राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : संगति का असर नहीं पड़ा
18-May-2021 6:02 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : संगति का असर नहीं पड़ा

संगति का असर नहीं पड़ा

रायपुर में पले-बढ़े तमिलनाडु कैडर के 92 बैच के आईएएस राजेश लखानी तमिलनाडु विद्युत बोर्ड के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक बनाए गए हैं। राजेश ने गवर्नमेंट स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की, और रायपुर इंजीनियरिंग कॉलेज से बीई की डिग्री हासिल की। पूर्व आईजी राजकुमार देवांगन भी राजेश के सहपाठी रहे हैं, और एक साथ ही यूपीएससी में चयनित हुए।

राजेश आईएएस, तो राजकुमार आईपीएस में आ गए। राजेश के पिता टेक्नीकल स्कूल में प्रिंसिपल रहे हैं। अपने प्रशासनिक कैरियर में राजेश  के नाम कई उपलब्धियां हैं। उन्हें तमिलनाडु म्युनिसिपल कमिश्नर रहते बेहतर काम के लिए प्रधानमंत्री अवॉर्ड मिल चुका है। पहले उन्हें तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन का प्रधान सचिव बनाए जाने की अटकलें लगाई जा रही थी, लेकिन उन्हें विद्युत बोर्ड का अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक की अहम जिम्मेदारी दी गई है। इससे परे राजकुमार देवांगन को पिछली सरकार मेें जबरिया रिटायर कर दिया गया था। संगति का असर दोनों का एक-दूसरे पर नहीं पड़ा !

कोरोना हँस रहा है

कोरोना केस तेजी से घटे हैं, लेकिन मरने वालों की संख्या कम नहीं हो रही है। केरल में मृत्युदर 0.25 फीसदी है, तो छत्तीसगढ़ में 8 गुना ज्यादा 2 फीसदी है। यानी 8 गुना ज्यादा। रायपुर में सरकारी आंकड़ों के मुताबिक कोरोना से करीब 3 हजार लोगों की जान जा चुकी है, लेकिन वास्तविक संख्या इससे बहुत ज्यादा है। पूरे देश के हर प्रदेश के बारे में यह कहा जा रहा है कि सरकारें आंकड़ों को पूरा नहीं बता रही हैं. कांटेक्ट ट्रेसिंग ही इस तरह की जा रही है कि जहां बहुत पॉजिटिव मिलने की उम्मीद है, वहां हाथ ही मत डालो. छत्तीसगढ़ से 6 गुना आबादी के उत्तर प्रदेश में आंकड़े देखकर कोरोना हँस रहा है. वही हाल बिहार का है।

रायपुर से सटे गांव धनेली में कोरोना से 9 लोगों की मृत्यु हुई है, लेकिन गांव में पिछले 3 महीने में 22 लोगों की जान जा चुकी है। धनेली में तो ग्रामवासियों ने स्वास्थ्य कर्मियों का रास्ता रोक दिया था। जनप्रतिनिधि बताते हैं कि धनेली और सिलतरा औद्योगिक क्षेत्र के आसपास सौ से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है, लेकिन सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज नहीं है। ज्यादातर लोगों ने अस्पतालों में इलाज के लिए जाना छोड़ दिया था, और झोलाछाप डॉक्टरों से दवाई लेकर इलाज करा रहे थे।

नया रायपुर के दो बड़े गांव पौंता, चेरिया में 15 लोगों की कोरोना से मृत्यु हुई है। गांव के पूर्व सरपंच बताते हैं कि सिर्फ दो लोगों की कोरोना से मौत का जिक्र है। लोगों ने अस्पतालों की भीड़ देखकर इलाज के लिए जाना छोड़ दिया था, और इस वजह से मृत्यु हुई। बलौदाबाजार, जांजगीर-चांपा, रायगढ़ और सूरजपुर में बड़ी संख्या में मौतें हुई है, जिनका भी सरकारी आंकड़ों में जिक्र नहीं है। सरकार कोरोना नियंत्रण के लिए तेजी से काम करती दिख रही है। खुद सीएम भूपेश बघेल रोज समीक्षा कर रहे हैं। डॉ. आलोक शुक्ला को स्वास्थ्य महकमा का प्रभार  देने के पीछे एक प्रमुख वजह यही है। आलोक से काफी उम्मीदें भी हैं। देखते हैं वे इसमें कितना सफल हो पाते हैं।

कोरोना माता ने जन्म लिया....

