राजपथ - जनपथ
अदानी-अम्बानी के बहिष्कार पर असमंजस
आंदोलनरत किसानों की तरफ से अपील की गई है कि अडानी-अम्बानी के सामानों का बहिष्कार करें। लोग पेशोपेश में हैं। पूरे छत्तीसगढ़ में लाखों की संख्या में जियो सिम हैं। इनमें से बहुत से तो पिछली सरकार के दौरान मुफ्त में बांटे गये थे। इन फोन्स की खासियत यह है कि इनमें कोई दूसरा सिम कार्ड काम नहीं करता। जिन्होंने सिर्फ सिम कार्ड लिये हैं उनके लिये भी अचानक पोर्टेबिलिटी कराना कम सिरदर्द काम नहीं है। अब वे लोग जिनके पास जियो का कोई भी सिम कार्ड नहीं है, कह सकते हैं- हम किसानों के हितैषी हैं। जियो केबल टीवी है पर जियो फाइबर अभी ठीक तरह से अपने प्रदेश में लांच नहीं हो पाया है।
रिलायंस के कुछ थोक और फलों के बाजार भी छत्तीसगढ़ में हैं, कुछ पेट्रोल पम्प भी हैं। लोगों को शुद्धता और मात्रा को लेकर सरकारी उपक्रमों से कहीं ज्यादा उन पर भरोसा रहा है। ज्यादातर खरीदी रोजमर्रा की खरीदी में नहीं है। तो बहिष्कार करने लायक अम्बानी के मामले में तो कुछ ज्यादा दिखाई नहीं देता। ऐसा ही कुछ अडाणी को लेकर भी है। सरगुजा व दूसरे जिलों में कुछ कोयला खदानों में उत्खनन का काम अडाणी के पास है उनके कोयले की खपत किस बिजलीघर में हो गई कुछ पता चलना है नहीं, इसलिये बिजली का बॉयकाट नहीं हो पायेगा।
कुछ प्रमुख राजमार्गों का निर्माण कार्य अडाणी की कम्पनी को मिला है। इन सडक़ों पर अडाणी का मालिकाना हक तो है नहीं। और इन दोनों कुबेरों के यहां काम करने वाले कर्मचारियों पर इस बहिष्कार का क्या असर पड़ेगा, यह भी सवाल है। किसानों के समर्थक होते हुए भी वे रोजगार के मौजूदा विपरीत हालात में उनकी नौकरी छोडऩे की हिम्मत नहीं जुटा पायेंगे। बहरहाल, किसान आंदोलन से सहानुभूति रखने वालों को बहिष्कार की बात में दम तो लगता है पर कोई रोडमैप नहीं होने के कारण भारी असमंजस की स्थिति है।
कर्ज की मंजूरी तो बरस रही है!
कौन बनेगा करोड़पति में अमिताभ बच्चन हर बार यह घोषणा करते हैं कि टेलीफोन पर बैंक-ठगी से बचकर रहें। लेकिन ठग इतनी नई तरकीबें निकालते हैं कि लोग झांसे में आ ही जाते हैं। कुछ दिन पहले ही इसी जगह जालसाजों के आने वाले संदेश का एक नमूना दिया गया था, आज उनके दो और नमूने पेश हैं।
फोन पर मैसेज आते हैं कि आपका कर्ज मंजूर हो गया है, और उसमें लाख-दो लाख रूपए की रकम भी लिखी रहती है। अब जिन लोगों ने किसी कर्ज के लिए अर्जी दे रखी है, वे तो हड़बड़ी में उसे खोल ही लेंगे, और वहां से जालसाजी शुरू हो जाएगी, ठग आपको आगे फंसाते जाएंगे। यह बात याद रखें कि कर्ज आसानी से मंजूर नहीं होता है, और छोटे लोगों का कर्ज तो आसानी से और भी मंजूर नहीं होता है। इसलिए गुमनाम-बेनाम संदेशों में आए हुए लिंक खोलकर न देखें। झारखंड का एक गांव ऐसी ही साइबर-ठगी के लिए दुनिया भर में बदनाम है और लोगों को इस पर अभी नेटक्लिक्स पर आई टीवी सीरिज देखनी चाहिए जिसका नाम है जामताड़ा:सबका नंबर आएगा। भारत के किसी आईआईएम को इस गांव पर रिसर्च भी करना चाहिए कि कैसे एक छोटे से गांव में हर अनपढ़ इंसान भी जालसाज बनने की इतनी संभावना रखते हैं।
जमीन के गोरखधंधे में कितने हाथ रंगे?
