राजपथ - जनपथ
तथ्य से कोसों दूर कलेक्टर का जवाब
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से संवाद के लिये प्रदेश से पांच कलेक्टर जरूर बैठे थे लेकिन तय था कि वे सभी से बात नहीं करने वाले थे। आखिर देशभर से 60 से अधिक कलेक्टर उनकी इस वर्चुअल मीटिंग में जुड़े थे। छत्तीसगढ़ में मौका जांजगीर-चाम्पा के कलेक्टर यशवंत कुमार को मिला। बड़ा सरल सा सवाल था पर हड़बड़ी में जो जवाब कलेक्टर ने दिया वह सच के आसपास भी नहीं था। उन्होंने 1400 गांव बता दिये जबकि वास्तविक संख्या 915 है। यह उम्मीद करना भी स्वाभाविक है कि वह महामारी से मुक्त हो चुके या अप्रभावित रहे गांवों की संख्या की जानकारी तो कलेक्टर को हो, पर इसका जवाब भी वे नहीं दे पाये। इस शोर में हुआ यह कि प्रधानमंत्री ने कोरोना से निपटने के लिये छत्तीसगढ़ में हुए प्रयासों की जो सराहना की, वह खबर पीछे रह गई। जांजगीर कलेक्टर ने भी अधोसंरचना, कोविड केयर सेंटर, वैक्सीनेशन, पॉजिविटी रेट गिरने जैसी कई उपलब्धियों की जानकारी दी पर उनकी ओर भी किसी का ध्यान नहीं गया। अब दूसरे कलेक्टर्स कह रहे हैं कि हमने तो पूरी तैयारी कर रखी थी, हमें मौका मिला नहीं। खैर, मोदी ने सलाह दी है कि एक दूसरे से अपनी बातें शेयर करनी चाहिये, अब आगे न हो। एक कलेक्टर दूसरे से चर्चा कर लें कि क्या-क्या पूछा जा सकता है और क्या जवाब दिया जा सकता है।
चर्चा में फिर खेतान का ट्वीट
आईएएस चितरंजन खेतान की एक ट्वीट कल से चर्चा में है। उन्होंने आईपीएस दीपांशु काबरा और आर के विज के बारे में लिखा है- कभी-कभी सोचता हूं कि उनको इतना ज्ञान कहां से प्राप्त हुआ- सरकार से या और कहीं से? मेरी बुद्धि तो नहीं चलती। उनको सलाम।
लिखने के बाद खेतान को लगा, कुछ कमी रह गई है तो इसमें उन्होंने आईएएस सोनमणि बोरा का नाम भी जोड़ दिया और कहा कि पड़ोसी होने के कारण उनका जिक्र नहीं कर पाये थे।
यह किस संदर्भ में उन्होंने कहा यह साफ नहीं लेकिन यह जरूर है कि सोशल मीडिया खासकर ट्विटर पर ये अधिकारी बेहद सक्रिय हैं।
ट्वीट की प्रतिक्रिया में कुछ लोगों ने पूछा है कि यह इन अफसरों की तारीफ है या तंज?
इस ट्वीट से करीब 8 माह पहले की गई उनकी ट्वीट याद आ गई जब खेतान ने कलेक्टर्स के प्रति हमदर्दी दिखाई थी। उन्होंने कहा था कलेक्टर पर ही सारी जिम्मेदारी और उसी से सबकी नाराजगी। नेताओं के काम वो बनाये और डांट भी खाये। क्या करें, क्या न करें, बोल मेरे भाई।
इस बार नेताओं का जिक्र नहीं है इसलिये नहीं लगता कि पिछली बार की तरह कांग्रेस-भाजपा उनके इस ट्वीट पर आपस में उलझेंगे।
बिना तकलीफ उठाये आंदोलन..
राजनैतिक दलों के लिये उनके अस्तित्व से जुड़ी जरूरत है कि वह विरोधियों के खिलाफ मुद्दा गरम रखे और सडक़ पर निकले। लेकिन इन दिनों लॉकडाउन के कारण घरों से निकलने पर रोक लगी हुई है। इसके बावजूद कांग्रेस-भाजपा दोनों ने ही अपने आंदोलनजीवी होने का धर्म नहीं छोड़ा है। भाजपा को हाल ही में पश्चिम बंगाल सरकार के खिलाफ, टूलकिट और महासमुंद में महिला बाल विकास अधिकारी के आरोपों का मुद्दा मिला। कांग्रेस को भी टूल किट के फर्जी होने, रासायनिक खाद के दाम बढऩे को लेकर केन्द्र सरकार को निशाने पर लेना जरूरी था।
महामारी के इस दौर ने आंदोलन और विरोध प्रदर्शन का एक सहूलियत भरा ट्रेंड शुरू कर दिया है। घर में कुर्सी लगाकर बैठने का और तस्वीर खिंचाने का। घर के सामने कोई घंटों बैठकर करेगा भी क्या, लॉकडाउन के कारण कोई देखने भी तो नहीं आने वाला है। इसीलिये तरीका यही निकाला गया कि बैनर और तख्ती के साथ कुर्सी पर बैठकर तस्वीर खिंचवा लीजिये। तुरंत फोटो और बयान जारी कर दीजिये। सैकड़ों न्यूज पोर्टल हैं जो इस खबर को तुरंत छत्तीसगढ़ के कोने-कोने तक सर्कुलेट करने के लिये तैयार मिलेंगे। टूल किट कौन बना हुआ है?