राजपथ - जनपथ
अगली पीढ़ी की जगह बनाना है
खबर है कि भाजयुमो अध्यक्ष अमित साहू को अपनी कार्यकारिणी बनाने में काफी दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है। पहले तो पार्टी ने 35 वर्ष से कम आयु वालों को ही कार्यकारिणी में लेने की हिदायत दे रखी है। और अब पार्टी के कई बड़े नेता अपने बेटे-बेटियों को युवा मोर्चा के जरिए लॉन्च करना चाहते हैं, जिन्हें एडजस्ट करने में दिक्कत हो रही है।
प्रेमप्रकाश पाण्डेय के बेटे मनीष युवा मोर्चा पदाधिकारी बनने की होड़ में हैं। मनीष पिछले कई साल से सक्रिय हैं, और अमित का सबसे ज्यादा स्वागत भिलाई में हुआ था। इसी तरह नारायण चंदेल के बेटे, और रामविचार नेताम की बेटी का नाम भी युवा मोर्चा के पदाधिकारी के लिए चर्चा में हैं। इससे परिवारवाद का आरोप लगने का खतरा भी है, मगर रास्ता निकालने की कोशिश भी हो रही है।
साया भी साथ छोड़ जाता है...
भाजपा के एक पूर्व विधायक को साए की तरह साथ रहने वाले पीए ने गच्चा दे दिया है। प्रदेश में सरकार थी, तो विधायक महोदय काफी प्रभावशाली थे। सरकार ने उनकी वरिष्ठता को ध्यान में रखकर निगम का दायित्व भी दे रखा था। विधायक ने अपने पीए को खुली छूट दे रखी थी। हाल यह था कि पीए का कथन विधायक का कथन माना जाता था। पीए ने भी विधायक की छूट का खूब लाभ उठाया, और जमकर माल बनाया। सरकार बदली, तो सबकुछ बदल गया।
विधायकी अब नहीं रह गई, निगम-मंडल में अनियमितता की जांच शुरू हो गई। पूर्व हो चुके विधायक ने भी हमसाए की तरह साथ रहने वाले पीए का साथ निभाया, और जांच-पड़ताल से बचाने के लिए हर संभव कोशिश की। वे उसे मौलश्री विहार ले गए, और दिग्गज नेता से मिलवाया। अब जांच से घिरे पीए, कुछ दिन में ही दिग्गज नेता के करीबी हो गए।
बड़े नेता के संपर्क का पीए को पूरा लाभ मिल रहा है, और उन्हें जांच से कुछ हद तक राहत भी मिली हुई है। दिग्गज के करीबी रहे अफसरों से पीए का मेल जोल बढ़ा है। एक निलंबित पुलिस अफसर से तो पीए की अच्छी छन रही है। अब पूर्व विधायक का हाल यह है कि जब भी वे अपने पीए रहे अफसर को फोन लगाते हैं, तो कोई जवाब ही नहीं मिलता। कहावत है कि बुरे समय में साया भी साथ छोड़ जाता है, यह तो फिर भी...।
वैक्सीन और शराब वाला छत्तीसगढ़
छत्तीसगढ़ में कोरोना वैक्सीन लगाने की मुहिम पता नहीं सफल होगी या नहीं। जिस तरह से कोरोना रोग किस-किस तरह से फैल सकता है इस पर एक के बाद एक नई जानकारी और उसके हिसाब से गाइड लाइन आ रही थी, उसी तरह वैक्सीन को लेकर दिशा-निर्देश आ रहे हैं। हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज जब वैक्सीन की पहली खुराक लेने के बाद भी कोरोना संक्रमित हो गये तो डॉक्टरों ने सफाई दी कि वैक्सीन का असर दूसरा डोज लेने के बाद होता है। अब एक नई खबर आई है। भारत बायोटेक की दवा को-वैक्सीन लगवाने के बाद 14 दिन तक शराब से दूर रहना होगा। रूस में तैयार स्पूतनिक-वी का टीका लगवाने के बाद दो महीने शराब पीने की मनाही होगी। इसी तरह दूसरे टीकों के बारे में भी निर्देश है। अपने राज्य की बात करें तो यहां शराब की खपत बहुत ज्यादा है। जब कोरोना संक्रमण के चलते शराब दुकानों को मार्च-अप्रैल महीने में बंद रखा गया तो हाहाकार मच गया था। दो सफाई कर्मचारी सैनेटाइजर पीकर मर गये और इसी को आधार बनाकर दुकानें खोल दी गईं। यही नहीं होम डिलवरी भी शुरू कर दी गई। उस वक्त पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी इस दुनिया में थे उन्होंने कहा कि यही मौका है जब सरकार शराबबंदी के अपने वादे पर अमल कर सकती है।
