राजपथ - जनपथ
रेमडेसिविर इतना जरूरी भी नहीं
कोरोना को लेकर बेड, दवाओं की मची मारामारी के बीच सोशल मीडिया में टेक्स्ट, ऑडियो और वीडियो फार्मेट में ढेर सारी सलाहें भरी पड़ी हैं। ऐसे में समझ नहीं आता कि किस पर भरोसा करें, किस पर नहीं। इतनी सलाहें जितनी बैगा-गुनिया और नीम हकीम भी नहीं देते। घबराहट में लोग हर नुस्खे आजमाये जा रहे हैं। दहशत इतनी है कि कोरोना संक्रमण होते ही लोग किसी भी कीमत पर अस्पताल में भर्ती होने के लिये उतावले हैं। डॉक्टर भी तौल लेते हैं कि मरीज की कितनी क्षमता है। कितने ही अस्पतालों में एक-एक दिन का बिल एक लाख रुपये से अधिक पहुंच रहा है। यह उस बीमारी या महामारी के इलाज में हो रहा खर्च है जिसकी कोई दवा अब तक निकली ही नहीं।
ऐसे में एक वीडियो वाट्सएप, ट्विटर और यू-ट्यूब पर तेजी से वायरल हो रहा है जो किसी अनजान इलाके के अविश्सनीय डॉक्टर का नहीं बल्कि छत्तीसगढ़ के ही रामकृष्ण केयर हॉस्पिटल के चेस्ट फिजिशियन डॉ. गिरीश अग्रवाल का है। इसमें वे एक हद तक इलाज से जुड़ी अनेक घबराने वाली बातों, अफवाहों पर बड़ा स्पष्टीकरण दे रहे हैं। इनके वीडियो से यह निष्कर्ष निकलता है कि सेमडेसिविर इंजेक्शन की जरूरत बहुत कम मरीजों को है, जिसकी आज मारामारी मची है। इस इंजेक्शन का अनावश्यक इस्तेमाल करने की जरूरत नहीं। सिटी स्कैन भी जरूरी नहीं। ऑक्सीजन बेड भी हर मरीज को जरूरी नहीं है। डेक्सोना जैसे स्टारायड खाने की आवश्यकता नहीं है। लोग बहुत से टेस्ट करा रहे हैं, जिसकी कोई जरूरत नहीं है। इस समय निजी अस्पतालों में इन्हीं के नाम पर लूट मची हुई है। यह भ्रम भी न पालें कि आपका एम्यून सिस्टम अच्छा है तो कोरोना नहीं होगा। सारा खेल ऑक्सीजन लेवल का है। कोविड टेस्ट किसी मरीज के सम्पर्क में आने के चार पांच दिन बाद कराना सही होगा। ऐसी अनेक दवायें, इंजेक्शन मरीज ले रहे हैं जो डब्ल्यूएचओ की प्रोफाइल एक्स में है ही नहीं। जो दवायें वास्तव में जरूरी है वह तो बहुत सस्ती हैं।
आपके वाट्सएप ग्रुप में अब तक नहीं पहुंचा हो तो अब करीब आठ मिनट का यह वीडियो गिरीश अग्रवाल के चैनल पर यू ट्यूब पर जाकर देख सकते हैं। दो दिन के भीतर यह लाखों लोगों तक पहुंच चुका है। बहुत सी मौतें नासमझी और गलत इलाज के कारण हो रही हैं। कोरोना को मात देना मुमकिन है बस समझदारी रखें। इस वीडियो को देखने से कई शंकाओं का समाधान मिलेगा। कोरोना को लेकर घबराहट कम होगी।
लोकल ट्रेनों में यात्री कैसे मिलें?
एक ओर रेलवे ने हाईकोर्ट में दायर याचिका के दबाव में आकर छत्तीसगढ़ के सभी मार्गों के लिये लोकल व पैसेंजर ट्रेन शुरू कर दिये, दूसरी ओर एक के बाद राज्य के विभिन्न जिलों में लॉकडाउन लगता जा रहा है। इसके चलते लोकल ट्रेनों में सफर करने लोग निकले भी तो क्यों? काम धंधा बंद है तो किसी शहर में क्या करेंगे जाकर। इसके चलते कल से शुरू हुई लोकल ट्रेनों में यात्रियों का भारी संकट पैदा हो गया है। जब इन ट्रेनों की घोषणा की गई तो कोरोना संक्रमण इतनी तेजी से नहीं फैला हुआ था। याचिका दायर करने वालों को भी शायद पता नहीं था। स्थिति यह है कि टिटलागढ़, गोंदिया, झारसुगुड़ा आदि के लिये चलने वाली ट्रेनों में यात्री न के बराबर हैं और ट्रेन खाली डिब्बों के साथ दौड़ रही हैं। अधिकांश जिलों में अगले एक सप्ताह के लिये लॉकडाउन है। जहां नहीं है वह भी एक दो दिन में होने वाला है। अब रेलवे इन ट्रेनों को चलाती रहेगी या रद्द करेगी, यह देखा जाना है।
अति उत्साह ने मुश्किल में डाला, पोस्ट हटाया
कसडोल विधायक शकुन्तला साहू सोशल मीडिया पर बेहद सक्रिय हैं। हर दिन पांच दस अपडेट तो दिख ही सकते हैं। पर कल डाली गई एक पोस्ट ने उन्हें बैकफुट पर ला दिया। उन्होंने कोविड का टीका लगवाया और फोटो ट्विटर पर डाल दी। अपील की सबसे कि टीका लगवायें। विधायक शकुंतला 45 प्लस की तो हैं ही नहीं। अभी इस उम्र को हासिल करने में उन्हें 10 से 12 साल लगने वाले हैं, फिर उन्होंने टीका कैसे लगवा लिया? अभी तो कम उम्र वालों को टीका लगाने का चरण शुरू ही नहीं हुआ है।
भाजपा ने इसे मुद्दा बना लिया और एक के बाद कांग्रेस तथा विधायक पर वार होने लगे। कहा- ऐसे ही नियम विरुद्ध दबाव डालकर टीका लगवाने के कारण प्रदेश में वैक्सीन की कमी हो गई है। एफआईआर दर्ज करने की मांग भी करने लगे। शायद विधायक घबरा गईं और उन्होंने सोशल मीडिया से अपना पोस्ट हटा लिया। बात यह है कि अभी तो विधायक ने पहला ही डोज लगवाया, कोर्स पूरा करने के लिये दूसरा डोज भी लगवाना जरूरी है। वरना वैक्सीन का असर नहीं होगा। बस इतना ही करना है कि सोशल मीडिया पर पोस्ट डालने से बचना है।