राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : असम के बाद अब यूपी
19-Jun-2021 5:22 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : असम के बाद अब यूपी

असम के बाद अब यूपी 
कांग्रेस हाईकमान छत्तीसगढ़ के कांग्रेस नेताओं को एक के बाद एक राज्यों में चुनाव प्रचार की कमान सौंप रहा है। असम के बाद यूपी चुनाव की तैयारियों की जिम्मेदारी भी यहां के नेताओं को दी गई है। सीएम के संसदीय सलाहकार राजेश तिवारी यूपी के प्रभारी सचिव भी बनाए गए हैं। मगर यूपी में पार्टी का हाल इतना बुरा है कि ज्यादातर नेता वहां जाने से कतरा रहे हैं।

छत्तीसगढ़ के कुछ नेताओं को पंचायत चुनाव की रणनीति बनाने यूपी भेजा गया था, लेकिन इन नेताओं के अनुभव इतने खराब रहे कि वे विधानसभा चुनाव तैयारियों के लिए वहां जाने से बचने का बहाना ढूंढ रहे हैं। एक नेता को यूपी के एक बड़े जिले का प्रभारी बनाया गया था। उस जिले में 83 जिला पंचायत सदस्यों के चुनाव थे। पार्टी नेता को यहां से प्रत्याशी चयन की प्रक्रिया समझाकर भेजा गया था। वहां जाकर पता चला कि प्रत्याशी के लिए आवेदन ही नहीं आ रहे हैं।

कई तो कांग्रेस का समर्थन लेने से परहेज करने लगे हैं। ले-देकर पार्टी वहां 56 प्रत्याशियों की घोषणा कर पाई। इनमें से कांग्रेस समर्थित सिर्फ एक ही प्रत्याशी को जीत हासिल हुई। तीन सीटों पर कांग्रेस समर्थित प्रत्याशी दूसरे स्थान पर, और पांच जगहों पर तीसरे स्थान पर रहे। यह भी दिलचस्प है कि यूपी में कांग्रेस से जुड़े लोग छत्तीसगढ़ के नेताओं का इस उम्मीद से खूब सत्कार करते हैं कि शायद फंड लेकर आए होंगे।  

लोकसभा चुनाव में तो राहुल गांधी की सीट के एक प्रमुख पदाधिकारियों को यहां के नेताओं ने चुनाव प्रचार-नुक्कड़ सभा की तैयारियों के लिए पांच लाख दिए थे। पैसा मिलने के बाद पदाधिकारी ऐसा गायब हुआ कि यहां के नेता उसे ढूंढते रहे। आखिरकार यहां के नेताओं को कुछ स्थानीय लोगों को साथ लेकर चुनाव प्रबंधन खुद संभालना पड़ा।

असम चुनाव में भी छत्तीसगढ़ के सी एम भूपेश बघेल को जिम्मा दिया गया था, वहाँ वोट भी बढ़े, सीटें भी बढ़ीं, लेकिन सरकार नहीं बन पायी। एक बड़े नेता का कहना है कि भूपेश ने उतनी मेहनत न झोंकी होती तो हो सकता है कि असम में भी पार्टी का हाल बंगाल सरीखा हो गया होता। 

भाजपा से घरोबा भारी 
खबर है कि एक दिग्गज भाजपा नेता से नजदीकियां राज्य सेवा के एक पुलिस अफसर को भारी पड़ सकता है। अफसर प्रतिनियुक्ति पर परिवहन विभाग में हैं।  पिछले दिनों दिग्गज नेता ने अफसर को बुलवाया, तो वे दौड़े चले गए। चर्चा है कि नेताजी ने अफसर से कुरेद-कुरेद कर परिवहन-गतिविधियों की जानकारी ली। दिग्गज नेता से मिलने की खबर विभाग के कुछ लोगों तक पहुंच गई है। 

