राजपथ - जनपथ
जाकी रही भावना जैसी !
सोशल मीडिया लोगों को किस तरह एक दूसरे के करीब लाता है इसको देखना हो तो भारत और पाकिस्तान के लोगों के बीच बने हुए बहुत से फेसबुक ग्रुप देखे जा सकते हैं। जिन लोगों की दिलचस्पी साझा विरासत में हैं, दोनों देशों के रिश्ते ठीक करने में हैं, कला और संस्कृति की बातों को लेने देने में हैं, ऐसे बहुत से लोग ऐसे ग्रुप के सदस्य हैं। अब कल ही ऐसे एक फेसबुक इंडिया-पाकिस्तान हेरीटेज क्लब में हिंदुस्तान के जगमोहन गुजराल ने अपने दादा का एक विजिटिंग कार्ड पोस्ट किया जिसमें उनके नाम के साथ तहसील और जिले का जिक्र था।
उन्होंने ग्रुप के लोगों से पूछा कि क्या कोई बता सकते हैं कि यह पता कहां है।
कुछ घंटों के भीतर ही पाकिस्तान के अशवाक अहमद ने लिखा- हां मैं इस पते को जानता हूं, यह मेरे पुरखों का गांव है और इस जगह को अब साहीवाल कहा जाता है। उसने आगे लिखा- आप यहां आने का प्लान बनाइए और सरदारजी, मैं आपका मेजबान रहूंगा।
अब कहां कोई हिंदुस्तानी अपने दादा के गांव का पता पूछ रहा है और कहां कुछ घंटों के भीतर ही उसे वहां एक मेजबान ही मिल जा रहा है, सोशल मीडिया आज पूरे हिंदुस्तान में कहीं किसी को ऑक्सीजन दिला रहा है, कहीं दवाइयां दिला रहा है, कहीं एंबुलेंस और कहीं अंतिम संस्कार में मदद। सोशल मीडिया का जो उसका बेहतर इस्तेमाल जानते हैं, उन्हें उसके बेहतर नतीजे भी मिलते हैं। जाकी रही भावना जैसी, फेसबुक दोस्ती मिलें वैसी !
कोरोना और शादियां
इस अखबार में दो ही दिन पहले कोरोना के ऐसे खतरे के बीच शादियां ना करने की नसीहत दी गई थी, और कुछ वैसी ही नसीहत शादी, और बच्चे पैदा करने के खिलाफ पिछले बरस भी दी गई थी। परसों वह संपादकीय छपा, और अगले ही दिन छत्तीसगढ़ के सबसे नए जिले जीपीएम से खबर आई कि एक शादी में शामिल 70 लोगों में से 69 लोग कोरोनाग्रस्त निकले और दुल्हन के बाप को गिरफ्तार कर लिया गया।
लेकिन शादियों को लेकर हिंदुस्तान में किस कदर पाखंड चलता है इसकी मिसालें लोग अभी फेसबुक पर लिख रहे हैं। एक महिला गीता यथार्थ ने लिखा कि कैसे-कैसे मां-बाप के अस्पताल में गुजर जाने पर भी बच्चों को बताए बिना उनकी शादी करवा दी जाती है. उन्होंने ऐसी कुछ एक मिसालें भी दीं। और इसके नीचे लोगों ने अपने जो तजुर्बे लिखे वह भी भयानक है। एक ने लिखा मैंने ऐसी कई शादियां देखी हैं जिनमें एक तरफ कमरे में लाश रखी है और दूसरी तरफ शादी हो रही है, बारात विदा करने या लौटने के बाद अंतिम संस्कार किया गया है। एक और ने लिखा कि उनके रिश्तेदारी में एक पिता ने कोरोना के डर से अपनी चार बेटियों की शादी एक साथ ही तय कर