राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : जैसा बाप, वैसी बेटी...
07-May-2021 5:23 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : जैसा बाप, वैसी बेटी...

जैसा बाप, वैसी बेटी...

बहुत से माता-पिता ऐसे रहते हैं जिनके कामों से उनके बच्चों का सम्मान बढ़ता है। बहुत से बच्चे ऐसे रहते हैं जिनके कामों से उनके मां-बाप का सम्मान बढ़ता है। लेकिन एक तीसरी दुर्लभ किस्म और रहती है जिसमें बच्चों का सम्मान बढ़ाने वाले मां बाप को बच्चों की वजह से भी सम्मान मिलता है । दोनों के काम ऐसे रहते हैं कि दोनों पीढिय़ों के सम्मान में बढ़ोतरी होती रहती है। कोरोना से गुजरे प्रोफेसर दर्शन सिंह बल एक उसी किस्म के इंजीनियरिंग प्राध्यापक थे जिनका खूब सम्मान था। उन्होंने खूब काम किया था बहुत अच्छा काम किया था और नाम भी खूब कमाया था। अब उनके बच्चे अलग नाम कमा रहे हैं। छत्तीसगढ़ में उनकी बेटी मनजीत कौर बल लगातार सामाजिक क्षेत्र में काम करते हुए परिवार का नाम भी रोशन कर रही है। इन दोनों ही पीढिय़ों की वजह से एक दूसरे के सम्मान में बढ़ोतरी हुई है। यह परिवार एक ऐसा दुर्लभ परिवार है जिसमें बेटी अगर सडक़ की लड़ाई से लेकर अदालत की लड़ाई तक लड़ रही है, तो भाई और माता-पिता कमर कसकर उसके साथ खड़े रहे कि वह इंसाफ की लड़ाई लड़ रही है, अपने स्वार्थ के लिए नहीं, दूसरों के लिए लड़ रही है। इंसाफ के लिए लडऩे वाले ऐसे परिवार बहुत कम देखने मिलेंगे जिनमें दोनों पीढ़ी सार्वजनिक मुद्दों को लेकर एक दूसरे के साथ इस हद तक खड़ी दिखती है। दर्शन सिंह बल और उनकी बेटी मनजीत कौर बल इसी किस्म के रहे। दर्शन सिंह बल के पढ़ाए हुए हजारों इंजीनियर छत्तीसगढ़ और देश भर में काम कर रहे हैं और उनके मन में बल सर के लिए जो इज्जत दिखती है वह बिल्कुल ही अनोखी है। मनजीत उन्हीं के सम्मान को आगे बढ़ा रही हैं।

बड़ी शादियां बड़ी सादगी से

कोरोनाकाल में विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत की बेटी की तरह हेड ऑफ फॉरेस्ट फोर्स राकेश चतुर्वेदी की बेटी की शादी भी बेहद सादगी से हुई। इसमें कोरोना नियमों का पूरी तरह पालन किया गया। चतुर्वेदी की पुत्री सौम्या, प्रतिष्ठित वकील हैं, और विवेकानंद फाउंडेशन से जुड़ी हैं। जबकि दामाद जयराज पंड्या पार्लियामेंट में रिसर्च स्कॉलर हैं, और गुजरात के कांग्रेस नेता के परिवार से हैं। जयराज के दादा माधव सिंह सोलंकी सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे हैं। कोरोना के खतरे को देखते हुए दोनों परिवार से सिर्फ 11-11 लोग शामिल हुए। शादी से पहले परिवार के सभी सदस्यों का कोरोना टेस्ट हुआ, और सभी की रिपोर्ट निगेटिव आने के बाद धार्मिक व सामाजिक रीति रिवाजों के मुताबिक शादी हुई। कोरोना काल में प्रभावशाली लोगों के यहां सादगी के साथ विवाह से संदेश भी गया है।

शादी में शामिल ज्यादातर कोरोना की चपेट में

कोरोना के फैलाव के चलते शादी-विवाह में अतिरिक्त सतर्कता बरतना बेहद जरूरी है। शादी-ब्याह में इसको नजर अंदाज करना भारी भी पड़ रहा है। ऐसे ही कोंडागांव से सटे एक गांव में पिछले दिनों एक शादी समारोह में सामाजिक दूरी का पालन न करना, और बिना मास्क के घूमना लोगों के लिए मुसीबत बन गया। और शादी में शामिल होने वाले गांव के ज्यादातर लोग कोरोना की चपेट में आ गए हैं। आदिवासी इलाकों में वैसे भी चिकित्सा सुविधा की बेहद कमी है। ऐसे में अब कोरोना संक्रमण के चलते आदिवासी इलाकों में बड़ी संख्या में मौतें भी हो रही हैं।

महासमुंद का राज क्या है?

