राजपथ - जनपथ
अफसर है कि अंगद का पाँव !
रायपुर शहर के सटे तहसील में निर्माण विभाग के एक एसडीओ तीन दशक से अधिक समय से जमे हुए हैं। जब भी एसडीओ के ट्रांसफर की कोशिश हुई, धार्मिक संस्था से जुड़े प्रभावशाली लोग आड़े आ गए। कुछ समय पहले स्थानीय लोगों ने एसडीओ के खिलाफ ईएनसी को शिकायत भेजी।
शिकायत में एसडीओ कारगुजारियों का ब्यौरा था। यह भी बताया गया कि सरकारी जमीन पर कब्जा कर पहले मंदिर का निर्माण किया, और कॉम्पलेक्स भी बनवा लिया। इन शिकायतों पर अब तक कुछ नहीं हुआ। इतने साल से एक ही जगह पर हैं, तो कुछ बात तो होगी। सुनते हैं कि एसडीओ को हमेशा सत्ता और विपक्ष के जनप्रतिनिधि का साथ मिलता रहा है। यही वजह है कि उनका बाल बांका नहीं हो पाया।
जनप्रतिनिधियों के बीच एसडीओ की छवि उदार अफसर की है, जो कि यथा संभव सहयोग के लिए तैयार रहते हैं। दशहरा, दीवाली हो या नया वर्ष। एसडीओ अपने शुभ चिंतकों को महंगे गिफ्ट, मेवे का डिब्बा भेजने से नहीं चूकते। इस बार एसडीओ थोड़ी दिक्कत में हैं। वजह यह है कि नाराज ग्रामीणों के साथ विभाग के कई लोग भी जुड़ गए हैं, जो कि एसडीओ की जगह लेने के लिए तैयार बैठे हैं। ऐसे लोगों ने भी ईएनसी तक काफी कुछ जानकारियां भिजवाई हैं। देखना है कि इतना कुछ करने के बाद एसडीओ हट पाते हैं, अथवा नहीं।
बजट की आसान समीक्षा
कांग्रेस के एक नेता से बजट पर प्रतिक्रिया पूछी गई, उन्होंने कहा- जिहाल-ए-मस्ती मकुन-ब-रन्जिश, बहाल -ए-हिज्र बेचारा दिल है। ये गाना आज तक आप गा रहे हैं ना। बावजूद इसके कि आपको इसका मतलब समझ नहीं आता। तो फिर निर्मला सीतारमण का बजट भाषण सुनने में आपको क्या तकलीफ है?
तो फिर दाऊ वन कौन हैं?
स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव खुद ही बीच-बीच में कुछ चुटकियां, कुछ संकेत ऐसे दे देते हैं जिससे अफवाहों को हवा मिलती है, फिर बाद में सफाई आती है। बिलासपुर के एक कार्यक्रम में नगर निगम आयुक्त से किसी मुद्दे पर उनको बात करनी थी। आयुक्त देर से पहुंचे। सिंहदेव ने तंज कसा- आप इतनी देर से आये, दाऊ टू हो गये हैं क्या? आप अब अटकलें लगाते रहिये कि दाऊ वन कौन हैं?
रेंजर इतना बड़ा, तो फिर...
पत्रकारिता की आड़ में ब्लैकमेलिंग की शिकायत मुंगेली जिले के एक रेंजर ने दर्ज कराई है। ऐसी ख़बरें तो आती रहती है पर वसूली करने वाले की हिम्मत और रंगदारी देने वाले रेंजर दोनों की हैसियत का अंदाजा लगायें तो सिर घूम सकता है। पुलिस के मुताबिक पूरे सवा करोड़ वसूलने का प्लान था। पुलिस आठ लाख रुपये कथित ब्लैकमेलर से बरामद भी कर चुकी है। अभी मामले का पूरा ब्योरा आना बाकी है पर बताया जा रहा है कि 95 लाख रुपये रेंजर ने उसे दे डाले। सोचिये, रेंजर से ऊपर के अफसरों की नस पकड़ ली जाती ब्लैकमेलिंग की रकम कितनी बड़ी हो सकती थी।
फिर यह भी समझने की जरूरत है कि जिस विभाग में एक रेंजर की इतनी औकात है, उस विभाग में बाकी के बड़े-बड़े अफसरों की ताकत कितनी होगी ! इसीलिए यहां की चर्चा रहती है कि अपने खिलाफ फाइल रोकवाने के लिए किसने कितने करोड़ रुपये किसको दिए !