राजपथ - जनपथ
दिग्विजय की कोशिशें
वैसे तो मप्र के पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह, वोरा परिवार से मिलने आए थे, मगर यहां आने के बाद कांग्रेस में चल रही खींचतान को भी दूर करने की कोशिश की। सीएम भूपेश बघेल हो या फिर टीएस सिंहदेव, यहां कांग्रेस के सभी बड़े नेता दिग्विजय सिंह के करीबी माने जाते हैं। दिग्विजय सिंह ने पीसीसी से पहले अपने आने की सूचना टीएस सिंहदेव के दफ्तर को भेज दी थी। दिग्विजय भोपाल से दुर्ग में उतरे, तो वहां सिंहदेव भी मिलने पहुंचे थे।
वोरा परिवार से मिलने के बाद दिग्विजय, सिंहदेव के साथ दुर्ग से रायपुर आए। रायपुर आए, तो कुछ देर रूकने के बाद कुलदीप जुनेजा के आग्रह पर उनके देवेन्द्र नगर कार्यालय के लिए निकले। ड्राइविंग सीट पर टीएस सिंहदेव थे, और बगल सीट पर दिग्विजय सिंह। दोनों निकल रहे थे कि संगठन के प्रमुख पदाधिकारी भी कार में बैठ गए। चूंकि संगठन पदाधिकारी दिग्विजय सिंह के भी बेहद करीब माने जाते हैं। ऐसे में दोनों ही उन्हें कार में बैठने से मना नहीं कर पाए।
चर्चा है कि संगठन नेता एक तरह से कबाब में हड्डी बन गए। लिहाजा, कार में ज्यादा कुछ बात नहीं हो पाई। बाद में दिग्विजय और सिंहदेव की अलग से चर्चा हुई। दिल्ली रवाना होने से पहले दिग्विजय सिंह सीएम हाउस भी गए, और वहां सीएम के साथ मंत्रणा हुई। चर्चा का ब्यौरा तो नहीं मिल पाया, लेकिन अंदाज लगाया जा रहा है कि भूपेश और सिंहदेव के बीच आपसी समझबूझ को कायम रखने की कोशिश की है।
बालको के बाद अब नगरनार
नगरनार संयंत्र के निजीकरण की प्रक्रिया निरस्त करने के शासकीय संकल्प पर चर्चा के दौरान कई बातेें विधानसभा में सुनने को मिलीं। पिछली सरकार भी नगरनार संयंत्र के निजीकरण के खिलाफ थी, और केन्द्र को अवगत कराया था कि प्लांट के निजीकरण से नक्सल समस्या बढ़ेगी। मौजूदा सरकार का भी यही रूख है। निजीकरण पर चर्चा के दौरान विपक्षी सदस्यों ने गेंद सरकार के पाले में डालते हुए सलाह दे दी कि निजी हाथों में जाने से पहले सरकार उसे खरीद ले। सीएम ने तुरंत गेंद लपक ली, और ऐलान कर दिया कि सरकार संयंत्र खरीदने के लिए तैयार है।
निजीकरण की मुखालफत से भूपेश सरकार को पॉलिटिकल माइलेज मिल सकता है। मगर क्या सरकार नगरनार खरीद पाएगी? यह सवाल राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय है। नगरनार के लिए 20 हजार करोड़ की जरूरत होगी, जिसे जुटाना सरकार के लिए आसान नहीं है। जोगी सरकार ने भी बालको के निजीकरण का जमकर विरोध किया था, उस समय भी राज्य सरकार ने उसे खरीदने का प्रस्ताव दिया था। मगर बालको वेदांता के पास चला गया। अब नगरनार संयंत्र सज्जन जिंदल के पास चले जाए, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। वैसे भी सरकार ने निजीकरण का विरोध कर और खरीदने का प्रस्ताव देकर अपना कर्त्तव्य तो पूरा कर लिया है।
साल की विदाई की गाइडलाइन
देर से ही सही न्यू ईयर सिलेब्रेशन के लिये प्रशासन ने गाइडलाइन जारी कर दी है। गाइडलाइन के ज्यादातर बिन्दु इसके पहले के उत्सवों और पार्टियों की तरह ही हैं। जैसे, क्षमता से केवल 50 प्रतिशत मेहमान होंगे, सोशल डिस्टेंस, मास्क तथा सैनेटाइजर का प्रयोग करना होगा, एक रजिस्टर रखना होगा जिसमें सबके नाम और मोबाइल फोन नंबर नोट करना होगा। पर गाइडलाइन के कुछ निर्देश डांस और मस्ती में बाधा डालने वाली है जैसे आयोजन स्थल पर सीसीटीवी कैमरा लगे होंगे और उत्सव की वीडियोग्रॉफी कराना जरूरी किया गया है।
बहुत से लोग होंगे जो नहीं चाहते उन्हें खाते, पीते, डांस करते वीडियोग्रॉफी की जाये। नाम और मोबाइल नंबर बताना भी जरूरी है जिसे भी लोग अपनी निजता का हवाला देते हुए नहीं बताना चाहेंगे। किसी तरह का मंच बनाने या पंडाल लगाने की मनाही भी की गई है। ऐसे में स्टेज प्रोग्राम कैसे होंगे और इसके बिना क्या रंग जमेगा? यह सवाल भी लोगों के दिमाग में है। बहुत से लोग परिवार के साथ इन कार्यक्रमों में पहुंचना चाहते हैं पर बच्चों और बुजुर्गों को प्रवेश नहीं देने का नियम बनाया गया है। ऐसे में बहुत से लोग बाहर निकलकर न्यू ईयर मनाने से परहेज कर सकते हैं।
हां, एक छूट जरूर दी गई है कि मदिरा प्रेमियों पर कोई प्रतिबंध नहीं है। पाबंदी सिर्फ पान, गुटखा तम्बाकू पर लगाई गई है। कई आयोजक इसी बात से खुश हैं कि आयोजन की अनुमति तो कम से कम मिल ही गई है। गाइडलाइन की परवाह कौन करे। पहले भी 50 की पार्टियों में 200-300 लोग पहुंचते रहे हैं कोई सख्ती तो हुई नहीं। फिर ये दिन तो मनहूस साल 2020 की विदाई का है। कुल जमा बात है कि कोरोना के खौफ से लोग बाहर आना चाहते हैं।