कोरोना काल के बाद मरवाही चुनाव का बोझ, अब राजस्व मंत्री को कुछ फुर्सत मिली और तुरंत एक तहसीलदार पर गाज गिरी। बिल्हा के तहसीलदार ने अरबों की 26 एकड़ जमीन 6 लोगों के हवाले कर दी। आधार बनाया, हाईकोर्ट के दुर्ग जिले के मामले में आये फैसले को। इस फैसले में मोटे तौर यह था मालगुजारी के दौरान खरीदी गई जमीन को सरकारी दस्तावेजों से दुरुस्त कर उनके वारिसों के नाम पर चढ़ाया जाये। कोर्ट का फैसला एक प्रकरण विशेष पर था, प्रदेशभर के लिये कोई सामान्य निर्देश नहीं था। तहसीलदार सफाई देने में नहीं चूका पर एक्शन तुरंत हो गया। अब स्थिति यह है कि जिनके नाम पर जमीन चढ़ाई गई, उन्होंने और कई लोगों को वह जमीन बेच दी। मतलब सरकारी रिकॉर्ड में चढ़ाने की प्रक्रिया अब भी लम्बी है।
कोरोना काल के बाद लम्बित राजस्व मामलों की समीक्षा भी नहीं हो पाई है। सैकड़ों शिकायतें पड़ी हुई हैं। क्या रायपुर, क्या बिलासपुर, क्या बड़े मामले और क्या छोटे । पूर्ववर्ती सरकार में भदौरा सहित कई मामले चर्चा में थे। क्या गौचर और क्या तालाब। सरकारी जमीन की बंदरबांट जारी है। तहसीलदार तो एक मामूली प्यादा है। अचरज की बात नहीं कि एन्टी करप्शन ब्यूरो ने हाल ही में जो वाट्सअप और ई मेल पर भ्रष्टाचार की शिकायतें लेनी शुरू की है उनमें सर्वाधिक केस राजस्व के ही हैं।
शिक्षा सत्र भेंट चढऩे के कगार पर
राज्य सरकार ने अब तक संकेत नहीं दिया है कि स्कूलों को कब खोला जायेगा। हालांकि केन्द्र की ओर से कोई पाबंदी नहीं है। सरकारी स्कूल के शिक्षक मना रहे हैं कि कोरोना के नाम दिन जैसे-तैसे निकल जाये और अगले सत्र में पढ़ाई शुरू हो। सत्र का समापन की ओर बढऩा देखकर सरकारी स्कूलों के शिक्षकों को जितना रास आ रहा है निजी स्कूल प्रबंधकों की उतनी ही चिंता बढ़ती जा रही है। स्कूल फीस मारी जा रही है। इनकी तरफ से हाईकोर्ट में केस दायर किया गया और कुछ नियमों के बंदिश में बांधते हुए स्कूल फीस लेने की इजाजत भी मिल गई पर पालकों की तरफ से कई आपत्तियां हैं। उनका कहना है कि ट्यूशन फीस के नाम पर कई तरह की फीस जोड़ दी गई जो ऑनलाइन क्लासेस में नहीं लेनी चाहिये।
अब मामला डबल बेंच में सुना जा रहा है। पर इस पर निर्णय अभी आया नहीं है। फीस वसूली ढीली ही चल रही है।
मध्यप्रदेश में निजी स्कूलों के संचालक कुछ हिम्मती हैं। उन्होंने वहां सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। उनका कहना है कि स्कूल बंद होने से 30 लाख परिवारों के रोजगार पर संकट आया है। पांच दिन के भीतर स्कूल खोलने का निर्णय नहीं लिया गया, तो मुख्यमंत्री का बंगला घेरेंगे। मगर, सौ टके की बात ये है कि छत्तीसगढ़ हो या मध्यप्रदेश स्कूल खुलने के बाद भी पालक अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिये राजी होंगे क्या?
ज्यादातर पालक तो अब भी बस, आटो रिक्शा में सफर और स्कूलों में पढ़ाई, खेल के दौरान सोशल डिस्टेंस को लेकर चिंतित है। अभी तो लोग कॉलेज भी खोलने को तैयार नहीं हैं। शायद यह सत्र ऑनलाइन पढ़ाई में ही गुजरे और कुछ जरूरी परीक्षाओं को छोडक़र शेष में जनरल प्रमोशन देने की स्थिति बने।