राजपथ - जनपथ
कोरोना भगाने के लिये पूजा-पाठ
वाट्स अप पर मिले इस न्यौते में लोगों को काम पर निकलने से, खेतों में जाने से रोका जा रहा है। इसलिये नहीं कि एक जगह इक_ा होने से कोरोना फैलने का भय है। रोका जा रहा है ताकि गांव के लोग पूजा-पाठ में शामिल हो सकें। यह संदेश तब फैलाया जा रहा है, जब लॉकडाउन लगा हुआ है और किसी भी तरह के धार्मिक आयोजन पर रोक लगी हुई है। थाने से यह गांव ज्यादा दूर नहीं है पर पुलिस का ही इंतजार क्यों किया जाये? क्या गांव में कुछ ऐसे समझदार लोग नहीं हैं जो इस तरह के आयोजन का विरोध करें। कोरोना महामारी का फैलाव इन दिनों गांवों में तेजी से बढ़ रहा है। ऐसे में पुलिस या प्रशासन का दबाव नहीं बल्कि लोगों की अपनी जागरूकता और संयम ही मायने रखता है। किसी भी बहाने से लोग इक_े हो रहे हैं तो उन्हें रोकने के लिये भी गांव के ही समझदार लोग आगे आयेंगे तब बात बनेगी।
नया रायपुर पर फिर ग्रहण
बीस साल हो गये राज्य को बने और इससे कुछ कम साल हुए नया रायपुर को तैयार करते हुए। हजारों करोड़ के निवेश के बावजूद अब तक यह प्रदेश की नई राजधानी का शक्ल नहीं ले सका है। अतीत में जमीनों के आबंटन में नियमों से परे जाकर आबंटन, पुराने रायपुर के बजट के हस्तांतरण के बावजूद अब भी आम लोगों की पहुंच से यह दूर ही है। नई सरकार बनने के बाद कुछ नये काम यहां शुरू हुए थे। सीएम हाउस, स्पीकर हाउस, नया विधानसभा भवन आदि कई परियोजनाओं पर या तो काम हो रहा है या फिर शुरू होने वाला है। पर, कोविड महामारी में संसाधन जुटाने के लिये एक हजार करोड़ की इन परियोजनाओं को रोकने का आदेश दे दिया गया है। यह फैसला हालांकि विपक्ष को यह जवाब देने के लिये काफी है जो सवाल कर रहा था कि जब विधानसभा का नया भवन बन रहा हो तो छत्तीसगढ़ के नेता सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट का विरोध क्यों कर रहे हैं। चलिये कांग्रेस सरकार ने जवाब तो दे दिया, पर एक सवाल यह भी उठ रहा है कि आखिर नया रायपुर, अटल नगर आबाद कब होगा। क्या वर्तमान पीढ़ी उसे एक व्यस्त नई राजधानी के रूप में देख पायेगी?
कोरोनाकाल में अदालती रिपोर्टिंग
छत्तीसगढ सहित देश भर की अदालतों में रिपोर्टिंग के लिए या तो सुनवाई के दौरान पत्रकारों को खुद वहां मौजूद रहना पड़ता है या फिर केस से जुड़े वकीलों पर निर्भर। सूचनाएं पहले पहुंचाने की होड़ में कई बार आधी-अधूरी जानकारी लोगों तक पहुंचा दी जाती है, गलत रिपोर्टिंग भी हो जाती है। कई बार ऐसा भी होता है कि सूचना देने वाले वकील की निजी रूचि की वजह से तथ्य बदल जाते हैं। चूंकि हाईकोर्ट के निर्देश और फैसले बहुत से आगे के मामलों के लिए नजीर बन सकते हैं इस वजह से मीडिया की कोशिश होती है कि खबर जल्दी तो पहुंचे पर तथ्यात्मक भी हो। फूलप्रुफ खबर तभी दी जा सकती है, जब ऑर्डर शीट हाथ में आ जाए। अब तकनीक के विस्तार के चलते कुछ घंटों में यह हासिल हो जाता है। पहले इसके मिलने में दो-तीन दिन लग जाते थे। तब गलत रिपोर्टिंग करने के चलते हाईकोर्ट में रिपोर्टरों को जजों ने कई बार बुलाकर अपने अंदाज में समझाया और आगाह भी किया है। कई बार यह समझ में नहीं आता कि ऐसा फैसला जज ने क्यों लिख दिया है? जब तक बहस में आई बातों का सार नहीं मिलेगा, पाठकों तक भी पूरी जानकारी नहीं पहुंच पाती।
लंबे समय से पत्रकार मांग करते आ रहे हैं कि महत्वपूर्ण फैसलों की प्रेस रिलीज अदालतों की ओर से जारी की जाये। इस बात को छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में भी पूर्व में पत्रकारों ने उठाया था। मगर व्यवहार में यह संभव इसलिए नहीं हो पाया, क्योंकि जब नियमित हाईकोर्ट में हर दिन 500 या उससे अधिक फैसले हो जाते हैं।
अब सुप्रीम कोर्ट से खबर आई है। प्रधान न्यायाधीश ने मीडिया कर्मियों के लिए वर्चुअल सुनवाई का लिंक देने की सुविधा शुरू की है अब मीडिया के लिए सुप्रीम कोर्ट की कार्रवाई को घर से देख सकेंगे। सीजेआई अदालतों की कार्रवाई का लाइव प्रसारण करने के पक्ष में भी हैं। उनका कहना है कि कोर्ट की कार्रवाई और आदेश देश के लोगों को बड़े हद तक प्रभावित करता है। मीडिया को सूचना हासिल करने के लिये वकील पर निर्भर भी नहीं होना चाहिये। खबरों में यह बात भी आई है कि सीजेआई कुछ समय तक पत्रकारिता कर चुके हैं। शायद इसीलिये यह शुरूआत हो सकी है। उम्मीद करनी चाहिए कि जो सिलसिला सुप्रीम कोर्ट ने शुरू किया है वह धीरे से नीचे की अदालतों तक भी पहुंचेगा।