राजपथ - जनपथ
अफवाह, निगरानी, और चौकन्नापन
कहीं पर कांग्रेस पार्टी की सरकार, या कोई दूसरी सत्तारूढ़ पार्टी खुद की हरकतों से कमजोर होती है, तो कहीं पर कोई दूसरी ताकतवर पार्टी सच और झूठ दोनों जरियों से सरकारों को कमजोर करने की कोशिश करती है। बंगाल में रोज सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस से किसी के जाने की खबरें उड़ती हैं, कोई-कोई जाते भी हैं, और कोई ऐसी खबरों को अफवाह साबित करते हुए पार्टी में बने भी रहते हैं।
छत्तीसगढ़ में भी पर्दे के पीछे से कोई राजनीतिक दल, और जाहिर तौर पर सामने से वॉट्सऐप पर अभियान चलाने वाले लोग प्रदेश की कांग्रेस सरकार के भीतर बेचैनी को साबित करने के लिए तरह-तरह की बातें पोस्ट करने में लगे हुए हैं।
अभी सुबह एक सनसनीखेज ब्रेकिंग न्यूज के अंदाज में वॉट्सऐप संदेश लोगों तक पहुंचा कि छत्तीसगढ़ सरकार के एक वरिष्ठ और बहुचर्चित कैबिनेट मंत्री भाजपा के केन्द्रीय नेताओं से मेल-मुलाकात में लगे हैं। यह भी लिखा गया कि इस कैबिनेट मंत्री ने हाल ही में केेन्द्रीय गृहमंत्री से लंबी बैठक की है। यह भी लिखा गया कि वे लंबे समय से सरकार से असंतुष्ट चल रहे हैं, और भाजपा नेताओं से मेल-मुलाकात करके नई राजनीतिक उठापटक कर रहे हैं। सबसे ताजा सनसनीखेज बात इसमें यह जोड़ी गई है कि बीती रात ही इस असंतुष्ट मंत्री ने एक नए नंबर से भाजपा के एक ताकतवर केन्द्रीय मंत्री से 50 मिनट तक बात की है।
इस बारे में प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री टी.एस. सिंहदेव से पूछा गया तो उन्होंने मुस्कुराते हुए जवाब दिया कि उन्हें भी यह संदेश मिल चुका है, और यह फूहड़ और बचकाना समाचार बनाकर झूठ फैलाने का काम किया जा रहा है।
फिलहाल राज्य में जो लोग अपने फोन टैप होने की आशंका में डूबे हुए हैं वे पहले तो वॉट्सऐप कॉल पर बात करना सुरक्षित समझते थे, अब कई महीनों से ये लोग आईफोन के फेसटाईम के अलावा किसी और कॉल पर बात नहीं करते क्योंकि अमरीका में एक आतंकी के गिरफ्तार होने पर भी वहां की सबसे बड़ी एजेंसी एफबीआई आईफोन की बातचीत तक नहीं पहुंच पाई थी। अब छत्तीसगढ़ के छोटे-छोटे लोगों में अमरीका की एफबीआई से अधिक तो किसी और बड़ी एजेंसी की दिलचस्पी होनी नहीं चाहिए, फिलहाल लोग अपने आपको महत्वपूर्ण मानते हुए फेसटाईम से और अधिक सुरक्षित कोई जरिया ढूंढ सकते हैं।
हवालात के बिना गिरफ्तारियां
हजारों की संख्या में कल गिरफ्तारियां हो गई और किसी के माथे पर कोई शिकन नहीं। न तो पुलिस को और न ही भाजपा के कार्यकर्ताओं को असहज स्थिति का सामना करना पड़ा। सरकार तो बेफिक्र है ही। यह सब एक रस्म अदायगी थी जो हर सरकार में विपक्षी पार्टियां निभाती आई हैं।