दी, लेकिन शादी के 8 घंटे पहले ही उस पिता की मौत हो गई। फेरों के वक्त जब बेटियों ने पिता के बारे में पूछा तो उन्हें कहा गया कि वह लॉकडाउन में फंस गए हैं और विदा करने को मौसा तो है ना. इसके बाद उन्हें विदा कर दिया गया और वे आखिरी बार अपने पिता का चेहरा भी नहीं देख पाईं। शादी का खर्च हो चुका था और कहीं रिश्ता ना टूट जाए इसलिए आनन-फानन शादी की गई और फिर विदाई के बाद अंतिम संस्कार।
लंगोटी संभालने की चिंता
छत्तीसगढ़ में कोरोना के कारण सरकारी कामकाज और लोगों की दिनचर्या तो अस्त-व्यस्त हुई है। सरकार में पद पाने के इच्छुक दावेदार भी घोर निराशा के दौर से जूझ रहे हैं। सरकार को ढाई साल का कार्यकाल पूरा हो गया है ऐसे में उन्हें तो साल-डेढ़ साल का कार्यकाल मिलने के लाले पड़े हुए हैं, क्योंकि आखिरी साल में तो चुनाव आचार संहिता के कारण सुख-सुविधा छीन जाएगी। तो लोगों को लगता है कि भागते भूत की लंगोटी से ही काम चला लेंगे, लेकिन इस संक्रमण काल में अब तो अधिकांश दावेदारों ने लंगोटी की भी उम्मीद छोड़ दी है। कुछ तो इस जुगत में हैं कि अब तो पद के बजाए आने वाले चुनाव में टिकट का फार्मूला सही होगा। साल डेढ़ साल के लिए सरकारी पद मिलने से कुछ खास फायदा तो होगा नहीं, उलटे समर्थकों की उम्मीद जरुर बढ़ जाएगी और वे खरे नहीं उतर पाए तो लोगों की नाराजगी झेलनी पड़ सकती है। सरकार की एंटी इनकम्बेंसी का नुकसान हो सकता है। ऐसे लोगों ने पार्टी नेताओं को बोलना शुरु कर दिया है कि उन्हें लाल बत्ती का मोह नहीं है, वे संगठन को मजबूत करने के लिए काम करेंगे। अब देखिए उनका यह फार्मूला काम आता की नहीं। नहीं तो लंगोटी तो संभालना ही पड़ेगा।
अपना टाइम आएगा
छत्तीसगढ़ में कोरोना के कारण लोग अस्पताल और दवा दुकानों के चक्कर से खासे परेशान हो गए हैं। मध्यवर्गीय लोगों की बड़ी चिंता ये हैं कि बीमारी के कारण थोड़ी बहुत जमा पूंजी भी खत्म हो गई है और ऊपर से कामकाज बंद है तो आमदनी नहीं हो रही है, लेकिन मेडिकल फील्ड से जुड़े लोगों के लिए मुफीद समय चल रहा है। खैर, समय एक जैसा नहीं होता,इसलिए वे भी हिन्दी फिल्म गली ब्यॉय का गाना अपना टाइम आएगा...गाकर अपनी अपने आप को तसल्ली दे रहे हैं। अब उनको कब तक गाने से तसल्ली मिलेगी, यह कहना तो मुश्किल है, लेकिन एक कवि ने इस पर टिप्पणी कि ऐसा सोचने वालों को वो दिन याद करना चाहिए, जब वे अच्छे दिन आएंगे के लालच फंस गए थे। हालांकि कहा जाता है कि ये पब्लिक है जो सब जानती है, लेकिन यह बात भी उतनी ही सही कि पब्लिक को नए और लुभावनी बातों के बल पर उलझाया भी जा सकता है।
दारू सेंट्रल विस्टा की तरह नशा...
