राजपथ - जनपथ
गौरव-मनिंदर का बदलाव जारी
आईएएस द्विवेदी दंपत्ति के इस सरकार में भी तीसरी-चौथी बार उनके प्रभार बदले गए हैं। कुछ दिन पहले हुए इस प्रशासनिक फेरबदल में दोनों के प्रभार बदले गए, तो फिर कानाफुसी शुरू हो गई। प्रमुख सचिव गौरव द्विवेदी सीएम सचिवालय से हटे, तो भी उन्हें पंचायत जैसे वजनदार महकमे का प्रभार दिया गया। दूसरी बात यह थी कि उन्हें मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के प्रतिद्वंद्वी टी एस सिंहदेव के मंत्रालय भेजा गया। सीएम सचिवालय की नाजुक पोस्ट के बाद सीधे दुसरे खेमे में ! कुछ लोगों ने उस वक्त इस बात के लिए मुख्यमंत्री को आगाह भी किया था। और अब कुछ महीने के भीतर उन्हें बदला गया, तो चर्चा होना स्वाभाविक है।
पंचायत में गौरव के कामकाज को संतोषजनक आंका जा रहा था। फिर प्रभार क्यों बदला गया? अंदर की खबर यह है कि सीएम की फ्लैगशिप वाली नरवा योजना में अपेक्षाकृत प्रगति नहीं हो रही थी। विशेषकर वन विभाग के समन्वय के साथ जो काम होना चाहिए था, वह नहीं हो पा रहा था। चर्चा है कि सीएम ने कुछ दिन पहले प्रोजेक्ट के क्रियान्वयन में देरी पर नाराजगी जताई थी। और बाद में उन्होंने फिर इसकी समीक्षा की, लेकिन स्थिति जस की तस रही। फिर क्या था, गौरव द्विवेदी पर ठीकरा फूट गया।
दूसरी तरफ, प्रमुख सचिव मनिंदर कौर द्विवेदी को पहले मंडी की जमीन ट्रांसफर में देरी पर पहले एपीसी से हटाया गया, और फिर अब जीएसटी के दायित्व से मुक्त कर दिया गया। इस बार मनिंदर के हटने के पीछे कमिश्नर रानू साहू से तालमेल न होना पाया गया। दोनों के बीच विवाद इतना बढ़ गया था कि जीएसटी का पूरा अमला परेशान था। एक एडिशनल कमिश्नर ने तो नौकरी से त्यागपत्र भी दे दिया है।
मनिंदर कौर द्विवेदी भी सिंहदेव के ही मातहत थीं। जीएसटी मंत्री टीएस सिंहदेव ने भी दोनों महिला अफसरों के बीच बेहतर समन्वय के लिए पहल भी की थी, लेकिन स्थिति नहीं बदली। ऊपर यह फीडबैक गया कि मनिंदर ज्यादा जिम्मेदार हैं । सीएम ने फैसले में देरी नहीं लगाई, और फिर उन्हें बदल दिया गया। ये अलग बात है कि जीएसटी का प्रभार मनिंदर से हटाकर गौरव को दे दिया गया, और रानू साहू को पर्यटन एमडी का अतिरिक्त दायित्व देकर उनका महत्व बढ़ाया गया।
मरकाम नाराज हैं या नहीं?
निगम-मंडलों में नियुक्ति को लेकर दूसरे दौर की चर्चा के बीच प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम बैठक अधूरी छोडक़र निकले, तो बाहर चर्चा शुरू हो गई। फिर कांग्रेस मीडिया विभाग के लोगों ने सफाई दी, कि मरकाम को अपने विधानसभा क्षेत्र कोंडागांव में जरूरी काम से जाना था, इसलिए अपनी बात पूरी कर निकल गए। मरकाम ने भी चुप्पी साध ली।
चर्चा यह है कि सीएम हाउस में दूसरे दिन की चर्चा में मरकाम अपनी तरफ से दो-तीन नाम जुड़वाना चाह रहे थे। उन्होंने अपनी बात मजबूती से रखी भी, लेकिन उनकी बात को महत्व नहीं मिला। लिहाजा, वे बैठक छोडक़र निकल गए। प्रभारी सचिव चंदन यादव ने रायपुर आते ही नाराजगी पर मरकाम से घर जाकर बात की है। दावा तो यह भी है कि सबकुछ ठीक-ठाक हो गया है। मगर वाकई ऐसा है, यह देखना है।
कांग्रेस, भाजपा का अनुशासन
2018 में छत्तीसगढ़ का चुनाव जीतने के बाद कांग्रेस से कम से कम मुख्यमंत्री पद के चार दावेदार थे। चुनाव अभियान के पहले भाजपा इस बात पर तंज कसती थी कि जिनकी पार्टी में सीएम पद के 6-6 दावेदार हों, वे सरकार कैसे चलायेंगे। बीता चुनाव भाजपा ने डॉ. रमन सिंह के नेतृत्व में लड़ा था और यदि परिणाम पक्ष में गये होते तो उन्हें बिना किसी असहमति के विधायक दल का नेता चुन लिया जाता। पूर्ववर्ती सरकार के दौरान आदिवासी नेतृत्व की जरूरत होने की बात भाजपा नेता नंदकुमार साय और ननकीराम कंवर ने कई बार रखी। इनके अलावा भी बीच-बीच में खबर उड़ती रहती थी कि डॉ. सिंह के खिलाफ असंतुष्ट विधायकों के बीच लॉबिंग हो रही है। लेकिन हुआ कुछ नहीं. रमन सिंह के दूसरे कार्यकाल में ही बृजमोहन अग्रवाल ने हथियार डाल दिए थे।
