राजपथ - जनपथ
प्रदर्शन का क्या हुआ?
भाजपा संगठन में अंदरूनी खींचतान जारी है। नेताओं के आपसी झगड़े की वजह से कुछ तय कार्यक्रम भी नहीं हो पा रहे हैं। मसलन, पिछले दिनों सीएम के विधानसभा क्षेत्र पाटन में सांसद विजय बघेल अपने समर्थक कार्यकर्ताओं के खिलाफ पुलिसिया कार्रवाई के विरोध में अनशन पर बैठे थे। पूर्व सीएम रमन सिंह, नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक समेत पार्टी के सांसद और विधायक वहां पहुंचे, और विजय बघेल का समर्थन किया।
चूंकि तीन दिन हो चुके थे, और शासन-प्रशासन की तरफ से कोई हलचल नहीं हो रही थी। इसलिए विजय बघेल के स्वास्थ्य पर चिंता जताते हुए पार्टी नेताओं ने किसी तरह उन्हें मनाकर अनशन खत्म कराया। यह तय किया गया कि जल्द ही प्रदेश स्तर पर पुलिसिया कार्रवाई के विरोध में एक बड़ा प्रदर्शन किया जाएगा। हाल यह है कि बघेल के अनशन खत्म हुए महीनेभर हो चुके हैं, लेकिन पार्टी अब तक प्रदर्शन कार्यक्रम तय नहीं कर पाई है। विजय बघेल समर्थक कार्यकर्ता अभी भी जेल में हैं। वैसे भी दुर्ग-भिलाई में भाजपा संगठन के सभी बड़े नेताओं को एक मंच पर लाना बेहद कठिन माना जाता है।
लेकिन भाजपा की ही बात क्यों करें, दुर्ग जिला कांग्रेस के हिसाब से भी प्रदेश में सबसे भारी, सबसे जटिल जिला माना जाता है. हमेशा ही इसी एक जिले से कांग्रेस के सबसे अधिक मंत्री, पदाधिकारी रहते आये हैं. एक वक्त तो कांग्रेस की सबसे बड़ी गुटबाजी दुर्ग में ही चलती थी।
दिल्ली से आया मेरा दोस्त...
कांग्रेस के एक राष्ट्रीय पदाधिकारी को उत्तरप्रदेश तैनात किया गया है। पार्टी की हालत यहां दीवालिया है, और सोनिया परिवार की प्रतिष्ठा इसी प्रदेश से जुड़ी हुई है। उन्होंने एक अनौपचारिक चर्चा के दौरान बताया कि यूपी के कांगे्रस नेताओं की समझ में यह बात आ ही नहीं पा रही है कि उन्हें दूसरे कांग्रेसियों से नहीं लडऩा है, उन्हें सपा, बसपा, और भाजपा से लडऩा है। कांग्रेस संगठन को लेकर उनका कहना था कि नेताओं की ताकत राहुल गांधी को मनाने में लग रही है कि वे पार्टी की लीडरशिप लेने तैयार हो जाएं। लेकिन अगर ऐसा नहीं भी होता है, तो भी पार्टी की प्रियंका गांधी से बड़ी उम्मीदें हैं।
अब इस महत्वपूर्ण पदाधिकारी की बातों का कोई वजन है, तो यह बात लगती है कि राहुल के अड़े रहने पर पार्टी के नेता प्रियंका के नाम को आगे बढ़ा सकते हैं।
दो चुनावों के बीच संगठन की बारी...
छत्तीसगढ़ अभी किसी भी किस्म के चुनाव से तीन बरस दूर है। तीन बरस बाद पहला चुनाव विधानसभा का होगा, और उसके बाद लोकसभा और म्युनिसिपल-पंचायत के चुनाव। विधानसभा का छोटा सा सत्र निपट चुका है, और संसद ने लगने से इंकार कर दिया है। ऐसे में इस प्रदेश में दोनों प्रमुख दलों, कांग्रेस और भाजपा के लोग संगठन के काम में लगे हैं। कांग्रेस के पास तो सरकार के नाते भी कुछ काम है, लेकिन भाजपा के पास सिर्फ संगठन है। नतीजा यह है कि दोनों ही पार्टियों में संगठनों की बैठक चल रही हैं, संगठनों के जिला और ब्लॉक स्तर तक पदाधिकारी मनोनीत करने का सिलसिला चल रहा है। कुल मिलाकर दोनों पार्टियां अपना घर मजबूत कर रही हैं, यह दो चुनावों के बीच का इस काम का सही मौका भी है। फिर भाजपा में तो छत्तीसगढ़ के प्रदेश प्रभारी भी बदले गए हैं, और नए लोगों को पकड़ भी बनानी है। गैरचुनावी बरसों में संगठन की सांस चलती रहे, उसके लिए कुछ न कुछ किया जा रहा है। बीते बरसों में भाजपा ने देश भर में पार्टी ऑफिस बना लिए हैं, और अब छत्तीसगढ़ में कांग्रेस जिलों में कांग्रेस भवन बनाने में लगी है।
न्याय और अन्याय
जिस तरह से केंद्र सरकार ने धान उठाने पर पाबंदी लगाई है वह हैरान करने की बात है। छत्तीसगढ़ सरकार ने पहले भी यह अनुरोध किया था कि समर्थन मूल्य पर धान खरीदी के अलावा बाकी घोषणा के अनुरूप अतिरिक्त राशि केंद्र से मिल जाए। वह तो मिला नहीं, उल्टे अब यह कहा गया है कि समर्थन मूल्य से ज्यादा राशि देने के कारण धान नहीं उठाया जाएगा। किसी भी बहाने से किसानों के हाथ में कोई रकम दी जा रही है तो उस पर दिक्कत किसी को क्यों होनी चाहिए? धान नहीं उठाने के एफसीआई के फरमान के बाद अब यह देखना दिलचस्प होगा कि राज्य सरकार इस गंभीर समस्या का कैसे समाधान करने वाली है।
टीका लगवाए न लगवाएं
मॉक ड्रिल के दौरान रायपुर में जिन दो लोगों को टीका लगवाया गया उनमें से एक की तबीयत बिगड़ गई और उसको तत्काल एंबुलेंस से हॉस्पिटल में दाखिल करना पड़ा। कोरोना वैक्सीन को लेकर के जितना उत्साह जिला प्रशासन और सरकार में दिखाई दे रहा है वह आम लोगों के बीच नहीं है। एक टीवी चैनल ने अभी-अभी एक सर्वे में बताया था कि लोगों को कोरोना के इलाज के अलावा कोरोना के वैक्सीन के भी साइड इफेक्ट को लेकर बड़ी चिंता है। यह रिपोर्ट तो यह कहती है कि 70 फ़ीसदी लोग कोरोना वैक्सीन लगावाना ही नहीं चाहते। मॉक ड्रिल में ही तबीयत बिगडऩे की खबर आना लोगों को और दहशत में डाल रहा है।