राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : सुब्रमण्यम के जलवे...
28-May-2021 6:03 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : सुब्रमण्यम के जलवे...

सुब्रमण्यम के जलवे...

छत्तीसगढ़ कैडर के आईएएस और जम्मू कश्मीर के सीएस बीवीआर सुब्रमण्यम केंद्र सरकार में महत्वपूर्ण वाणिज्य-उद्योग सचिव नियुक्त हुए हैं। सुब्रमण्यम छत्तीसगढ़ कैडर के पहले अफसर हैं, जो केंद्र सरकार में सचिव के पद पर नियुक्त हुए हैं। कुछ लोग सुब्रमण्यम की नियुक्ति को ईनाम भी मान रहे हैं। वजह यह है कि सुब्रमण्यम के सीएस रहते ही जम्मू कश्मीर में धारा 370 और 35ए खत्म हुआ। जम्मू कश्मीर और लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश बना। वे इस सारी प्रक्रिया के हिस्सा भी थे।

एक रिटायर्ड अफसर का मानना है कि सुब्रमण्यम सीएस के रूप में इतिहास का हिस्सा भी बन गए हंै। 87 बैच के अफसर सुब्रमण्यम पिछले दो दशक से महत्वपूर्ण पदों पर रहे हैं। वे यूपीए सरकार में तत्कालीन पीएम डॉ. मनमोहन सिंह के सचिव रहे। उन्होंने एनडीए सरकार में भी पीएमओ में संयुक्त सचिव के रूप में काम किया। वे वर्ल्ड बैंक में भी सलाहकार रहे। कुल मिलाकर वे केंद्र की दोनों सरकारों का भरोसेमंद रहे। छत्तीसगढ़ में प्रमुख सचिव (गृह) के पद पर रहते राज्य पुलिस बल के केंद्रीय बलों के साथ तालमेल में अहम भूमिका निभाई थी। उनकी कार्यशैली को नजदीक से देखने वाले एक रिटायर्ड सीएस, सुब्रमण्यम को काबिल और ईमानदार अफसर मानते हैं।

एक समय ऐसा भी था, जब उन्हें छत्तीसगढ़ का मुख्य सचिव भी बनाए जाने की चर्चा चल रही थी। सुनते हैं कि करीब डेढ़ साल पहले उनकी सीएम भूपेश बघेल के साथ बैठक भी हुई थी। तब वे जम्मू कश्मीर में कुछ असहज महसूस कर रहे थे, लेकिन बाद में स्थिति उनके अनुकूल होती गई, और फिर बाद में उन्होंने भी छत्तीसगढ़ में कोई रूचि नहीं ली। इससे परे आतंकवाद से ग्रस्त जम्मू कश्मीर में भी उनके करीब तीन साल के कार्यकाल में प्रशासन को लोग मोदी सरकार की मर्जी का मानते हैं, और अभी केंद्र में आने के बाद उनकी संभावनाएं बची हुई हैं. उनके पुराने ठिकाने पीएमओ में रिटायर्ड अफसरों की बड़ी जगह रहती है।

गाज बस थानेदार के सिर पर गिरा...

सारंगढ़ में एक क्लीनिक में घुसकर वसूली के मामले में गर्दन फंसी तो बस सब-इंस्पेक्टर की। पर इसमें शामिल उससे बड़े-बड़े अधिकारी लगता है बचा लिये जायेंगे।

सारंगढ़ थाना प्रभारी कमल किशोर पटेल, ब्लॉक मेडिकल ऑफिसर डॉ. आरएल सिदार और तहसीलदार सुनील अग्रवाल हिर्री गांव के डॉ. खगेश्वर प्रसाद वारे की क्लीनिक में पहुंचे थे। आरोप है कि उन्होंने क्लीनिक में अनियमितता के नाम से धमकाते हुए डॉक्टर से पांच लाख रुपये की मांग की। जब डॉक्टर ने इतनी बड़ी रकम देने से हाथ खड़े कर दिए तब मामला तीन लाख रुपये में सेट हो गया। लेन-देन की पूरी घटना क्लीनिक के सीसीटीवी कैमरे में रिकॉर्ड हो गई और इधर डॉक्टर ने सबूत के साथ इसकी शिकायत कलेक्टर और दूसरे उच्चाधिकारियों को कर दी।

जनपद कहें, कस्बा या छोटे शहर, स्वास्थ्य, राजस्व और पुलिस विभाग के यही सबसे बड़े अधिकारी होते हैं। यदि इन तीनों विभागों के अधिकारी वसूली के लिए गठजोड़ बना लें तो किस सीमा तक उत्पात मचा सकते हैं अंदाजा लगाया जा सकता है।