हर जिले में कलेक्ट्रेट गतिविधियों का मुख्य केन्द्र होता है। कलेक्टर ऑफिस के अलावा कचहरी, रजिस्ट्री, एसपी ऑफिस वगैरह भी आसपास होते हैं। पुलिस ने रायपुर, बिलासपुर, राजनांदगांव, रायगढ़ आदि में कलेक्टोरेट के घेराव के ऐलान को देखते हुए चारों और बेरिकेड्स लगा रखे थे और रास्तों को डायवर्ट कर रखा था। परेशान हुई तो सिर्फ आम जनता। उन्हें जगह-जगह पुलिस बता रही थी कि यहां से मत गुजरो, उस रास्ते को पकड़ो। गिरफ्तारियां ऐसी रहीं कि स्टेडियम, मैदान में सब एक जगह इक_े हुए भाजपा नेताओं ने पुलिस को एक सूची थमा दी गई, सबकी गिरफ्तारी मान ली गई, सुर्खियां बन गई। सरकार पर इसका कोई असर हुआ हो या न हो, भाजपा को अपने कार्यकर्ताओं को रिचार्ज करने का मौका मिला और प्रभारी यही तो चाहती थीं।
धान खरीदी के आंकड़े छिप गये
धान खरीदी में इस बार फिर छत्तीसगढ़ का रिकार्ड टूटने जा रहा है। अभी तक 80 लाख मीट्रिक टन से अधिक धान खरीदा जा चुका है और इसके आखिरी तारीख 31 जनवरी तक तय लक्ष्य 90 लाख या उससे ऊपर पहुंच जाने की संभावना है। इतनी बड़ी उपलब्धि के बावजूद धान खरीदी के डेटा ऑनलाइन दिखाई नहीं दे रहे हैं। हर बार सहकारी बैंक, खाद्य विभाग और मार्कफेड के पास पूरा रिकॉर्ड रोजाना अपडेट होता था कि आज कितना धान खरीदा गया और अभी तक कुल खरीदी कितनी हुई। पोर्टल में इसका अपडेट भी मिल जाया करता था। धान खरीदी की शुरूआत तक यह व्यवस्था इस बार भी मौजूद थी पर मार्कफेड ने अचानक इसे अपडेट करना बंद कर दिया है। सवाल उठ रहा है कि आखिर ऐसा क्यों? धान खरीदी के आंकड़े तो शानदार है और यह विपक्ष को जवाब देने के लिये भी अनुकूल है। अब जानकारी मिल रही है कि पोर्टल में खरीदी के अलावा धान के परिवहन, उठाव और मिलिंग के आंकड़े भी दर्ज किये जाते हैं। खरीदी के आंकड़े तो अच्छे हैं पर बाकी आंकड़ों के सार्वजनिक होने से विफलता उजागर हो जायेगी।
गुमनाम शिकायतें अब रद्दी की टोकरी में
पुलिस महकमे ने तय किया है कि अब वह गुमनाम शिकायतों पर कोई कार्रवाई नहीं करेगी। पुलिस मुख्यालय से सभी जिलों में पुलिस अधिकारियों को भेजे गये पत्र में कहा गया है ऐसी शिकायतों को अब रद्दी की टोकरी में डाला जाये। होता यह है कि गुमनाम शिकायतें कई बार दुर्भावनावश कर दी जाती है और आवक-जावक रजिस्टर में दर्ज होने के कारण जांच की औपचारिकता भी पूरी करनी पड़ती है। जांच के लिये शिकायतकर्ता से कुछ साक्ष्य जुटाने की जरूरत पड़ती है तो उनका भी पता नहीं चलता है। ज्यादातर ऐसे मामले कोर्ट तक पहुंच नहीं पाते क्योंकि डायरी पेश करने के लिये आवश्यक दस्तावेज उपलब्ध नहीं हो पाते।
पुलिस ने यह तो ठीक ही किया लेकिन दूसरी तरफ लोग लिखित शिकायत भी लेकर आते हैं फिर भी दिनों, महीनों उनकी जांच नहीं की जाती। पुलिस विभाग का एक स्थायी आदेश है कि कोई व्यक्ति यदि एफआईआर दर्ज कराने के लिये आता है तो वह जरूर दर्ज किया जाये, पर कई बार होता है कि फरियादी की संतुष्टि के लिये लिखित शिकायत लेकर उसे पावती दे दी जाती है। पीएचक्यू से एक आदेश यह भी निकलना चाहिये कि गुमनाम शिकायतों कार्रवाई न करना हो तो नहीं करें, लेकिन जो नाम, पता, दस्तखत के साथ शिकायत दे गया हो, उसकी जांच तय समय पर जरूर करे।