राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : मुसीबत में काम आने वाले आलोक शुक्ला
24-May-2021 6:04 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : मुसीबत में काम आने वाले आलोक शुक्ला

मुसीबत में काम आने वाले आलोक शुक्ला 

भले ही नान केस की वजह से प्रमुख सचिव डॉ. आलोक शुक्ला का प्रशासनिक कैरियर लडखड़़ा गया। वे प्रमोट होने से रह गए, और शीर्ष प्रशासनिक पद तक नहीं पहुंच पाए, लेकिन प्रशासन में कई मौके पर संकट मोचक के तौर पर उभरे हैं। मसलन, डेढ़ साल पहले स्कूल शिक्षा विभाग में खरीदी-ट्रांसफर के चलते विभागीय मंत्री डॉ. प्रेमसाय सिंह बुरी तरह उलझ गए थे। उस समय तो 30 से ज्यादा विधायकों ने प्रेमसाय सिंह के खिलाफ सीएम को शिकायत कर दी थी। स्कूल शिक्षा महकमा सरकार के लिए सिरदर्द बन गया था। तब गौरव द्विवेदी की जगह डॉ. आलोक शुक्ला को लाया गया, और देखते ही देखते सबकुछ ठीक हो गया।

अब तो स्कूल शिक्षा विभाग की वाहवाही होने लगी है। कोरोना काल में पढ़ाई तुंहर दुआर योजना की तो राष्ट्रीय स्तर पर सराहना हुई है। प्रचार-प्रसार से दूर रहकर काम करने का अंदाज सरकार को काफी भा रहा है। और जब कोरोना काल में स्थिति एक बार फिर अनियंत्रित होती दिख रही थी, तब सीएम खुद व्यवस्था की मॉनिटरिंग करने लगे। इस मौके पर डॉ. आलोक शुक्ला ही सलाहकार के रूप में उभरे।

रेणु पिल्ले के छुट्टी पर जानेे के बाद डॉ. आलोक शुक्ला को पहले प्रभार दिया गया, और फिर पूरी तरह स्वास्थ्य महकमा डॉ. आलोक शुक्ला के हवाले कर दिया गया। ये अलग बात है कि इस बदलाव से टीएस सिंहदेव संतुष्ट नहीं थे। मगर यह भी सच है कि आलोक शुक्ला के स्वास्थ्य महकमा संभालते ही कोरोना का ग्राफ लगातार गिरने लगा है, और प्रदेश की स्थिति सामान्य होती दिख रही है। आलोक शुक्ला की कार्यप्रणाली को नजदीक से जानने वाले केन्द्र सरकार में भी काम कर चुके राज्य के एक पूर्व मुख्य सचिव का मानना है कि आलोक जीनियस है। विशेषकर संकटकाल में स्वास्थ्य जैसा महत्वपूर्ण महकमे के लिए आलोक सबसे उपयुक्त है।

अब कैसे पालन होगा लॉकडाउन का?

सूरजपुर के पिटाई मामले पर लिए गए एक्शन ने कई दबी हुई आवाजों को मुखर कर दिया। आईएएस रणवीर सिंह पर कार्रवाई होते ही तुरंत लोगों का ध्यान भैयाथान के एसडीएम प्रकाश राजपूत की तरफ चला गया और वीडियो के साथ प्रमाण दिया गया कि उन्होंने भी सडक़ पर निकलने वाले युवकों को थप्पड़ लगाई। यह बात अलग है कि इस लाइन के लिखे जाने तक उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई है। पर लोग साहस बटोर कर शिकायतें सामने ला रहे हैं। कांकेर के कुछ युवकों ने 10 दिन पुरानी घटना का जिक्र सोशल मीडिया पर किया है। फेसबुक पोस्ट पर युवक ने लिखा है कि 13 मई की शाम 5:30 बजे बिजली बंद थी। वह अपने तीन-चार दोस्तों के साथ सडक़ पर टहल रहे थे। उसी समय काम कर के डिप्टी कलेक्टर विश्वास कुमार और दो-तीन बोलेरो जीप में पुलिस वाले पहुंचे। पहले उन्होंने शब्दों से फिर डंडे से बौछारें कीं। मना करने पर भी नहीं रुके। जबकि हमने मास्क पहना हुआ था और दूरी बनाकर चल रहे थे। मेरे हाथ में अब तक सूजन है, जो इस बात का सबूत है।

पोस्ट के मुताबिक सूरजपुर का मामला सामने आने के बाद उनमें यह बात बताने की हिम्मत आई। मामले में डिप्टी कलेक्टर की सफाई भी आ गई है कि इन लोगों को कोई गलतफहमी हुई होगी। मैंने तो पिटाई किसी की नहीं की। वैसे युवकों के पोस्ट से यह पता नहीं चलता है कि वह इस मामले में कोई कार्रवाई चाहते हैं या नहीं। या फिर किसी अधिकारी से इसकी शिकायत भी की है।

मगर यह तो तय हो गया है कि अब लॉक डाउन का उल्लंघन करने वालों को रोकने के लिए कुछ नए उपायों पर प्रशासन व पुलिस को विचार करना पड़ेगा। कहीं ऐसा ना हो की खौफ और रौब खत्म हो जाए और लॉकडाउन की कोई परवाह ही न करे।

