राजपथ - जनपथ
अब मरवाही के कांग्रेसी भिड़े अफसरों से
सत्ता से जुड़े जिला और ब्लॉक स्तर के कांग्रेस कार्यकर्ताओं की आये दिन नाराजगी खुलकर सामने आ रही है। ऩई घटना छत्तीसगढ़ की हॉट सीट मरवाही से जुड़ी है। पेन्ड्रा नगर पंचायत में तीन एल्डरमेन नियुक्त किये गये हैं। इनको शुक्रवार को एसडीएम शपथ दिलाने वाले थे। वे वहां पहुंचे तो पता चला तीनों एल्डरमेन समारोह का बहिष्कार कर बाहर निकल गये हैं।
पता चला, एल्डरमेन इस बात से नाराज थे कि मरवाही विधायक डॉ. के. के. ध्रुव और जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष मनोज गुप्ता को समारोह में आमंत्रित नहीं किया गया। सीएमओ का तर्क था कि यह नगर पंचायत का कार्यक्रम है, सभी पार्षदों को तो बुलाया गया है। एल्डरमेन नहीं माने। उन्होंने शपथ लेने से मना कर दिया। उन्हें यह भी लगा कि एक खास गुट की बातों में आकर सीएमओ ने ऐसा किया।
अब तय हुआ है कि एल्डरमेन एक बड़े समारोह में शपथ लेंगे जिसमें विधायक, जिला कांग्रेस के अध्यक्ष और दूसरे पदाधिकारी भी शामिल होंगे। याद होगा कि दो दिन पहले ही बिल्हा में कांग्रेस के नेता एक कार्यक्रम के दौरान कृषि विभाग के अधिकारियों पर बरस पड़े थे। यहां मुख्य अतिथि नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक थे। तीन घंटे तक कार्यक्रम रुका रहा। दुबारा तब शुरू हो सका जब सीएम का फोटो लगा नया पोस्टर बनकर आया।
प्रदेशभर में बड़ी भीड़ है, सत्ता से जुड़े कार्यकर्ताओं की। अधिकारी पेशोपेश में चल रहे हैं। किसे सुनें, किसकी न सुनें। इसलिये अपने मन की करते हैं और वहां भी फंस जाते हैं।
धान खरीदी निगरानी वाले कहां थे?
राजनीति करनी है तो धान खरीदी एक उत्सव की तरह है। कोई भी दल पीछे नहीं है खरीदी केन्द्रों में पहुंचकर अपनी तस्वीरें खिंचाने में। निगरानी समितियां बनाई गई है। जिलों के अधिकारी भी इस बड़े काम में व्यस्त होने का हवाला देते हुए दफ्तरों में कम दिखाई दे रहे हैं। लगभग छोटी-बड़ी सभी पार्टियों ने निगरानी समितियां बना डाली हैं जिनका दावा है कि वे बिक्री के दौरान किसानों को आने वाली दिक्कतों को दूर करेंगे।
चौतरफा सब के सब किसानों की मदद करने के लिये तैयार बैठे हैं, फिर कोंडागांव में किसान धनीराम ने आत्महत्या क्यों कर ली? वह कोई छोटा किसान नहीं था, 6.7 एकड़ जमीन पर उसने धान लिया। 100 क्विंटल बेचने की तैयारी की थी, पर सॉफ्टवेयर में ऐसी गड़बड़ी हुई कि उसे सिर्फ 11 क्विंटल धान बेचने की इजाजत मिली। प्रशासन ने खुदकुशी के तुरंत बाद तेजी से जांच कर निष्कर्ष निकाल लिया कि दो साल पहले किसान के बेटे ने आत्महत्या की थी, इसलिये वह परेशानी में नशा करने लगा था, पेड़ पर चढक़र फांसी लगा ली।
जब ऐसा ही सच है तो पटवारी को कल सस्पेंड क्यों कर दिया गया, जिस पर आरोप लगाया गया है कि उसने गलत गिरदावरी रिपोर्ट बनाई। जिस तहसीलदार को कारण बताओ नोटिस जारी की गई है उसने कम से कम यह तो बताया कि रिपोर्ट गलत बन गई थी। पर किसान ने शिकायत किसी से नहीं की, इसलिये उसे मदद नहीं दी जा सकी।
खेती के रकबे की गलत इंट्री होने की दर्जनों शिकायतें आ रही हैं। पीडि़त किसान और सरकार के बीच इतनी दूरी कि वह शिकायत करने की जगह मौत का रास्ता चुने? इस घटना के बाद तो पूरे कोंडागांव जिले के किसानों की शिकायत दूर करने के लिये तीन दिन का अभियान शुरू किया गया है, पर बाकी जिलों का क्या? हर जगह से शिकायतें हैं। इस बार भी रिकॉर्ड धान खरीदी होने जा रही है। वास्तविक किसान यदि इस तरह परेशान हैं तो आखिर यह रिकॉर्ड किनके बूते बनाया जा रहा है?
नेटवर्क में पीछे पर ऑनलाइन पढ़ाई में आगे
सरकारी स्कूलों के बंद होने के चलते गरियाबंद जिले में भी पढ़ाई तुम्हर द्वार योजना बाकी जिलों की तरह चल रही है। यदि विभाग के आंकड़ों पर भरोसा किया जाये तो ऑनलाइन पढ़ाई के लिये यहां से करीब 4100 शिक्षक और 72 हजार विद्यार्थियों ने पंजीयन कराया। जहां नेटवर्क की समस्या है वहां करीब एक हजार नियमित शिक्षक जाकर खुले में क्लास ले रहे हैं। 1400 जगहों पर मोहल्ला क्लासेस चल रही हैं। लाउडस्पीकर से करीब 90 जगह पढ़ाई हो रही है और ब्लू ट्रूथ से लोड होने वाली पाठ्यसामग्री की संख्या 70 हजार से ऊपर है। यह जिला कोरोनो काल में वैकल्पिक पढ़ाई के लिये की गई व्यवस्था में अव्वल है।
वैसे ऑनलाइन पढ़ाई में उन शहरों, जिलों को सफलता ज्यादा मिलनी चाहिये जहां नेटवर्क और रोड कनेक्टिविटी दोनों अच्छी है। पाठ्यक्रम अपलोड करने, ऑनलाइन क्लास लेने में की वहां ज्यादा सुविधा है। पर रायपुर, दुर्ग, बिलासपुर जैसी जगहों से ज्यादा अच्छा काम वनों से आच्छादित गरियाबंद जिले का सामने आया है। मैदानी इलाके के अधिकारी कुछ सीख लेंगे?