सुनते हैं कि विभाग के एक प्रमुख ने अफसर को बुलाकर दिग्गज नेता से मेल मुलाकात पर जानकारी चाही। अफसर ने तो सौजन्य मुलाकात बताकर बात को टाल दिया, लेकिन उन पर विभाग के आंतरिक मसलों को उजागर करने का शक पैदा हो गया है। वैसे भी परिवहन को आबकारी विभाग की तरह मलाईदार महकमा माना जाता है, और इसमें पोस्टिंग के लिए हर स्तर पर मारामारी रहती है। स्वाभाविक है कि वहां के जिम्मेदार लोगों को पसंद नहीं है कि बात बाहर जाए। देखना है कि अफसर का आगे क्या कुछ होता है। 

इन अस्थियों को मोक्ष मिल पायेगा?
यूपी और बिहार में कोविड-19 से मौत के बाद जिन लोगों के पास लकडिय़ां खरीदने के लिये पैसे नहीं थे, उन्होंने गंगा नदी में शवों को बहा दिया या फिर दफना दिया। ड्रोन से ली गई तस्वीरों में प्रयागराज, कानपुर, बक्सर आदि में सैकड़ों की संख्या में शव दिखे। कई शवों के कपड़े कुत्ते नोचते दिखे। दोनों राज्यों की सरकारों ने यह सफाई देने की कोशिश की ऐसा पहले से होता आ रहा है। अपने राज्य में ऐसी समस्या नहीं आई। ज्यादातर स्थानीय निकायों में अंत्येष्टि पर आने वाले खर्च को वहन करने का निर्णय लिया था। यहां रिश्तों की परख दूसरे तरीके से हो रही है। बिलासपुर, रायपुर जैसी जगहों में श्मशान गृहों में शवों के जलाने के बाद नाम-पते लिखी हुई अस्थियां लॉकरों में कैद है और उन्हें लेने के लिये कोई करीबी नहीं पहुंच पा रहा है। यहां अस्थियों के विसर्जन के लिये प्रयागराज जाने का चलन रहा है। पर इस बार लोग कोरोना और लॉकडाउन के कारण यात्रा से बच रहे हैं और राजिम, अमरकंटक आदि जगहों को चुन रहे हैं। हो सकता है कि कुछ लोगों की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं हो वे आसपास की नदियों में भी विसर्जन के लिये नहीं जा पा रहे हों, पर यहां तो लॉकरों में दो-तीन सौ अस्थियों का कोई दावेदार नहीं आ रहा है। आश्चर्य है कि कई लॉकरों में जेवर और मोबाइल फोन भी बंद हैं। कुछ समाजसेवियों ने आगे आकर इन अस्थियों का परम्पराओं के मुताबिक विसर्जन करने की पहल की है। ऐसा करने के लिये कुछ प्रशासनिक प्रक्रियाओं का पालन करना होगा। आसार बन रहे हैं कि इस माह के अंत तक इन अस्थियों के विसर्जन की व्यवस्था हो जाये।

दो गज की दूरी और अपराधी
कोरोना काल में पुलिस अजीब सी दुविधा में गुजर रही है। प्रदेश के कई थानों को कोरोना की पहली में कंटेनमेन्ट जोन बनाना पड़ा। अनेक थानेदार और पुलिस जवान कोरोना संक्रमित हो गये। कई लोगों को अपनी जान भी गंवानी पड़ी है। कोरोना संक्रमण बचने के लिये जरूरी है कि सोशल डिस्टेंस का पालन किया जाये। पर पुलिस के लिये यह मुमकिन नहीं है। अपराधियों को गिरफ्त में लेने के लिये दूरी का पालन तो हो ही नहीं सकता। बलौदाबाजार की घटना अपने आपमें अलग तरह का है। यहां थानेदार से छुड़ाकर कोरोना संक्रमित भाग खड़े हुए। यही नहीं उन्होंने थानेदार की पिटाई भी कर दी। इस लापरवाही के लिये उनको लाइन हाजिर भी कर दिया गया। अब इन कोरोना संक्रमितों को पकडऩे के लिये 50 जवानों को लगाना पड़ा। पांचों कोरोना संक्रमित तो पकड़ लिये गये पर पुलिस के चार जवान भी कोरोना पॉजिटिव निकल आये। कानून व्यवस्था बनाये रखने के दौरान पुलिस कोरोना से कैसे बचकर रहे, अपने आप में यह एक बड़ा सवाल है। ([email protected])

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news