जब भी किसी अदृश्य शक्ति से भय होता है तब प्रार्थना की जाती है। इन दिनों कोरोना महामारी ने देश दुनिया में जिस तरह से दहशत फैलाई है कोई आश्चर्य नहीं कि अध्यात्म, तंत्र-मंत्र, यज्ञ, हवन, पर पूजा-पाठ पर बहुत ज्यादा ध्यान दिया जाने लगा है। पर यह यह प्रार्थना अंधविश्वास की घेरे में कब प्रवेश कर जाये यह राजनांदगांव की घटना से मालूम होता है। कुछ महिलाओं ने कोरोना माता का सृजन कर लिया और एक काली मंदिर में जाकर पूजा पाठ करने लगीं। अच्छी भीड़ जमा हो गई। सोशल डिस्टेंस का तो खैर ध्यान रखा ही नहीं गया, कई लोगों ने मास्क लगाना भी जरूरी नहीं समझा। बहुत से लोगों ने उपवास भी रखा और इस नई देवी से प्रार्थना की कि वे जल्द से जल्द हमें इस आपदा से उन्हें मुक्ति दिलायें।

एक ओर दुनिया भर में वैज्ञानिक कोरोना से मुक्त करने के लिये नई वैक्सीन, नई दवायें तैयार करने में दिन-रात एक किये हुए हैं, और लगातार सफलता मिल भी रही है, दूसरी ओर अवैज्ञानिक दृष्टि को बढ़ावा देने वाली घटनायें भी दिखाई दे रही हैं। शुक्र है, इस घटना पर किसी राजनैतिक दल का हाथ होने की बात अभी नहीं आई है। अब प्रशासन और समाजसेवियों के सामने एक चुनौती यह भी है कि ऐसी घटनाओं को बढ़ावा देने वालों को भी अपनी कार्रवाई के दायरे में ले।

टेस्टिंग लैब का होना भी जरूरी

छत्तीसगढ़ में संक्रमण के मामलों में गिरावट को लेकर हर कोई राहत महसूस कर रहा है। बीते डेढ़ दो माह बड़ी मुश्किल में बीते हैं और आने वाले दिनों में भी यही ऊर्जा बनाये रखने की जरूरत है। दुनिया भर के वैज्ञानिक, शोध कर्ता और अन्य जानकार लोग यह सुझाव दे रहे हैं कि ज्यादा से ज्यादा टेस्टिंग की जाये। छत्तीसगढ़ में भी जो आंकड़े सामने आ रहे हैं टेस्टिंग में कमी नहीं है। पर यह भी सही है कि जितनी तेजी से ऑक्सीजन बेड, सामान्य बेड, आइसोलेशन सेंटर, कोविड केयर सेंटर बनाने पर प्रदेश में काम हुआ उतनी फुर्ती से टेस्टिंग लैब नहीं बनाये जा सके। आज भी ज्यादातर टेस्ट रिपोर्ट मेडिकल कॉलेजों में ही तैयार हो रहे हैं। छोटे जिलों में तो टेस्टिंग की सुविधा है ही नहीं। ऐसे में जांजगीर-चाम्पा जिले के सीएमएचओ ने आदेश दिया है कि एक परिवार से एक ही व्यक्ति का टेस्ट रिपोर्ट पर्याप्त है। रायगढ़ मेडिकल कॉलेज में उसे ही जांच के लिये भेजेंगे। सबका टेस्ट लिया जाना जरूरी नहीं है। सीएमएचओ का कहना है कि रायगढ़ लैब की ओर से उन्हें बताया गया है कि उनकी भी रिपोर्ट तैयार करने की एक क्षमता, सीमा है। इससे ज्यादा नहीं कर पायेंगे...। क्या जरूरी नहीं कि हर जिले में तेजी से टेस्टिंग लैब भी शुरू करने के लिये काम हो, क्योंकि टेस्टिंग की जरूरत तो आने वाले कई महीनों तक पड़ेगी।

दो डोज के बीच का अंतराल..

45 प्लस के जिन लोगों ने कोविड की दोनों खुराक ले ली है वे अपने आपको खुशकिस्मत मान रहे होंगे। पर जिन्होंने नहीं ली है वे दिक्कत मे पड़ गये हैं। जिन्हें पता नहीं, उन्हें टीकाकरण केन्द्रों से लौटना पड़ रहा है।  जब पहली खुराक ली थी तो उन्हें डेढ़ दो माह बाद दूसरा डोज लेना था, पर अब नई गाइडलाइन के मुताबिक अब उन्हें 82 दिन बाद दूसरा डोज लेना है। इसी से झल्लाये एक शख्स ने सोशल मीडिया पर अपनी भड़ास कुछ इस तरह निकाली है- जनवरी में कहा गया, दो डोज चार हफ्त में लेना है। फरवरी में बताया गया 4 से 6 हफ्ते में लेना है। मार्च में नई स्टडी आ गई 6 से आठ हफ्ते के बीच लेना है। अप्रैल में कोई नई स्टडी नहीं आई। मई में कहा गया कि दो डोज के बीच 12 से 16 हफ्तों का अंतराल होना चाहिये। क्या पता, अब जुलाई में कोई नया शोध हो कहा जाये, आपने जो एक डोज लिया है वह काफी है, दूसरा डोज लेने की जरूरत नहीं। और, सितम्बर में कहा जायेगा कि वैक्सीन का एक भी डोज अब तक नही लिया। वाह, आप तो अजेय हैं, आप अपना प्लाज्मा डोनेट करिये।

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