राजपथ - जनपथ
मंदिर के लिए शहर से ज्यादा गांवों में
अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए बड़े पैमाने पर चंदा हो रहा है। भाजपा चंदा एकत्र करने के लिए अभियान चला रही है। चर्चा है कि पार्टी नेताओं में पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल चंदा जुटाने में सबसे आगे रहे हैं। बृजमोहन ने पिछले दिनों चंदा एकत्र करने के लिए अपने निवास पर रात्रि भोज का आयोजन किया था।
बृजमोहन की पार्टी में विहिप के अंतरराष्ट्रीय उपाध्यक्ष चंपत राय विशेष तौर पर मौजूद थे। पार्टी में उद्योगपति कमल सारडा, राजेश अग्रवाल, बड़े ज्वेलरी कारोबारी और सिंचाई-पीडब्ल्यूडी के बड़े ठेकेदार मौजूद थे। सुनते हैं कि मंदिर निर्माण के लिए कारोबारियों ने उदारतापूर्वक सहयोग किया।
चर्चा है कि पार्टी में ही करीब एक करोड़ एकत्र कर लिए गए। वैसे केन्द्र सरकार ने मंदिर निर्माण के लिए दान पर 50 फीसदी आयकर छूट दे दी है। इस वजह से भी बड़े कारोबारी सहयोग में पीछे नहीं हट रहे हैं। एक मंदिर के कोषाध्यक्ष ने तो 51 लाख रूपए दान किए।
चेम्बर के एक पूर्व अध्यक्ष ने अपने साथियों के साथ मिलकर 11 लाख एकत्र कर दिए हैं। ये बात अलग है कि कुछ से ज्यादा सहयोग की अपेक्षा थी, लेकिन वे उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पा रहे हैं। एक उद्योगपति से 51 लाख की उम्मीद थी, लेकिन उन्होंने 21 लाख से ज्यादा सहयोग करने में असमर्थता जता दी है। उन्हें मनाने की कोशिशें चल रही हैं। चंदा जुटाने के अभियान में लगे नेताओं का मानना है कि शहर से ज्यादा गांवों में मंदिर निर्माण के लिए सहयोग मिल रहा है। गांव के लोग बिना मांगे सहयोग के लिए आगे आ रहे हैं। भाजपा के लोगों को इस अभियान से बड़े राजनीतिक फायदे की भी उम्मीद नजर आ रही है।
आगे भी जारी रहेगा
विश्व हिन्दू परिषद ने राम मंदिर के लिए चंदा जुटाने के अभियान से 14 करोड़ परिवारों को जोडऩे की रणनीति बनाई है। करीब साढ़े 4 करोड़ परिवारों से 10 रूपए सहयोग राशि ली जाएगी। इसके बाद साढ़े 4 करोड़ लोगों से सौ रूपए से एक हजार तक राशि ली जाएगी। करीब 20 लाख लोग ऐसे होंगे, जो कि एक करोड़ तक सहयोग राशि देंगे।
छत्तीसगढ़ से ही 51 करोड़ रूपए जुटाने का लक्ष्य है। बृजमोहन की पार्टी में विहिप के उपाध्यक्ष चंपत राय की तारीफों के पुल बांधते हुए अजय चंद्राकर ने कहा कि चंपत रायजी पिछले 29 साल से राम मंदिर निर्माण के अभियान में लगे हैं। राम मंदिर का काम पूरा होने के बाद वे मथुरा-काशी के अभियान में जुट जाएंगे। यानी सहयोग राशि जुटाने का अभियान आगे भी जारी रहेगा।
छत्तीसगढ़ी बोलने पर सजा?
छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद छत्तीसगढ़ को सरकारी कामकाज की भाषा बनाने, प्रायमरी स्कूल में पढ़ाई का माध्यम बनाने जैसी मांगे भाषा को लेकर आंदोलन करने वालों ने कई बार मांग उठाई। विधानसभा में कभी-कभी छत्तीसगढ़ी में चर्चा, वक्तव्य देकर हमारे जनप्रतिनिधि भी चर्चा में आते रहते हैं। सरकारी दफ्तरों में आवेदन छत्तीसगढ़ी में स्वीकार करने का आदेश हो चुका है, अधिकारियों को छत्तीसगढ़ी सीखने के लिये सर्कुलर भी निकलता आया है। पर अब तक छत्तीसगढ़ी जहां थी, राज्य बनने के बाद उससे बहुत आगे बढ़ी नहीं।
नेताओं की पब्लिक मीटिंग को छोड़ दें तो, अब भी छत्तीसगढ़ी जानने वाले बहुत से लोग इसे बोलना अपनी शान के खिलाफ समझते हैं और जो समझते हैं वे भी नहीं समझ पाने का अभिनय करते हैं। शायद ऐसा ही कुछ कांकेर के एक नर्सिंग कॉलेज में हो रहा है। जैसी खबर है, प्राचार्य छात्र-छात्राओं के लिये सजा तय कर देते हैं यदि वे उन्हें छत्तीसगढ़ी में बात करते हुए मिल जाती हैं। छात्र-छात्राओं ने आठ किलोमीटर पैदल चलकर बकायदा कांकेर आकर कलेक्टर से इसकी शिकायत की है। प्रताडि़त करने के कुछ और भी आरोप उन्होंने प्राचार्य पर लगाये हैं और उन्हें हटाने की मांग की है। देखें, शिकायतों की जांच और कार्रवाई क्या होती है।
और कितना जटिल होगा जीएसटी?
गुड्स एंड सर्विस टैक्स, जीएसटी को जितना आसान बताया गया था व्यापारियों और टैक्स सलाहकारों को इसमें उतनी ही ज्यादा जटिलता महसूस हो रही है। जीएसटी कैसे काम करेगा, इसकी फाइल कैसे दाखिल करनी है, इस पर सम्बन्धित विभागों के अधिकारी हर दो चार महीने में कार्यशाला रखते हैं पर उसके बाद फिर नियम बदल जाते हैं। इससे परेशान टैक्स सलाहकार अब आंदोलन पर उतर आये हैं। आल इंडिया एसोसिएशन के आह्वान पर छत्तीसगढ़ में भी ये सडक़ों पर निकले। सांसदों, विधायकों को भी ज्ञापन-आवेदन दिये। आंदोलन में व्यापारी भी साथ थे।
इनका कहना है कि ऐसे कानून का क्या फायदा? न तो सरकार को ज्यादा कलेक्शन बढ़ रहा है, न ही टैक्स चोरियां और फर्जी कंपनियों से कारोबार रुक रहा है। जीएसटी सर्वर भी धीमे काम करता है। इससे ज्यादा जल्दी तो कागज पेन से काम हो जाता था। व्यापारी और टैक्स सलाहकार क्या, खुद अधिकारी भी इसके नियम कायदे समझ नहीं पा रहे हैं, फिर भी चल रहा है। उन्होंने आंदोलन के लिये यह वक्त इसलिये चुना है ताकि बजट में वित्त मंत्री कुछ लचीला रुख अपनायें और इस बाबत कोई घोषणा करें। पर उन्हें डर भी है। हर बदलाव पहले भी टैक्स और रिटर्न क्लेम आसान करने के नाम पर किया गया लेकिन ऐसा हुआ नहीं।
कानूनी पेचीदगी और नये अफसर
राज्य प्रशासनिक सेवा, पुलिस सेवा के अधिकारियों को प्रोबेशन के समय निचले स्तर से लेकर ऊपर तक के विभागीय कामकाज के तरीके बताये जाते हैं। कुछ दिनों तक वे नीचे के दफ्तरों का प्रभार संभालते हैं, पर ऐसा लगता है कि यह काफी नहीं है। शिक्षण प्रशिक्षण युवा अधिकारियों को कुछ ज्यादा मिलना चाहिये।
