राजपथ - जनपथ
जन्म तारीख का मौसम
आज 1 जून को छत्तीसगढ़ के एक आईपीएस अफसर आरिफ शेख ने फेसबुक पर लिखा है कि आज उनके 46 फेसबुक दोस्तों का जन्मदिन है। उन्होंने लिखा है कि भारत में स्कूल आमतौर पर जून के दूसरे सोमवार से शुरू होते हैं और 1 जून तक जिन बच्चों के 5 साल पूरे हो जाते हैं तो उन्हें पहली कक्षा में एडमिशन मिलता है इसलिए बहुत से बच्चों का जन्मदिन मां बाप या स्कूल शिक्षकों द्वारा 1 जून लिखवा दिया जाता है ताकि उनका दाखिला आसानी से हो जाए।
कोई आधी सदी पहले मध्यप्रदेश में स्कूल 1 जुलाई से खुला करती थीं, बाद में कब वह कैलेंडर बदला यह तो ठीक से याद नहीं है लेकिन उस वक्त जन्म तारीख अगर 30 जून रहती थी, तो उस दिन तक पैदा होने वाले और 5 बरस पूरे करने वाले बच्चों को स्कूलों में दाखिला मिल जाता था। इस उम्र के साथ-साथ एक और पैमाना उन दिनों चलता था कि बच्चों के हाथ उनके सिर पर से लाकर उनके कान छुआए जाते थे, और अगर हाथ कान तक पहुंच जाते थे, तो भी उनका दाखिला हो जाता था। वह दौर ऐसा था जब कोई जन्म प्रमाण पत्र ना बनते थे ना लगते थे, और स्कूल में लिखाई गई जन्म तारीख ही बात में जन्म प्रमाण पत्र मान ली जाती थी।
रायपुर में एक संयुक्त परिवार ऐसा भी है जिसके हर बच्चे की जन्म तारीख 30 जून दर्ज है। ऐसे परिवार कम नहीं होंगे।
अब तो फैशनेबल निजी स्कूलों में पहली कक्षा के पहले भी दो-तीन कक्षाएं और होती हैं, प्ले स्कूल, के जी-1, के जी-2, नर्सरी, पता नहीं इनमें आगे-पीछे क्या होता है। और बच्चों का ढाई-तीन साल से ही स्कूल जाना शुरू हो जाता है। अब पता नहीं किस दाखिले के लिए कौन सी तारीख आगे पीछे करके लिखाई जाती है या फिर अब अस्पतालों से ही पैदा होते ही मिलने वाले जन्म प्रमाण पत्रों की वजह से यह फर्जीवाड़ा कुछ कम हुआ है। बहुत से मामलों में तो पहले यह होता था कि लोग सरकारी नौकरी पाने के बाद रिटायर होने के पहले भी अपनी जन्म तारीख से सुधरवाते रहते थे ताकि नौकरी में 2-4 बरस और गुजर जाएं। अब धीरे-धीरे वैसे चर्चा भी कम सुनाई पड़ती है।
मौत कोरोना से होने का सर्टिफिकेट कहां है?
कोरोना से अपने माता-पिता को खोने वाले बच्चों के लिए 3 दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मदद का ऐलान किया। साथ ही अपील की फिर आज भी ऐसे बच्चों की सहायता के लिए राज्य भी आगे आयें। इसी कड़ी में छत्तीसगढ़ सरकार ने तय किया है की बेसहारा बच्चों को मुफ्त शिक्षा दी जाएगी। इसके अलावा उन्हें हर माह छात्रवृत्ति भी मिलेगी। इन्हें स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी उत्कृष्ट स्कूलों में प्रवेश के लिये प्राथमिकता भी दी जायेगी। यह सब तो ठीक है पर दूसरी तरफ विभिन्न जिलों से खबर आ रही है कि कोरोना से मरने वालों के मृत्यु प्रमाण पत्र में इस महामारी से मृत्यु होने का उल्लेख नहीं किया जा रहा है। पंजीयन अधिकारी वजह सिर्फ यह बता रहे हैं कि शासन से ऐसा ही निर्देश आया है। मगर यह निर्देश क्यों दिया गया है, इसकी उनको जानकारी नहीं है। मालूम हुआ है कि मुआवजे का दावा नहीं किया जा सके, इसलिये यह अघोषित नियम बना दिया गया। पर सवाल उठ रहा है कि अनाथ बच्चे सर्टिफिकेट नहीं होंगे तो योजनाओं का फायदा कैसे उठा पाएंगे?