वैसे तो छत्तीसगढ़ अड़ोस-पड़ोस के आधा दर्जन दूसरे राज्यों से घिरा हुआ है, और इनमें से हर राज्य से छत्तीसगढ़ की सडक़ें जुड़ी हुई है. ओडीशा जैसे राज्य ऐसे भी हैं जहां से छत्तीसगढ़ के कई-कई जिलों में आना जाना होता है। लेकिन ऐसे में महासमुंद जिला अकेला ऐसा है जहां पर पिछले साल-दो साल से औसतन हर हफ्ते एक या अधिक बार गांजे से भरी हुई गाडिय़ां पकड़ आती हैं, और नगदी नोटों से भरी हुई गाडिय़ां भी। इतनी बड़ी-बड़ी नगद रकम से लदी हुई गाडिय़ां सिर्फ इसी एक जिले में कैसे पकड़ आती हैं यह हैरानी की बात है, या फिर इस बात पर हैरानी की जाए कि बाकी जिलों में ऐसी गाडिय़ां पकड़ में क्यों नहीं आती हैं? क्योंकि महासमुंद जिला ओडिशा से जुड़ा हुआ तो है लेकिन छत्तीसगढ़ के एक दर्जन से ज्यादा जिले दूसरे प्रदेशों के जिलों से जुड़े हुए हैं। ऐसे में सिर्फ महासमुंद में इतना गांजा पकड़ाना और इतनी नगद पकड़ाना, वहां की पुलिस के सक्रिय होने का एक सबूत तो है। अब जांच का मुद्दा यह हो सकता है कि क्या बाकी जिलों में पड़ोस के राज्यों से तस्करी नहीं होती है, कम होती है, या उन जिलों के सरहद पार के जिलों से तस्करी का कोई धंधा चलता नहीं है?

कारखाने में टीकाकरण का फायदा

हाईकोर्ट के आदेश के बाद 18 प्लस के लोगों को वैक्सीन लगने का रास्ता साफ हो गया है। हालांकि वैक्सीन को लेकर ग्रामीण इलाकों में काफी हिचक भी है। मगर कोरोना से बचने के लिए यही उपाय है। कई निजी उद्योगों ने अपने कर्मचारियों को स्वयं के खर्च पर वैक्सीन लगाना शुरू कर दिया है। एक बड़े उद्योग में वैक्सीनेशन से काफी फायदा भी हुआ है।

सिलतरा के एक बड़े स्टील उद्योग में पिछले कुछ महीनों में कोरोना से कई कर्मचारियों की मौत हो गई थी। इसके बाद उद्योग समूह ने सभी कर्मचारियों के लिए वैक्सीन अनिवार्य कर दिया। करीब ढाई हजार कर्मचारियों का वैक्सीनेशन हो चुका है। वैक्सीनेशन के बाद यह बात सामने आई है कि जिन डेढ़ हजार कर्मचारियों को पहला डोज लगा है, उनमें से कुछ संक्रमित जरूर हुए, लेकिन जान का जोखिम नहीं था। जिन एक हजार कर्मचारियों को दूसरा डोज लग चुका है, उनमें से कोई भी संक्रमित नहीं है। कुल मिलाकर वैक्सीनेशन ही कोरोना से बचाव का उपाय है।