इधर कांग्रेस सरकार के दो साल पूरे होने वाले हैं और सवाल उछल गया कि क्या यहां ढाई-ढाई साल वाला फॉर्मूला अपनाया जायेगा? मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने इस सवाल पर पहले हाईकमान को सर्वोपरि बताया, फिर सरगुजा में साफ किया कि उनको 5 साल के लिये ही चुना गया है। भाजपा को तुरंत मौका मिला और सवाल दागे और संदेह जताया। पर कांग्रेस और भाजपा दोनों के ही दौर में एक बात समान है, वह है अनुशासन की। सामने आकर अनुशासन तोड़ा नहीं जाता, हां मीडिया तक इस उम्मीद से बात पहुंचा दी जाती है कि वह पूछकर देखे और टटोलें क्या प्रतिक्रिया आती है। भूपेश के मुकाबले तेवर दिखाते टी एस सिंहदेव मीडिया के हर सवाल के जवाब में सुरसुरी छोडऩे से नहीं कतराते।
निगरानी दल पर निगरानी हो
धान खरीदी को लेकर किसानों की समस्या दूर होने का नाम नहीं ले रही है। पूरे प्रदेश से कई तरह की गड़बडिय़ों की खबरें आ रही हैं। सबसे बड़ी समस्या रकबे में कटौती की है। जिलों में निर्देश दिया गया कि गिरदावरी रिपोर्ट में गड़बड़ी की गई हो तो उसे दुरुस्त किया जाये। अब किसान धान बेचने के लिये टोकन लेने की कतार में खड़े हों, या तहसील, पटवारी दफ्तर के चक्कर लगायें। दावा किया गया था कि धान की तौल सही की जायेगी, ज्यादा नहीं लिया जायेगा लेकिन कई खरीदी केन्द्रों से 40 किलो की एक बोरी के पीछे दो-दो किलो अतिरिक्त लिये जा रहे हैं। खरीदी केन्द्रों से धान का परिवहन तीन दिन के भीतर होने की बात कही गई लेकिन कई केन्द्रों में उठाव नहीं करने के कारण खरीदी की गति धीमी कर दी गई है। जब से डॉयल 112 की सुविधा दी गई है सैकड़ों किसान शिकायत दर्ज करा चुके हैं।
राजनांदगांव की घटना के बाद कमिश्नर, कलेक्टर्स ने धान खरीदी केन्द्रों का भ्रमण बढ़ाया है और कुछ कर्मचारियों को हटाने, शो कॉज नोटिस जारी करने का काम भी किया है। पर, दूसरी तरफ कांग्रेस, भाजपा ने भी बड़ी तत्परता दिखाई है। कोई ब्लॉक नहीं छूट रहा जहां वे निगरानी समितियां नहीं बना रहे हों। जब इतनी निगरानी हो रही है तो गड़बडिय़ां रुक क्यों नहीं रही, इस पर भी निगरानी के लिये कोई टीम बनाने की जरूरत है।
पांच दशक पुराने संयंत्रों का ढहना
ऊर्जा नगरी कोरबा में निजी कम्पनियों सहित एनटीपीसी के पावर प्लांट हैं। पर 50 साल से भी ज्यादा पुराने छत्तीसगढ़ विद्युत वितरण कम्पनी के प्लांट की अलग ही पहचान रही है। लम्बे समय तक बिजली उत्पादन के कारण उपकरण जवाब दे गये थे। रूस से आयातित तकनीक से अब काम नहीं लिया जाता। यहां की 50-50 मेगावाट की दो इकाईयों को बंद किया जा चुका है, जिसका कबाड़ खुली नीलामी में 75 करोड़ में बिक गया। कम्पनी के करीब 450 कर्मचारियों को दूसरे संयंत्रों में शिफ्ट करने का दावा किया गया है लेकिन इनसे ज्यादा संख्या ठेका कर्मचारियों की है। 120-120 मेगावाट के दो प्लांट और हैं जिन्हें जल्दी बंद कर उनके स्क्रैप की भी नीलामी होगी। इनमें भी बड़ी संख्या में ठेका कर्मचारी काम करते हैं। इनका भी भविष्य अंधेरे में है। इन प्लांटों का आधुनिकीकरण करने की मांग कर्मचारी संगठनों ने की थी, जो पूरी होती तो शायद ठेके पर काम करने वालों का रोजगार नहीं छिनता। कोरोना संक्रमण के दौर में इन्हें कोई नया काम मिलने की उम्मीद नहीं दिखाई दे रही है।