नये कृषि कानून की झलक
केन्द्र का कहना है कि नया कृषि कानून राज्यों को मानने की बाध्यता है। राज्य सरकार ने इसे असरहीन करने के लिये दो विधेयक पारित किये हैं जिन पर अभी राज्यपाल के हस्ताक्षर की जरूरत है। इस हिसाब से केन्द्र का कानून राज्य में लागू होना ही माना जाना चाहिये। इधर बेमेतरा जिले की घटना से समझा जा सकता है कि इस कानून के क्या नफा-नुकसान हैं। यहां के 40 गांवों के ढाई सौ से ज्यादा किसानों ने 12 सौ एकड़ में नर-नारी बीज बोया। ये बीज एक निजी कम्पनी ने उपलब्ध कराये थे, ज्यादा पैदावार का आश्वासन मिला था। इसकी बोनी और देखभाल पर काफी खर्च भी हुआ। बालियां बढऩे लगी तो किसानों को खुशी भी हुई, मगर तब झटका लगा जब फसल तैयार हुई तो उसमें दाने ही नहीं पड़े। किसान लुट गये। कम्पनी ने एग्रीमेंट किया था, पर जिसमें बीज ही नहीं, वह फसल वह कैसे खरीदे, हाथ खड़े कर दिये। किसान अब मुआवजे की मांग कर रहे हैं। कम्पनी जो मुआवजा देने का आश्वासन दे रही है वह फसल की लागत के भी बराबर नहीं है। किसान समझ नहीं पा रहे हैं कि कोर्ट का दरवाजा खटखटायें या पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करायें। यह भी डर बना हुआ है कि कम्पनी कहीं नये कानून का हवाला देकर अपने खिलाफ किसी भी शिकायत पर जांच को न रुकवा दे। थोड़ा बहुत मुआवजा जो मिलने वाला है वह भी न मारा जाये। मामला अटका हुआ है। किसान कृषि विभाग से मध्यस्थता की उम्मीद कर रहे हैं, पर वह भी अपना पल्ला झाड़ रहा है।
साइकिल आदत में शामिल कर लें?
राज्य सरकार ने ड्राइविंग लाइसेंस सहित आरटीओ दफ्तर के अनेक काम घर बैठे ऑनलाइन आवेदन के जरिये निपटाने की व्यवस्था की है। यह योजना जनवरी माह में लांच की गई थी। अब उसका विस्तार किया गया है। जब भी ड्राइविंग, आरटीओ, वाहन आदि की बात होती है अचानक पेट्रोल-डीजल की कीमत पर ध्यान चला जाता है। कोरोना के चलते लोग इतने टूटे हुए हैं कि वे घर से निकलकर बढ़ती कीमतों के खिलाफ आंदोलन करने की हिम्मत नहीं कर पा रहे हैं। विपक्षी दलों का भी यह मुद्दा नहीं है। अभी केवल वैक्सीनेशन हॉट टॉपिक है। लोग लॉकडाउन की वजह से घरों में बैठे थे पर एक जून से ज्यादातर जिले अनलॉक हो रहे हैं। याद होगा जनवरी माह में रायपुर के महापौर ने साइकिल पर दफ्तर आने का अभियान छेड़ा था। वह था तो पर्यावरण और ट्रैफिक सुधारने का संदेश देने के लिये लेकिन लगता है कि अब की बार सौ तो पार हो ही जायेगा। अब रस्म और फोटो खिंचवाने से बाहर निकलकर साइकिल को अपनी आदत में शामिल करना पड़ेगा।