राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : भारतीदासन का बड़ा प्रमोशन
06-Jun-2021 6:40 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : भारतीदासन का बड़ा प्रमोशन

भारतीदासन का बड़ा प्रमोशन

सरकार के ढाई साल पूरे होने के साथ ही एक बड़ा प्रशासनिक फेरबदल किया गया। इनमें रायपुर, और कोरबा कलेक्टर का तबादला अपेक्षित था। दोनों को ढाई साल हो चुके थे। फेरबदल के बाद रायपुर कलेक्टर एस भारतीदासन पॉवरफुल होकर उभरे हैं। उन्हें सीएम के विशेष सचिव के साथ-साथ कमिश्नर जनसंपर्क, और सरकार की फ्लैगशिप योजनाएं नरवा, गरूवा, घुरूवा, बाड़ी, और गोधन न्याय योजना का नोडल अधिकारी बनाया गया है। उन्हें विशेष सचिव कृषि की जिम्मेदारी सौंपी गई है।

भारतीदासन अपने कार्यकाल में निर्विवाद रहे हैं, और उनकी कार्यशैली को सबने पसंद भी किया। यही वजह है कि सीएम ने उन्हें अपने साथ रखा है। कोरबा कलेक्टर किरण कौशल को मार्कफेड में लाया गया है। मार्कफेड का करीब 15 हजार करोड़ का कारोबार है। मार्कफेड का अतिरिक्त प्रभार विशेष सचिव अंकित आनंद के पास था, जो कि इससे मुक्त होना चाह रहे थे। राजनांदगांव कलेक्टर टोपेश्वर वर्मा को पहली बार सचिव बनने के साथ ही अहम विभाग भी मिला है। उन्हें खाद्य सचिव के साथ-साथ परिवहन विभाग का भी दायित्व सौंपा गया है।

 पहली बार में पुराना जिला

सरकार ने पिछले ढाई साल से जनसंपर्क की कमान संभाल रहे तारण प्रकाश सिन्हा को कलेक्टर बनाकर राजनांदगांव भेजा गया। राजनांदगांव राजनीतिक, और प्रशासनिक दृष्टि से काफी अहम जिला है। तारण सिन्हा ने जब जनसंपर्क का प्रभार संभाला था जब सरकार नई-नई थी, और विभाग में भ्रष्टाचार की गूंज चौतरफा सुनाई दे रही थी। पिछली सरकार के लोगों ने सालभर का बजट तीन महीने में ही उड़ा दिया था।

ऐसे विपरीत माहौल में विभाग और नई सरकार की छवि निखारने की जिम्मेदारी भी उन पर थी। उन्होंने अपना काम बेहतर तरीके से किया। उन्हें सीएम का भरपूर समर्थन भी मिला। उन्होंने विभाग में अनुशासन लाने, और रणनीति बनाकर देश-प्रदेश में सरकारी योजनाओं के लिए प्रचार-प्रसार खूब मेहनत की। उन्होंने विज्ञापनों में भेदभाव की शिकायतों को काफी हद तक दूर किया। वे सरकार की अपेक्षाओं में खरे उतरे। यही वजह है कि पहली बार में उन्हें पुराने जिले की कमान सौंपी गई है।

निगम से राजधानी कलेक्टर

नगर निगम आयुक्त सौरभ कुमार का कद एकाएक बढ़ा है, और उन्हें रायपुर कलेक्टरी सौंपी गई है। सौरभ कुमार सरकार बदलने के बाद कुछ तकलीफ में थे, और अनियमितता की शिकायतों की जांच के घेरे में आ गए थे। लेकिन जब उन्हें निगम कमिश्नर की जिम्मेदारी सौंपी गई, तो उन्होंने काफी बेहतर काम किया, और सरकार की मंशा में खरे उतरे। महापौर एजाज ढेबर भी उन्हें कलेक्टर बनवाने में लगे हुए थे। इसका प्रतिफल यह रहा कि उन्हें रायपुर कलेक्टर बनाया गया।