हाल ही में दो महिला पुलिस अधिकारियों ने गलतियां की। एक मामले में तो हाईकोर्ट में पेश होना पड़ा। दूसरे मामले ने तूल नहीं पकड़ा, बच गईं। धोखाधड़ी के एक मामले में हाईकोर्ट ने शासन को निर्देश दिया था कि पीडि़त व्यक्ति का बयान लिया जाये और कोर्ट के सामने पेश किया जाये। हाईकोर्ट में शासन का प्रतिनिधि सीधे सरकार का पक्ष या दस्तावेज पेश नहीं करता। उसे महाधिवक्ता कार्यालय के रास्ते से जाना होता है, पर जांजगीर पुलिस ने इस मामले में पीडि़त का बयान, हलफनामा के साथ सीधे हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार के पास भेज दिया। हाईकोर्ट ने एसपी को हाजिर होने का फरमान जारी कर दिया। एसपी ने हाईकोर्ट पहुंचकर गलती मानी और बताया कि यह एडिशनल एसपी की वजह से हुई।
दूसरा मामला उज्ज्वला होम बिलासपुर का है। सीएसपी ने पीडि़त युवतियों का खुद ही बयान ले लिया और वीडियो रिकॉर्डिंग कर संतुष्ट हो गईं। पुलिस की फजीहत तब हुई जब दूसरे दिन युवतियों ने मीडिया के सामने आकर उज्ज्वला के संचालकों पर दुष्कर्म, यौन दुर्व्यवहार और नशीली दवा देने का आरोप लगाया। अगले दिन जब यह खबर प्रमुखता से अखबारों में आई तो आनन-फानन में पुलिस को इन युवतियों का मजिस्टीरिअल बयान दर्ज कराना पड़ा। वहां भी युवतियों ने मीडिया में कही गई बातें दुहराईं । कुछ ही घंटों के भीतर पुलिस को उज्ज्वला होम के संचालक को तथा अगले दिन वहां की तीन महिला कर्मचारियों को गिरफ्तार करना पड़ा। पुलिस पर आरोप भी लगे वह उज्ज्वला होम के संचालकों को बचा रही है। शायद पहले ही बयान दर्ज करने में मजिस्ट्रेट की मदद ले ली जाती तो यह नौबत नहीं आती।
लाखों पौधे कहां लगे, जवाब नहीं
राज्य सरकार हो या केन्द्र सरकार के उपक्रम। हरियाली के नाम पर फर्जीवाड़ा आम बात है। कुछ साल पहले एक अध्ययन में दावा किया गया था कि यदि छत्तीसगढ़ में जितने पौधे सरकारी अभियानों के तहत लगाने का दावा अब तक किया गया है उनमें से 20 फीसदी भी पेड़ बच जाते तो आज छत्तीसगढ़ में कोई खाली जमीन बचती ही नहीं। पिछली सरकार में एक जिले के कलेक्टर ने 50 लाख पौधे लगाने का अभियान चलाया। डीएमएफ फंड का इसके लिये खूब इस्तेमाल किया गया। उससे और पीछे जायें तो उदाहरण एक करोड़ से ऊपर पौधों का भी मिल जायेगा। खनन क्षेत्रों में पौधे उजाडऩे के बाद उससे दस गुना अधिक पौधे लगाने की बात की जाती है, पर वे सिर्फ कम्पनियों के दफ्तर के आसपास और उनके कैम्पस, कॉलोनियों में दिखाई पड़ते हैं। धुआं उगलने वाले संयंत्रों को भी बाध्यता है कि वे पौधे लगाने के आंकड़ों को दुरुस्त रखें। इसीलिये एनटीपीसी सीपत के अधिकारियों ने एक पत्रकार वार्ता ली पर्यावरण संरक्षण के लिये 10 लाख पौधे लगाने का दावा किया और अपनी उपलब्धि की तरह पेश किया। पत्रकारों ने सवाल किया कि वे 10 लाख पौधे कहां लगे हैं, हम देखना चाहेंगे। हड़बड़ाये अधिकारियों ने कहा कि हमने सिर्फ तीन लाख लगाये, बाकी सात लाख लगाने के लिये रकम राज्य सरकार को दी। अब दूसरा सवाल उठा कि चलिये आपने जो तीन लाख लगाये वे कहां हैं बता दीजिये, जाहिर है, जवाब कुछ नहीं मिला।