राजपथ - जनपथ
सोशल मीडिया में नेताओं की मौजूदगी
अभी कल एक समाचार चैनल से बात करते हुए बिलासपुर के विधायक शैलेष पांडेय ने सांसद अरुण साव को सोशल मीडिया का कीड़ा बता दिया। जवाब में साव ने कहा कि यह बयान बेतुका है। बिलासपुर की उस जनता का अपमान है, जिन्होंने उसे चुना है।
यह देखना होगा कि कीड़ा शब्द क्या बेतुका है? वैसे बाद में पांडेय ने मान लिया कि उन्हें ऐसा नहीं कहना चाहिये था। पर अब बहस इस पर भी हो सकती है कि सोशल मीडिया का कीड़ा डंक मारने वाले कीड़े के बारे में कहा जा सकता है या फिर काटने वाले कीड़े के बारे में।
सोशल मीडिया पर तो राष्ट्रीय से लेकर स्थानीय तक, पद संभालने वालों से लेकर पद से वंचित लोगों, वर्तमान से लेकर भूतपूर्व तक, अब हर नेता सक्रिय है। सोशल मीडिया का कीड़ा वास्तव में फिर किसे कहा जाना चाहिये? जो जनता के बीच नहीं दिखें केवल उनको, या फिर जो जनता के बीच भी दिखते रहें उनको? बात यह भी है कि सोशल मीडिया में किस तरह की गतिविधियां किसी को कीड़ा बना सकती है। इसमें केवल उन बयानों को लिया जाये जो एक दूसरे पर उछाले जाने के बाद खत्म हो जाते हैं या फिर उन बयानों को भी जो पुलिस और कोर्ट तक खींच लिये जाते हैं? सब शोध का विषय है।
क्या हमें एल्डरमेन भी नहीं बना सकते?
नगरीय निकायों में प्रदेश सरकार ने हाल ही में 16 एल्डरमेन बदल दिये और इसके अलावा 44 लोगों की नियुक्ति भी की। कुछ लोगों ने इस सूची का विश्लेषण करके बताया कि इनमें से कई लोगों ने कांग्रेस में कभी काम ही नहीं किया। पर हो सकता है कि पार्टी को पीछे से मदद करते होंगे, क्योंकि कुछ ठीक-ठाक बिजनेस में भी हैं। एक दूसरी बात भी है कि अल्पसंख्यक समुदाय को कांग्रेस से ज्यादा उम्मीद रहती है। मुस्लिम समाज से रायपुर नगर निगम में एक एल्डरमेन को फिर मौका मिला है। लेकिन ईसाई समुदाय को इन नियुक्तियों से निराशा हुई है। एक संगठन अखिल भारतीय ईसाई समुदाय अधिकार संगठन के अध्यक्ष गुरविन्दर चड्डा ने अपनी पीड़ा भी जाहिर कर दी है। इतने एल्डरमेन नये बनाये गये उनमें एक भी ईसाई नहीं। कहा- अब हम क्या करें, हमारी कहां सुनवाई होगी? ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस सरकार (भी) ईसाईयों की राजनैतिक सक्रियता नहीं चाहती।
कांग्रेस में सभी नेताओं के पास अभी लम्बी-लम्बी सूची है। अपने अपने समर्थकों को बिठाने का काम बाकी है। हो सकता है कि चड्डा जी की भी सुन ली जाये, किसी और वजह से न तो काम से काम इस वजह से कि चड्डा की बीवी इतालियन है ।
नेताम के साथ ठगी पर उठे सवाल
राज्यसभा सदस्य और प्रदेश के पूर्व गृह मंत्री रामविचार नेताम के साथ जिस तरह से ठगी हुई है उसे सीधे-सीधे ऑनलाइन ठगी नहीं कह सकते क्योंकि उनके पास कोई फोन नहीं आया न उन्होंने धोखे से भी किसी को कोई आईडी पासवर्ड या क्रेडिट कार्ड नंबर बताया, बल्कि उनके नष्ट किये गये एसबीआई के क्रेडिट कार्ड का किसी ने रिनिवल करा लिया। देश के सबसे विश्वसनीय और बड़े बैंक के रूप में एसबीआई की साख है। नेताम की मानें तो न कार्ड रिनिवल करने से पहले बैंक ने उससे पूछा न ही रिनिवल करने के बाद उन्हें इसकी जानकारी दी। इस घटना ने रतनपुर के महामाया ट्रस्ट के खाते से हाल ही में निकाले गये 27 लाख रुपये की तरफ भी ध्यान दिलाया है। ट्रस्ट के पास ओरिजनल चेक मौजूद थे और क्लोन चेक के जरिये उनके खाते से रुपये पार किये गये। एसबीआई, जहां हल्की ओवरराइटिंग से भी चेक रिजेक्ट कर दी जाती है और आप पर सरचार्ज जुड़ जाता है, वहां लोग इतनी आसानी से धोखाधड़ी कैसे कर लेते हैं? क्या बैंक प्रबंधन ऐसी गड़बडिय़ों को रोकने प्रति गंभीर है?
जीन्स तो है, हिम्मत भी है क्या ?
दुनिया में फैशन का कभी अंत नहीं होता, कोई एक कपड़ा, या कोई एक जूता चलन में आए, तो यह मानकर चलें कि उसके पीछे-पीछे कई और चीजें चली आ रही हैं। दुनिया में सबसे लोकप्रिय कपड़ा डेनिम की जींस रही है, और 1873 में पहली जीन्स बनने के बाद, एक सदी से ज्यादा वक्त तक बिना किसी फेरबदल वाली जींस ने पिछले कुछ दशकों से शक्ल बदलना शुरू किया है, और तरह-तरह से घिसी हुई जींस, रंग उड़ी हुई जींस, छर्रे चलाकर छेदी गई जींस, फटी हुई जींस, रंग पेंट से सजी हुई जींस, कई किस्म की जींस फैशन में आईं। अब सबसे नई फैशन अभी अमेरिका से सामने आई है जिसे वेट पैंट्स डेनिम कहा गया है, यानी गीला दिखने वाला डेनिम। अमेरिका की इस कंपनी ने खुद तो कई किस्मों की जींस बाजार में उतारी हैं, जिनमें ऐसा पेंट किया गया है कि लगे कि पहनने वाले ने तो अपने पर कुछ गिरा लिया है, या जींस के भीतर पेशाब हो गई है। इसके अलावा कंपनी ने एक यह सहूलियत भी शुरू की कि लोग अपनी पुरानी जींस कंपनी को भेज सकते हैं, और कंपनी करीब ?2000 में उस पर ऐसा पेंट करके उसे वापिस भेज देगी। फिलहाल कोरोना के संक्रमण के खतरे को देखते हुए कंपनी ने पुरानी जींस पर पेंट कुछ समय के लिए रोक रखा है, लेकिन ऐसी पेंट की हुई नई जींस तो ऑनलाइन आर्डर करके बुलाई ही जा सकती है। अब आगे देखें और कौन सी फैशन चलन में आती है । इससे भी अधिक के लिए हिम्मत जुटाकर रखें।