इससे परे प्रधानमंत्री के सवालों का सही ढंग से जवाब नहीं देने के कारण जांजगीर-चांपा कलेक्टर यशवंत कुमार का हटना तय माना जा रहा था। उनकी जगह जितेन्द्र शुक्ला को भेजा गया है। जितेन्द्र जिले में जाने के लिए काफी उत्सुक भी थे।

इसी तरह किरण कौशल की जगह रानू साहू को भेजा गया, जिनके परिवार से सीएम का पुराना घरोबा रहा है। महिला की जगह महिला कलेक्टर की पोस्टिंग हुई है। इसी तरह पी एस एल्मा को बड़ा जिला देकर उपकृत किया गया है।

भाग दौड़ से बचना है तो टीके के लिये खर्च करिये

केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने जानकारी दी है कि निजी अस्पतालों को 1 करोड़ 20 लाख टीके मई माह में दिये गये। अपने छत्तीसगढ़ में भी ये टीके आये हैं जो अपोलो सहित कुछ बड़े अस्पतालों में उपलब्ध हैं। ये टीके लगभग 800 रुपये में लगाये जा रहे हैं। इधर छत्तीसगढ़ सरकार भारत बायोटेक और सीरम इंस्टीट्यूट को 75-75 लाख टीकों का ऑर्डर कर चुकी है, जो 18 से 44 साल के लोगों को लगाये जायेंगे। इसके लिये रजिस्ट्रेशन भी चल रहा है। करीब 10 दिनों के बाद एक बार फिर इस वर्ग को टीका लगाने की शुरुआत आज से की गई है। राजधानी के लिये ही 14 हजार टीके आबंटित किये गये हैं। पिछली बार देखा गया था कि टीके लगाने के लिये जो सेंटर मिल रहे हैं वे शहरों से 20-20 किलोमीटर दूर हैं। बारी भी देर से आ रही है। इससे परेशान लोग मुफ्त टीका लगवाने का मोह छोडक़र निजी अस्पतालों की तरफ मुड़ रहे हैं। पर दिक्कत यह है कि निजी अस्पतालों में भी मांग के अनुरूप सप्लाई नहीं हो रही है। आने वाले दिनों में जब आपूर्ति की स्थिति में सुधार होगा, बहुत संभव है कि जो भी सक्षम हैं भाग-दौड़ से बचने के लिये  निजी अस्पतालों को प्राथमिकता दें। वैसे लोगों को हाईकोर्ट में सरकार की ओर से कुछ दिन बाद दिये जाने वाले जवाब की भी प्रतीक्षा है जिसमें वह बतायेगी कि 18 से 44 वर्ष के लोगों को टीके लगाने के लिये उसके पास क्या योजना है।

प्राइवेट के जरिये हरियाली लौटाने की कोशिश

इस बार भी हर वर्ष की तरह विश्व पर्यावरण दिवस पर पौधे लगाने की होड़ रही पर हर साल की तरह इस बार भी सवाल यही बना रहा कि इनमें से कितने पौधे बचेंगे। जब भी शहर के विकास की बात होती है तो वर्षों पुराने हरे-भरे पेड़ काटे जाते हैं। लक्ष्य उससे 10 गुना अधिक पौधे लगाने का रखा जाता है पर सच्चाई यह है कि काटे गये पौधों के मुकाबले 10 फीसदी भी नये पौधे नहीं पनपते। रायपुर में स्मार्ट सिटी और नगर निगम दोनों को विकास कार्य करने हैं। इसलिये ज्यादा पेड़ काटने पड़ते हैं। दानी स्कूल, माधवराव सप्रे स्कूल जैसे जगहों पर काटे गये सैकड़ों पुराने पेड़ की जगह दुबारा हरियाली लौटेगी या नहीं यह सवाल बना हुआ है। दावा बीते वर्षों में हर साल पांच हजार पौधे लगाने का किया जा रहा है, पर इनमें से कितने पौधे बच पाये यह भी लोगों को दिखाई दे रहा है। अब स्मार्ट सिटी ने पौधे लगाने के साथ साथ उसकी देखभाल का ठेका निजी कम्पनी को देना तय किया है। निजी कम्पनी सरकारी ठर्रे पर ही काम करेगी या कुछ हरियाली बचाये रखने में मदद कर पायेगी, यह आने वाले वर्षों में दिखाई देगा। 

