राजपथ - जनपथ
112, गमले, और हरकत...
पुलिस का काम आमतौर पर रूखा-सूखा होता है। लेकिन राजधानी रायपुर के पुलिस कंट्रोल रूम में सजे हुए ये गमले तब बनाए गए थे जब पुलिस ने 112 नाम की एक नई आपात सेवा शुरू की थी। इन्हीं गाडिय़ों के हुलिये में ऐसी छोटी-छोटी खिलौना-गाडिय़ां सरीखी बनाकर उनके गमले बनाए गए थे।
पुलिस की यह सेवा सडक़ों पर दिखती है, और फोन करने पर तेजी से पहुंचती भी है। इसके जिम्मेदार अफसरों को यह भी तय करना चाहिए कि सडक़ किनारे जगह-जगह खड़ी 112 गाडिय़ों में बैठे पुलिस कर्मचारी या निजी ड्राइवर खिड़कियों से बाहर थूकने से रोके जाएं। जब सरकार की जानी-पहचानी गाड़ी में बैठकर लोग ऐसी हरकत करते हैं, तो वह गमले के फूल जैसी अच्छी तो नहीं लगती।
तब कुछ नहीं हुआ तो भला अब क्या होगा?
भाजपा और कांग्रेस में बहुत फर्क है, खासकर अनुशासन के नाम पर। बिलासपुर में कांग्रेस विधायक शैलेश पांडे और ब्लॉक कांग्रेस अध्यक्ष तैयब हुसैन के बीच हुए विवाद की इन दिनों बड़ी चर्चा है। विधायक ने हुसैन पर कॉलर पकडक़र धमकी देने का आरोप लगाया। उन्होंने अगले ही दिन रायपुर जाकर के प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष सहित कई मंत्री नेताओं को इसकी शिकायत कर दी और जांच की मांग की। जांच के लिए टीम पहुंच भी गई और अपनी रिपोर्ट लेकर चली गई। जांच टीम छत्तीसगढ़ भवन के एक कमरे के भीतर बड़ी गंभीरता से दोनों नेताओं और उनके समर्थकों का बयान दर्ज कर रही थी और बाहर दोनों ही टीमों के लोग आपस में हंसते बतियाते रहे। ऐसा लग ही नहीं रहा था कि कांग्रेसी किसी दिक्कत में हैं।
एक का कहना था कि यह भी एक शक्ति प्रदर्शन का तरीका है। विधायक ने देख लिया कि उनका साथ देने के लिए कौन-कौन लोग पहुंचे, दूसरी तरफ ब्लॉक अध्यक्ष ने भी जान लिया कि उनके सिर पर अपने नेता का हाथ है या नहीं।
सवाल उठा कि जांच कमेटी क्या रिपोर्ट बनायेगी और क्या सचमुच कोई कार्रवाई किसी पर होगी? विधायक बड़ी भावुकता के साथ कह रहे हैं कि न्याय चाहिए। मतलब, कड़ी कार्रवाई। दूसरा पक्ष उनकी बात पर प्रतिक्रिया दे रहा था कि ऐसा हरगिज़ नहीं होने वाला।
याद दिलाया कि यह तो विधायक के साथ हुई बदसलूकी की बात है। सन 2018 की बिलासपुर की छठ पूजा में पहुंचे मुख्यमंत्री के बारे में तो हमारे ही ग्रुप के एक नेता ने अनर्गल बातें कह दी थी। उसका तो वीडियो भी वायरल जगह-जगह हो चुका है। उसे ना केवल बख्श दिया गया बल्कि मरवाही चुनाव में भी जिम्मेदारी दी गई। हमेशा से कांग्रेस ऐसे ही चलती आई है और चलती रहेगी।
निजी अस्पताल छुट्टी पाने के फिराक में
जब कोरोना संक्रमण का संकट गहरा गया था और सरकारी अस्पतालों में बिस्तरों की कमी पडऩे लगी थी तो प्रदेश भर में निजी अस्पतालों को भी कोरोना का इलाज करने की छूट दी गई। थोड़े ही दिनों बाद शिकायत आने लगी की इलाज के नाम पर भारी-भरकम फीस ली जा रही है। शिकायत हुई, जांच हुई पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो पाई। वजह यह थी कि कोरोना के नाम पर तो निर्धारित फीस ही ली जा रही थी लेकिन उसके अलावा दूसरी बीमारियां भी बताकर बिल बढ़ाया जा रहा था। ऐसा सभी निजी अस्पतालों में भले ही ना हो रहा हो लेकिन कई के खिलाफ तो बड़ी गंभीर शिकायतें स्वास्थ्य विभाग को मिली। यही नहीं सरकारी सेटअप वाले कोविड अस्पतालों के मुकाबले निजी अस्पतालों में औसत मौतें कहीं ज्यादा हुई। कोविड के नाम पर दूसरे मरीज भर्ती होने से कतराते थे।
इधर अस्पतालों की अभी स्थिति यह हो गई है कि ना तो अब वहां कोरोना के मरीज रह गए हैं और ना ही दूसरे पहुंच रहे हैं। अब वे स्वास्थ्य विभाग से फरियाद कर रहे हैं कि हमारा कोरोना वार्ड हटा दिया जाए। कुछ निजी अस्पताल तो बकायदा विज्ञापन दे रहे हैं कि हमारे यहां कोरोना मरीज नहीं है और सामान्य मरीजों की भर्ती चालू हो गई है।
वंश खत्म होने का नाम वंश!
लोग आमतौर पर कारोबार का नाम बड़ा सोच-समझकर रखते हैं। लेकिन अभी भी छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में वंश चिकन एवं एग शॉप का बोर्ड दिखा। अब चिकन की तो जिंदगी ही कुछ दिनों की रहती है जब तक ग्राहक उसे ले न जाए, और खा न ले। वही हाल अंडे का रहता है। शायद ही कहीं एक-दो दिनों से ज्यादा अंडा दुकान पर रहता हो, वह भी छोटी सी जिंदगी वाला रहता है, और उसका भी वंश आगे नहीं बढ़ता। अब जो चिकन अपने वंश का आखिरी प्राणी रहता है, उसकी दुकान का नाम वंश रहना कुछ हैरान भी करता है।
पुलिस का सर्वर बैठ गया
चिप्स और एयरटेल के बीच बिल के भुगतान को लेकर पैदा हुए विवाद का प्रदेश भर के थानों में बड़ा बुरा असर पड़ा है। खास करके वे थाने जहां बड़ी संख्या में रोजाना एफ आई आर दर्ज की जाती है। बीते 10-12 दिनों से सर्विस बंद है और एफ आई आर ऑनलाइन अपलोड ही नहीं हो रही है। इसके अलावा पुलिस की ट्रैकिंग नेटवर्क प्रणाली भी जाम हो गई है जो अपराध सुलझाने और अपराधियों की गतिविधियों को पकडऩे में मददगार होती है। कोई अगर ऑनलाइन एफ आई आर पुलिस की पोर्टल में जाकर देखना चाहे तो इस समय नहीं देख पाएंगे। पुलिस जैसे संवेदनशील विभाग की इंटरनेट जैसी अत्यंत आवश्यक सेवा का लगातार इतने दिनों से बंद रहना हैरान करता है। स्मार्ट पुलिसिंग, साईबर एक्सपर्ट पुलिसिंग, हाइटेक पुलिसिंग, इन सब का क्या हो रहा है?