आमतौर पर राज्य के मुद्दों पर केंद्र के मंत्रियों का बयान कम ही आता है। मगर छत्तीसगढ़ सरकार का शराब की होम डिलीवरी का फैसला शायद देशभर में चर्चा का विषय बन गया है। केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने कुछ अखबारों के साथ ट्वीट किया है कि ऐसे समय में जब हम लोगों की जिंदगी बचाने के लिए युद्ध लड़ रहे हैं। ऑक्सीजन सिलेंडर, मेडिकल उपकरण, बेड, दवाइयों को प्राथमिकता दे रहे हैं, छत्तीसगढ़ सरकार घरों में शराब पहुंचाने को प्राथमिकता दे रही है।
जवाब में ढेर सारी प्रतिक्रियाएं आई हैं जिनमें पुरी की बातों से सहमति है। लेकिन कुछ ने पलटवार भी कर दिया है। जैसे नितेश गोयल ट्विटर हैंडल से 26 अप्रैल की आईएएनएस की खबर चस्पा की है जिसमें बताया गया है कि भाजपा शासित कर्नाटक में भी शराब की होम डिलीवरी को अनुमति दी गई है।
अंश नाम के एक हैंडल से कहा गया है कि कोई आश्चर्य की इस दौर में कोई शासन नहीं है। हर कोई ट्विटर मंत्री बनने की कोशिश में बहुत व्यस्त है। एक अन्य ट्विटर हैंडल विक्रमादित्य ने कहा है कि राजनीति में कौन अच्छा है कौन बुरा, पता नहीं चलता। कल ही जिन्होंने कहा था कि सेंट्रल विस्टा परियोजना और टीकाकरण को एक साथ जोडक़र नहीं देखा जा सकता वही आज लॉकडाउन और शराब वितरण को एक दूसरे से जोड़ रहे हैं।
विवेक शर्मा कहते हैं कि जब सेंट्रल विस्टा परियोजना अत्यावश्यक सेवा हो सकती है तो दारू क्यों नहीं? दोनों में नशा है जी! सेंट्रल विस्टा एक आदमी का नशा और दारू बहुतों का। एक और हैंडल मिस विनी ने लिखा है- थोड़ी और मेहनत कीजिए, कोई बड़ी बुराई ढूंढने में। काम तो आप नूं वैसे ही नहीं होना है।
अवैध भट्ठी किसके सिर पर फोड़ें?
गांव में कच्ची, महुआ और देसी दारु का कारोबार बंद हो जाएगा ऐसा दावा भाजपा के समय से किया जा रहा था जब ठेके सरकार ने अपने हाथ ले लिये। मगर कोचियों को इस पृथ्वी लोक से बाहर नहीं जाना था, नहीं गये। पहले उनसे काम अपना-अपना इलाका बांटकर शराब ठेकेदार कराते थे, अब आबकारी और पुलिस वाले। पुलिस और आबकारी विभाग के बीच कहीं-कहीं ट्यूनिंग बैठी रहती है तो कहीं-कहीं टकराव भी होता रहता है।
अब इस चैटिंग पर ही नजर डालिये। एक बंदा कोविड 19 की सूचनाओं के लिए बनाए गए एक व्हाट्सएप ग्रुप में थानेदार से शिकायत कर रहा है कि उसके इलाके में अवैध शराब और गांजा बिक रहा है। निवेदन किया कि दिन में कम से कम एक बार 112 वाली गाड़ी को घुमा दिया करें। जवाब शायद थानेदार दे रहे हैं कि यह ग्रुप इस बात के लिए नहीं बनाया गया है। आप अपनी शिकायत आबकारी वालों को करिए। हर बात का ठेका, ठीकरा पुलिस पर फोडऩा बंद करें। अब यह चैटिंग चूंकि पब्लिकली हो रही थी, थानेदार को लगा होगा कि कुछ गड़बड़ हो सकती है। तुरंत लिखते हैं कि ठीक है, मेरे पर्सनल नंबर पर उनका नाम डालो, कार्रवाई करता हूं।
इसमें संदेह नहीं कि अवैध शराब पकडऩे में पुलिस आबकारी विभाग से कहीं आगे है। अब इस वाट्सएप ग्रुप में आबकारी वालों और कोचियों के शुभचिंतक नहीं जुड़े होंगे तब तो रेड सही-सही पड़ जाएगी, वरना जब तक पुलिस पहुंचेगी- माल गायब हो चुका होगा।