छत्तीसगढ़ की सीमा पर वसूली का धंधा

बड़े-बड़े लाल अक्षरों में छपे हुए 135 रुपये पर मत जाईये। असली फीस वह नहीं है। रसीद के साथ चिपकाये गये छोटे से पर्चे में वसूल की गई असली रकम हाथ से लिखी गई है। जो अधिकारिक एंट्री शुल्क से 20 गुना ज्यादा, यानि करीब 27 सौ रुपये है। वेंकटनगर के खूटाटोला बैरियर में छत्तीसगढ़ प्रवेश के लिये यह लगान जमा करनी होती है। समझा जा सकता है कि आये दिन मध्यप्रदेश से आने वाली गाडिय़ों में गांजा, शराब क्यों बरामद होती है। जब एक नंबर के माल के लिये 20 गुना अधिक रकम ली जा रही हो तो तस्करी के सामान का तो हिसाब लगाया ही जा सकता है।  फेसबुक पर वाहन मालिकों की इस पीड़ा को गौरेला के एक पत्रकार साथी ने शेयर किया है।

हमारे चुने गये नेताओं की क्या भूमिका?

सरकार के ढाई साल बीतने को हैं पर बीते विधानसभा चुनाव में पसीना बहाने वाले अनेक नेता राजसुख भोगने से वंचित हैं। अब रही सही कसर भी केन्द्र सरकार पूरी कर दे रही है। जिला खनिज न्यास ट्रस्ट में पूरे प्रदेश में अनेक अशासकीय सदस्यों की नियुक्ति की गई थी। इनमें अधिकांश कांग्रेस से जुड़े हुए लोग हैं। अब केन्द्र सरकार के नये नोटिफिकेशन के मुताबिक जलवा कलेक्टर और सांसदों का रहेगा। ये अशासकीय सदस्य बाहर हो जायेंगे। जब राज्य की भाजपा सरकार थी, कलेक्टरों को जिला खनिज न्यास समितियों में सर्वेसर्वा बनाया गया था। वही व्यवस्था फिर लागू होने वाली है। राज्य सरकार की ओर से जिले के प्रभारी मंत्री को अध्यक्ष बनाने की अनुशंसा की गई है, पर जैसा अब तक केन्द्र का रुख रहा है राज्य सरकार की बात सुनी जायेगी, इसकी उम्मीद कम ही है। जब कलेक्टर अध्यक्ष हुआ करते थे तब डीएमएफ के पैसों की कम बर्बादी नहीं हुई है। इसके कई उदाहरण हैं।

यह एक ऐसा फंड है जिसका इस्तेमाल राज्य सरकार अपनी उन जरूरतों के लिये करती रही है, जिनका बजट में सीधे आबंटन नहीं रहा। प्रदेश में स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम स्कूल खोलने में, कोविड काल में उपकरणों की आपात कालीन खऱीदी में इस फंड का खूब इस्तेमाल किया गया है। अब दो बातें हो गईं। पूरा फंड कलेक्टर के पास आ गया, जनप्रतिनिधियों की भूमिका खत्म हो गई। दूसरी, जो कांग्रेस कार्यकर्ता समितियों में रखे गये थे, उनका भी कार्यकाल अधूरा रह गया। वैसे जब यह बात की जा रही है तो आपका ध्यान स्मार्ट सिटी परियोजना पर भी जाना चाहिये। रायपुर, नया रायपुर और बिलासपुर में जो फंड आयुक्तों को मिले हैं उसे वे अपनी मर्जी से खर्च कर सकते हैं। महापौरों, पार्षदों से सहमति लेने की जरूरत नहीं है। ध्यान रहे, गांव शहर दोनों में ज्यादातर काम ब्यूरोक्रेट्स करेंगे, आपकी ओर से चुने गये प्रतिनिधियों की भूमिका सीमित है।

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