सामाजिक अधिकारिता एवं न्याय मंत्रालय ने बीते साल एम्स की मदद से एक सर्वेक्षण कराया था, जिसमें बताया गया था कि देश में 15 फीसदी लोग शराब पीते हैं पर छत्तीसगढ़ में यह संख्या 35 फीसदी है। राज्य में सबसे ज्यादा बिक्री राजधानी रायपुर में होती है। 10 प्रतिशत कोरोना टैक्स लगने के बाद भी खपत कम नहीं हुई। यह पूरे देश में सबसे ज्यादा है। महाराष्ट्र और पंजाब भी इससे पीछे हैं। छत्तीसगढ़ में शराब से पिछले साल कमाई 4700 करोड़ रुपये दर्ज की गई थी। अब ऐसे राज्य में कोरोना की चेन तोडऩा चुनौती नहीं तो और क्या हो सकती है।
अहमियत लोक अदालतों की
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट और राज्यभर की निचली अदालतों में शनिवार को लोक अदालतें लगीं। इनमें 5303 मामले निपटे। एक ही दिन में करीब 50 करोड़ रुपये के अवार्ड पारित किये गये। गंभीर किस्म के फौजदारी मामलों में जरूर सुलह की छूट नहीं है पर साधारण दीवानी, फौजदारी दोनों तरह के मामले इन अदालतों में सुलह के लिये लाये जा सकते हैं।
कोरोना काल के बाद रखी गई पहली नेशनल लोक अदालत में एक ही दिन पांच हजार से ज्यादा मामलों में सुलह होना बताता है कि लोग लम्बी कानूनी प्रक्रियाओं से बचना चाहते हैं। कोरोना महामारी के चलते वैसे भी महीनों तक अदालतों में कामकाज ठप पड़े हुए थे। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की बात करें तो यहां कुल 74 हजार 600 से ज्यादा लम्बित मामले हैं। 15 हजार से ज्यादा केस ऐसे हैं जो 5 साल से ज्यादा पुराने हैं। निचली अदालतों में संख्या इससे कई गुना अधिक हो सकती है। अभी तक केवल जजों और विधिक सहायता प्राधिकरणों की कोशिशों से ये लोक अदालतें लगाई जाती रही हैं। यदि सामाजिक कार्यकर्ता, पुलिस और प्रशासन के स्तर पर भी कोशिश हो तो परिणाम और अच्छे मिल सकते हैं
किसान बिल पर ठंडा पानी
‘तेल की धार’ देख लेने के बाद अब यह तय है कि केन्द्र सरकार तीनों में से कोई भी बिल वापस नहीं लेने जा रही है। किसानों के थकने की प्रतीक्षा हो रही है, शाहीन बाग की तरह। भाजपा में एक बात बड़ी खास है कि वह अपने फैसलों को सही बताने के लिये सारी ताकत झोंक देती है। जीएसटी और नोटबंदी के मामले में ताबड़तोड़ सभाओं के बाद अब दूसरे राज्यों के साथ-साथ छत्तीसगढ़ में भी महापंचायतों का सिलसिला शुरू होने जा रहा है।
14 दिसम्बर को हर जिले में प्रेस कांफ्रेंस होगी, 15 को किसान महापंचायत और 16 दिसम्बर से सोशल मीडिया पर कैम्पेन शुरू होगा। किसान आंदोलन किसी एक के नेतृत्व में नहीं चल रहा है। केन्द्र सरकार यह बता रही है कि यह पंजाब, हरियाणा के किसानों का मुद्दा है। टीवी चैनल खालिस्तान समर्थक और देशद्रोह के आरोपियों की आंदोलन में घुसपैठ होने की बात कर ही रहे हैं। छत्तीसगढ़ के किसान संगठन कानून के खिलाफ तो हैं पर यहां प्रतिरोध का स्वर धीमा ही है। कांग्रेस ने साथ न दिया होता तो शायद भारत बंद भी यहां सफल नहीं होता। इसकी एक वजह यह भी हो सकती है कि किसान धान बेचने में व्यस्त है। आम तौर पर किसानों की निर्भरता धान पर है, सोसाइटियां सशक्त हैं और सरकारी खरीद के प्रति आश्वस्त, संतुष्ट भी हैं।
इस बात आकलन करने की जरूरत उन्होंने महसूस नहीं की है कि कानून का असर छत्तीसगढ़ में कैसा होने वाला है। राज्य सरकार ने कृषि कानूनों को निष्प्रभावी बनाने के लिये विधानसभा का विशेष सत्र बनाकर नया बिल पारित किया है पर वह राज्यपाल के पास रुका है। छत्तीसगढ़ सरकार भी इस बिल के रुके रहने पर बेचैनी महसूस नहीं कर रही है। कार्पोरेट ने अभी केन्द्र के बिल को लेकर छत्तीसगढ़ में धावा नहीं बोला है, इसलिये सब निश्चिन्त दिखाई दे रहे हैं।