और है ही। इसका एक दिलचस्प इस्तेमाल अभी समझ में आया कि कार से किसी लंबे सफर पर रवाना होना हो तो कार की एक परिक्रमा करके चारों चक्कों की हवा एक नजर देख लेनी चाहिए। होता यह है कि लोग हड़बड़ी में बिना चक्के देखे रवाना हो जाते हैं, और अपने घर से सौ-दो सौ मीटर दूर जाकर अंदाज लगता है कि कोई चक्का पंक्चर है, तो वहां घर जितनी सहूलियत नहीं रहती।
इसलिए हिन्दुस्तानी परंपरा के मुताबिक पूजा में परिक्रमा करें या न करें, कार से कहीं रवाना होने से पहले उसकी परिक्रमा जरूर कर लेनी चाहिए ताकि बीच रास्ते कहीं चक्का बदलते खड़ा न होना पड़े। और लंबे सफर में तो जब ढेर सा सामान गाड़ी में लद जाता है, तो स्टेपनी का चक्का निकालना भी मुश्किल पड़ता है। इसलिए रवानगी के पहले परिक्रमा बेहतर।
अब कांग्रेस मरवाही के बाद कोटा में...
जिस तरह न्याय-यात्रा से मरवाही चुनाव के नतीजे बेअसर थे, छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस का अपने दो विधायकों देवव्रत सिंह और प्रमोद शर्मा के खिलाफ शुरू किये जा रहे हस्ताक्षर अभियान का भी मकसद पूरा होना संदिग्ध है। यह अभियान एक नैतिक दबाव जरूर बना सकता है पर कानूनी दृष्टि से इसका कोई असर नहीं होने वाला है। दूसरी तरफ डॉ. रेणु जोगी के खिलाफ कांग्रेस ने मोर्चा खोल दिया है। उसने ऐलान कर दिया है कि कोटा में गांव-गांव जाकर जन-जागरण अभियान चलायेंगे। डॉ. जोगी ने मरवाही में भाजपा को समर्थन देकर कोटा क्षेत्र के मतदाताओं से विश्वासघात किया। जिस भाजपा का विरोध कर वे कोटा में विधायक बनीं अब उन्हीं के साथ हो चुकी हैं। उन्हें अब इस्तीफा देकर भाजपा की टिकट पर चुनाव लडऩा चाहिये। मतलब यह कि अब मरवाही के बाद कांग्रेस कोटा में अगले चुनाव की तैयारी अभी से शुरू कर रही है।
छठ पूजा पर प्रशासन की असमंजस
कोरोना संक्रमण को रोकने के लिये पाबंदी और ढील पर प्रशासन लॉकडाउन और अनलॉक के समय से असमंजस की स्थिति में रहा है। रायपुर के महादेव घाट और बिलासपुर के अरपा नदी स्थित घाट में छठ पूजा हर साल धूमधाम से होती है। मुख्यमंत्री जो भी रहे हों इनमें भाग लेने की कोशिश करते हैं। इसी बहाने नदी और घाटों की सफाई भी हो जाती है। इस बार छठ पूजा आयोजन समितियों से करीब एक माह पहले ही सहमति ले ली गई थी कि सार्वजनिक पूजा नहीं होगी। तर्क था भीड़ इतनी आयेगी कि संक्रमण को रोकना मुश्किल हो जायेगा। नवरात्रि और दशहरे पर भी पाबंदी लागू की गई थी लेकिन बाजारों को दीपावली के लिये खुला छोड़ दिया गया। बाजारों में स्थिति वही थी, जिसका अंदेशा था। भीड़ इतनी पहुंची कि लोगों से गाइडलाइन का पालन कराया नहीं जा सका। दरअसल, छठ पर्व सूर्य को अर्ध्य देने का पर्व है और इसे नदी, तालाबों में एकत्र होकर ही मनाने की परम्परा है। छठ पूजा का नहाय खाय शुरू होने के बाद अचानक कल शाम आदेश जारी हुआ कि बिना ध्वनि विस्तारक यंत्रों, सांस्कृतिक, मंचीय कार्यक्रमों के यह पूजा सार्वजनिक रूप से हो सकती है। छठ पूजा के सार्वजनिक आयोजन की तैयारी के लिये कम से कम सप्ताह भर का समय लगता है। अचानक कल शाम को अनुमति देने की वजह से घाटों पर कोई तैयारी हो ही नहीं पाई। हो सकता है आदेश निकालने में विलम्ब जान बूझकर किया गया हो ताकि सार्वजनिक पूजा की अनुमति भी देने की बात भी रह जाये और ज्यादा भीड़ भी इक_ी न हो।
छत्तीसगढ़ में बन पायेगा एथेनॉल?
दो माह पहले प्रदेश सरकार ने जानकारी दी थी कि चार कम्पनियों के साथ एमओयू हुआ है और वे धान से एथेनॉल का उत्पादन करेंगीं। एमओयू के तहत मुंगेली में दो तथा जांजगीर और महासमुंद में एक, एक संयंत्र लगाने की तैयारी है। ये कम्पनियां 500 करोड़ से ज्यादा निवेश करेंगी और इनकी उत्पादन क्षमता 17 हजार किलोलीटर से ज्यादा होगी। अब इस पर दूसरी खबर दिल्ली से है। एफसीआई ने भी गोदामों में बचे जरूरत से ज्यादा अनाज को बेचने का टेंडर निकाला और खाद्य प्रसंस्करण कम्पनियों से टेंडर बुलाये। चावल का आधार मूल्य 22 हजार 500 रुपये रखा गया। एक भी कम्पनी ने इस टेंडर में भाग नहीं लिया। बात यह निकलकर आई कि एक लीटर एथेनॉल की कीमत पेट्रोल कम्पनियां 52.22 रुपये देने के लिये तैयार है जबकि निर्माण पर खर्च ही 57.22 रुपये होना है। ये आंकड़ा चावल का है, धान का नहीं। धान से सीधे एथेनॉल बनाने की तकनीक में उत्पादन लागत कम हो जायेगी? पता तब चलेगा जब एमओयू करने वाली कम्पनियां निवेश और उत्पादन शुरू करें। एमओयू तो पिछली सरकारों में अनेक होते रहे। रतनजोत से डीजल बनाने की योजना का क्या हुआ, इसका भी उदाहरण अतीत में मिल चुका है।