राजपथ - जनपथ
कोरबा के गांव में कोरोना से बचने के कायदे
महात्मा गांधी कहते थे गांव की व्यवस्था गांव वाले ही संभालें। थोड़ा पीछे जाएं तो गांव में सरपंच और पंचों का एक समूह नियम-कायदे तय करता था। पर धीरे-धीरे यह हुआ कि सामाजिक बहिष्कार करने जैसे फैसले लिये जाने लगे और मामले पुलिस अदालत में पहुंचने लगे। अब कोरबा जिले की एक जो खबर है उस पर आप अपने हिसाब से निष्कर्ष निकालिये कि यह ठीक है या गलत। करतला ब्लॉक के जोगीपाली पंचायत के मांझी आदिवासियों ने तय किया है कि घर से बाहर निकलेंगे मास्क लगाना जरूरी है। बिना मास्क दिखे तो 10 रुपये जुर्माना देना पड़ेगा। उस जुर्माने की रकम से आपको मास्क खरीद कर दी जाएगी। लॉकडाउन के नियम नहीं मानने पर, बाहर से लौटने पर गांव में घुसने तो दिया जायेगा लेकिन 1000 रुपये जुर्माना देना होगा।
ऐसे वक्त में जब कोरोना को लेकर तरह-तरह की भ्रांतियां गांवों में फैली हुई है, किसी गांव में इतनी सतर्कता बरती जा रही हो तो सुनकर हैरानी तो होती है।
बस तस्वीर भली है, हक और हकीकत नहीं
गांवों की ऐसी तस्वीर आपको सिर्फ देखने में भली लग सकती है, भोगने में नहीं। जब इतना भारी कंडों का बोझ लिये महिलायें जा रही हैं तो दो चार दिन नहीं आने वाली पूरे बारिश की चिंता उनको होगी। सरकारी आंकड़े हैं कि देश के 24 करोड़ गरीब परिवारों को उज्ज्वला गैस सिलेंडर दी गई। पर किसी को पता नहीं कि इस सिलेंडर से कितनों के घर चूल्हा जलता है।
(सौजन्य-प्राण चड्ढा)।
कुतर्क का इलाज हकीम लुकमान के पास भी नहीं
लोगों से किसी किस्म की सावधानी की बात की जाए तो वे उसके खिलाफ हजार किस्म के कुतर्क तैयार रखते हैं। सिगरेट पीने वाले बड़े-बड़े ज्ञानी-विद्वान ऐसे रहते हैं जिन्हें सिगरेट के नुकसान गिनाएं, तो वे अपने परिवार की मिसालें देते हैं कि उनके घर कौन-कौन रोज कितनी-कितनी सिगरेट पीते हुए कितनी लंबी उम्र तक जिंदा रहे हुए हैं। अभी फेसबुक पर किसी ने के लिखा कि उनके दफ्तर का एक कर्मचारी रोजाना दर्जनों लोगों से मिलता है, लेकिन अभी तक कोरोना से इसलिए बचा हुआ है कि पिछले 15 महीनों में उसने मास्क उतारकर कभी दफ्तर में या बाहर अपना चेहरा ही नहीं दिखाया है। इस पर किसी ने छत्तीसगढ़ के ही एक शहर के डॉक्टर का नाम लिखा कि उनके दोनों बेटे भी डॉक्टर हैं, और इन तीनों ने एक भी दिन मास्क नहीं लगाया।
अब जो लोग डॉक्टर रहते हुए भी इस पूरे दौर में मास्क लगाने से परहेज करते रहे हैं, उनसे क्या बहस की जा सकती है? बहस तो उन्हीं लोगों से हो सकती है जो कि विज्ञान को मानते हों, चिकित्सा विज्ञान के दिखाए गए खतरों से सावधान रहते हों। कई ऐसे भी लोग हैं जो वैक्सीन के खिलाफ साजिश की कहानियों में डूबे रहते हैं, और गंभीर बीमारियों के बाद भी वैक्सीन नहीं लगवाते।
कुछ लोगों ने फेसबुक की इस चर्चा पर तंज कसते हुए यह लिखा है कि वह ऐसे बहुत से लोगों को जानते हैं जिन्होंने कभी सीट बेल्ट और हेलमेट नहीं लगाया है फिर भी जिंदा हैं। दरअसल खतरा सिगरेट का हो कोरोनावायरस या सडक़ हादसे में मरने का हो, लापरवाही बरतते लोगों के भी जिंदा रहने की मिसालें कम नहीं रहतीं और ऐसी मिसालें दूसरे लोगों की लापरवाही बढ़ाने के काम आती हैं।