को वैक्सीन लगी या कोविशील्ड

कोई भी ऐसी बात जो वैक्सीनेशन के प्रति लोगों में झिझक पैदा करे उजागर करना ठीक नहीं लगता। सोशल मीडिया पर वैसे भी बहुत सी नकारात्मक बातें लगातार आ रही हैं। पर कुछ तथ्य सामने हों तो कैसे रुका जा सकता है। इस समय राज्य में दो तरह की वैक्सीन उपलब्ध है। को वैक्सीन और कोविशील्ड। विशेषज्ञों का कहना है कि पहला डोज और दूसरा डोज समान वैक्सीन ली जाये। पर जगदलपुर के एक स्कूल में टीका लगवाकर लौटे लोग तब चिंता में पड़ गये जब उन्होंने अपने मोबाइल पर मैसेज देखा कि कोविशील्ड का डोज आपने सफलतापूर्वक लगवा लिया। दरअसल, इस सेंटर में कोवैक्सीन लगाई जा रही थी। कुछ समझदार लोगों ने तो देख लिया कि उन्हें को-वैक्सीन लगाई  जा रही है। टीकाकरण अधिकारी से उन्होंने सवाल-जवाब भी किया कि ऐसा क्यों हो रहा है? अधिकारी ने कहा कि ऐप में तकनीकी दिक्कत के कारण हो गया आप दूसरी डोज भी को वैक्सीन की ले सकते हैं। पर चिंता में वे लोग हैं जिन्होंने यह नहीं देखा कि कौन सी वैक्सीन लगाई गई है।

कोरोना से लड़ें, आपस में नहीं

कोरोना महामारी के लम्बी आपदा में डॉक्टर और स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी, कर्मचारी लगातार बिना थके, रुके काम कर रहे हैं। कम उपकरण व मानव संसाधन के बीच अधिक से अधिक मरीजों को देखें, बेहतर इलाज हो, ज्यादा से ज्यादा लोगों का टेस्ट हो जाये उनकी कोशिश चल रही है। कई डॉक्टर बता रहे हैं उन्होंने महीनों से छुट्टी नहीं ली। एक दिन में 12 घंटे, 14 घंटे काम करना पड़ रहा है। पीपीई किट में लदे होने के बावजूद कई लोग संक्रमित होते जा रहे हैं, कुछ की मौत भी हो रही है।

कुछ ऐसी ही निरंतर ड्यूटी प्रशासनिक सेवा से जुड़े अधिकारी और उनके अधीनस्थ कर रहे हैं। काम का दबाव, तनाव इतना है कि काम तो सभी कर रहे हैं पर एक दूसरे से उलझ भी जाते हैं और स्थिति अप्रिय हो जाती है। रायपुर में हाल ही में ऐसी घटनायें हो चुकी हैं। मुंगेली में एक एसडीएम ने स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारियों को थप्पड़ मारने की धमकी तक दे डाली। वैक्सीनेशन के लिये नहीं निकलने पर धमकाते हुए पुलिस का वीडियो बीते माह तो सामने आ ही चुका है।

मध्यप्रदेश के इंदौर में तो डॉक्टरों ने वहां के कलेक्टर के खिलाफ काम बंद आंदोलन ही शुरू कर दिया है। वे कलेक्टर पर दुर्व्यवहार का आरोप लगा रहे हैं और उनको हटाने की मांग पर अड़े हैं। दो दिन पहले सुप्रीम कोर्ट का भी ध्यान इस ओर गया कि लगातार कोविड महामारी से बचाव से जुड़े लोगों की मानसिक दशा क्या हो रही है। कोर्ट ने कहा कि वे थक भी सकते हैं। कहा- उनकी जगह पर दूसरे खाली बैठे डॉक्टरों और नर्सों को तैयार क्यों नहीं रखा जाता? सरकार का पूरा जोर अभी वैक्सीनेशन पर और ऑक्सीजन बेड बढ़ाने पर ही है। जो स्टाफ लगातार ड्यूटी कर रहे हैं, उनकी सेहत कैसे ठीक रहे। उन पर किस सीमा तक बोझ डाला जाये इस पर भी गंभीरता से विचार करना जरूरी दिखाई दे रहा है। प्राय: हर बड़े सरकारी अस्पताल के अधीक्षक, डीन बता रहे हैं कि उनके यहां स्टाफ की कमी है। नई पदस्थापना और नियुक्तियां तेजी से नहीं की जा रही है। आसार तो यही दिखाई दे रहे हैं कि कोरोना पीडि़तों से अस्पताल जल्दी खाली नहीं होने वाले हैं। केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा है कि अब एमबीबीएस के अंतिम वर्ष के छात्रों को कोविड ड्यूटी में लगाया जायेगा। महामारी से निपटने के अभियान में लगे लोगों को थोड़ा विश्राम, थोड़ी राहत बीच-बीच में मिलती रहे तो नतीजे ज्यादा बेहतर मिल सकते हैं।

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