क्रेज घटने लगा वेबीनार का

कोरोना के चलते कितनी ही छोटी-छोटी गोष्ठियों, सभाओं पर विराम लगा हुआ है। वीडियो कांफ्रेंस के जरिए पहले सरकारी अधिकारी नेता बैठकें लेते थे लेकिन अब यह घर-घर की बात हो गई है। दादी-दादी और गृहणियों ने भी इसे सीख लिया है। शुरू-शुरू में वेबीनार या ऑनलाइन मीटिंग में घर पर बैठे-बैठे शामिल होना रोमांच लाता था और लोग बड़ी जिज्ञासा के साथ इनमें भाग लिया करते थे। पर, अब ऐसा नहीं है। लोगों के पास इतने अधिक लिंक आने लग गए हैं कि उनमें शामिल होने के लिए सोचना पड़ता है। और, लोगों को याद आ रहा है कि प्रत्यक्ष किसी सभा में शामिल होने का अनुभव कुछ अलग है। वेबीनार में सामने कई चेहरे तो होते हैं लेकिन आपस में सहज संवाद नहीं हो पाता। लोगों को प्रतीक्षा तो कोरोना की लहर खत्म होने की प्रतीक्षा है जब भौतिक उपस्थिति के साथ आमने-सामने होने वाली बैठकों में काना-फूसी, चुगली, आलोचना भी हो सके।

ऐसे ही सलाह मांगते रहना चाहिये...

केंद्रीय शिक्षा बोर्ड सीबीएसई, आईसीएसई और कई राज्यों की बारहवीं बोर्ड परीक्षा कोरोना संक्रमण के चलते अब तक नहीं हो पाई है, या यूं कहें कि तारीख भी तय नहीं हो पाई है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के साथ इन संस्थाओं के अधिकारियों की बैठक का कोई नतीजा नहीं निकला। अब केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल ने सभी राज्य सरकारों से आग्रह किया है कि अपना सुझाव दें। यह बताएं की परीक्षा में किस तरह का प्रश्न पत्र हो, कितनी देर की हो, आदि-आदि।

शिक्षा और 12वीं बोर्ड की परीक्षा वास्तव में बहुत गंभीर मसला है जिस पर राज्यों से सुझाव मांगना बहुत अच्छी बात है लेकिन कई लोग पूछ रहे हैं कि क्या यह केवल इसी एक मुद्दे पर सुझाव लेना चाहिए? ज्यादातर मामलों में तो केंद्र सरकार ने किसी मसले पर राज्यों से कुछ पूछा ही नहीं। जैसे कि 18 प्लस के लोगों को 1 मई से वैक्सीन लगाने का फैसला। बोर्ड परीक्षा के मामले में भी दिल्ली और महाराष्ट्र जैसे राज्यों के शुरुआती सुझाव आ ही गये हैं। वे कह रहे हैं कि परीक्षा लेने से पहले छात्र-छात्राओं को वैक्सीन लगाई जाए। देखना है की इस सुझाव को तवज्जो दी जाती है या नहीं।

वैक्सीनेशन से ज्यादा कठिन दाखिला

स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम उत्कृष्ट विद्यालयों में दाखिला लेने के लिये जबरदस्त आकर्षण है। ऑनलाइन और ऑफलाइन आवेदन के लिये अंतिम तिथि 10 जून तय की गई है। पर अभी से अधिकांश शालाओं में उपलब्ध सीटों से ड्योढ़े, दुगने आवेदन आ गये हैं। राज्य भर में 6 हजार सीटें हैं पर 9 हजार से अधिक आवेदन अब तक आ चुके हैं। हो भी क्यों नहीं। जो लोग पब्लिक स्कूलों के नाम पर निजी संस्थानों की मोटी फीस और पढ़ाई की गुणवत्ता को लेकर तंग आ चुके हैं, उन्हें अच्छा विकल्प मिला है। सरकारी हिन्दी मीडियम स्कूलों में तो थोड़ी-बहुत फीस भी है, पर इन अंग्रेजी स्कूल में एडमिशन फीस, परीक्षा फीस, ट्यूशन फीस सब माफ है। किताबें और यूनिफॉर्म भी नि:शुल्क मिलेंगे।

आवेदनों की बड़ी संख्या को देखते हुए तय किया गया है कि लॉटरी निकालकर प्रवेश दिया जाये। पर यह इतना आसान भी नहीं है। लॉटरी निकालते समय भी कई श्रेणियों का ध्यान रखना होगा। जैसे, कुल मे से आधी सीटें बालिकाओं के लिये आरक्षित की जायेंगी। 25 प्रतिशत आरटीई के दायरे में आने वाले गरीब परिवारों के बच्चों के लिये रिजर्व रखा जायेगा। इस बार एक और मापदंड जोड़ा गया है, उन बच्चों को प्राथमिकता से प्रवेश दिया जायेगा जिनके माता-पिता को कोरोना ने छीन लिया।

संकेत यही मिलता है कि आने वाले दिनों में स्वामी आत्मानन्द दर्जे के स्कूलों की संख्या बढ़ानी बढ़ानी पड़ सकती है। स्कूली शिक्षा पर बजट बढ़ाना पड़ सकता है। पर, सरकारी स्कूलों के बारे में लोगों की धारणा भी तो बदलेगी। वैसे अभी स्कूलों के रंग-रोगन और फर्नीचर की सुविधा का ही ज्यादा आकर्षण है। अब तक कोरोना के चलते कक्षायें ठीक तरह से लग नहीं पाई हैं। पढ़ाई की गुणवत्ता को परखा जाना अभी बाकी है।

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