बहरहाल, रायगढ़ पुलिस अधीक्षक ने थाना प्रभारी को तो लाइन अटैच कर दिया और एसडीओपी की जांच भी बिठा दी, मगर बाकी अन्य विभागों के बड़े अधिकारियों को जांच के नाम पर नोटिस जैसी प्रक्रियाओं का कवच पहना दिया गया है। एसपी ने प्रारंभिक कार्रवाई के बाद जांच की घोषणा की है, पर तहसीलदार, बीएमओ के खिलाफ जांच से पहले ऐसा कोई कदम नहीं उठाया गया। होना तो यह चाहिए कि पहले बड़े अधिकारी की गिरेबान नापी जानी चाहिए। अब सूरजपुर का मामला ही लें। वहां कलेक्टर ने थप्पड़ मारी तो उनका तबादला हो गया। पर उसी तरह थप्पड़ चलाने वाले एसडीएम पर अभी कोई आंच नहीं आई है।

जरा संभलकर खायें मिठाईयां कुछ दिन

लंबे लॉकडाउन के बाद प्रदेश के अधिकांश जिलों में अनलॉक की प्रक्रिया शुरू हो गई है। उन लोगों को इससे बड़ी खुशी हुई है जो चटपटे चाट और रसीले रसगुल्लों के लिये तरस रहे थे। लेकिन थोड़ा रुक जाना चाहिये। खाद्य एवं औषधि प्रशासन विभाग के आदेश पर गौर किया जाये। इन्होंने प्रदेश के सभी स्वीट कॉर्नर और होटल संचालकों को निर्देश दिया है कि लॉकडाउन से पहले जो मिठाइयां बच गई थी उन्हें वह काउंटर में न सजाएं, नष्ट करें। इनकी बिक्री प्रतिबंधित है। यानी ताजा बनी मिठाइयों को ही बेचने का निर्देश है। वैसे ज्यादातर दुकानदारों ने इस बात को पहले ही माल खत्म कर दिया होगा। लॉकडाउन की अवधि बार-बार बढ़ती गई। इतने दिन में उसमें फफूंद, फंगस भी लग गये होंगे। भरोसा करके चलना चाहिये कि दुकानदारों को अपने फर्म की गुडविल की चिंता तो होगी ही, अपने सेहत का ख्याल रखना तो आपका काम है। पर ताजा मिठाईयों का सवाल है तो अभी कारीगर काम पर ठीक से लौटे नहीं हैं। इसलिये खरीदी के पहले सूंघ, चख लेना ज्यादा ठीक होगा। वैसे बता दें नमकीन के लिये भी ड्रग डिपार्टमेंट का वही ऑर्डर है, जो मिठाई के लिये है।

मदिरा नीति में केरल का क्या मुकाबला?

छत्तीसगढ़ की तरह केरल भी उन राज्यों में शामिल है जहां शराब पीने वालों की संख्या बहुत अधिक है और यह अपने राज्य की ही तरह राजस्व का बहुत बड़ा स्त्रोत भी है। सन् 2020 में जब लॉकडाउन लगा तो वहां भी छत्तीसगढ़ की तरह घर-घर शराब पहुंचाने के लिये ऑनलाइन सेवा शुरू की गई थी। इस साल लॉकडाउन के समय ही केरल में नई सरकार बनी है। वहां के आबकारी मंत्री ने बयान दिया है- हमारी नीति पूर्ण शराबबंदी नहीं बल्कि शराब के परहेज को बढ़ावा देने की है हमारी योजना घर-घर शराब पहुंचाने की भी नहीं है और इसलिए नहीं होगा।  इधर छत्तीसगढ़ में जब लॉकडाउन का समय बढ़ता गया तो शराब के ऑनलाइन ऑर्डर और होम डिलिवरी की सेवा शुरू कर दी गई। शुरूआत में ही इतने अधिक ऑर्डर आ गये कि पोर्टल के साथ-साथ पूरा आबकारी महकमा ही पस्त हो गया। बिक्री के रिकॉर्ड भी टूट गये। पर इस सुविधा का फायदा देसी पीने वाले ज्यादातर लोग नहीं उठा पा रहे थे। आबकारी मंत्री ने कहा- गरीबों को बड़ी असुविधा हो रही थी, उनके हित को देखते हुए देसी दुकानों को खोलने का फैसला लिया गया है। इसकी पुष्टि भी बिलासपुर के एक मदिरा प्रेमी ने दुकान खुलते ही चखना सेंटर की आरती उतारकर कर दी। या तो केरल की सरकार छत्तीसगढ़ की तरह जनता के नब्ज की ठीक तरह से पहचानती नहीं या फिर कहा जा सकता है कि जीत का नया-नया जोश है। वैसे केरल सरकार ज्यादा व्यवहारिक नजर आ रही है। अपने यहां शराबबंदी का मुद्दा गले की फांस बना हुआ है, केरल सरकार ने कह दिया कि हम पूर्ण शराबबंदी नहीं करेंगे पर लोग परहेज करें ऐसी नीति बनायेंगे।

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