राजपथ - जनपथ
छत्तीसगढ़ कांग्रेस का ट्वीट कौन कर रहा है?
छत्तीसगढ़ कांग्रेस का बलरामपुर जिले के त्रिकुण्डा थाने के अंतर्गत हुई घटना पर ट्वीट न केवल झूठा और हास्यास्पद है बल्कि विशेष संरक्षित पंडो जनजाति के साथ हुए क्रूरतापूर्ण बर्ताव का मजाक उड़ाना भी है। यहां सरपंच पति और उसके 10 सहयोगी ग्रामीणों ने इन आदिवासियों पर तालाब से मछली चुराने का आरोप लगाया फिर उनकी लाठी-डंडों से पिटाई पेड़ से बांधकर की। उन पर 35 हजार रुपये का दंड भी थोपा गया। इस घटना का वीडियो कल वायरल हुआ था।
छत्तीसगढ़ कांग्रेस की ओर से इस घटना पर ट्वीट करते हुए लिखा गया है कि यह बड़ा प्रश्न है कि घटना हो जाने और आरोपियों को जेल भेजने के एक हफ्ते बाद यह वीडियो अचानक से किन षडय़ंत्रकारियों ने सरकार को बदनाम करने की मंशा से जारी कर दी? वे कौन लोग हैं जो आदिवासियों के बीच डर फैलाना चाहते हैं, जिससे नक्सलियों को बल मिले, इसके पीछे कौन ताकतें हैं?
ट्वीट में यह बात झूठी है कि एक सप्ताह पहले आरोपियों की गिरफ्तारी कर ली गई। पुलिस की प्रेस नोट 21 जून को जारी हुई है। इसमें बताया गया है कि घटना की रिपोर्ट 21 जून को दर्ज कराये जाने के 24 घंटे के भीतर आरोपियों को अनुसूचित जनजाति अत्याचार अधिनियम और अन्य धाराओं के तहत गिरफ्तार किया गया। पुलिस प्रेस नोट में साफ लिखा गया है कि आरोपियों ने पुलिस में रिपोर्ट लिखाने पर जान से मारने की धमकी दी थी। आरोपी पक्ष काफी डरे हुए हैं, आतंकित हैं। इस कारण उन्होंने घटना के एक सप्ताह बाद रिपोर्ट लिखाई।
दूसरी बात, यह ट्वीट उन सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सच्चाई उजागर करने वालों को डरा भी रहा है। यदि कोई पेड़ से बांधकर लाठी डंडों से पीटे और पीडि़त एक सप्ताह तक डर के मारे पुलिस तक नहीं पहुंच पाये तो यह तो सरकार, प्रशासन और पुलिस पर भरोसे का ही सवाल है। क्या छत्तीसगढ़ कांग्रेस की ओर से अधिकारिक ट्वीट करने वाले के दिमाग में यह ख्याल नहीं आया? ट्वीट करने वाले को इस वीडियो से नक्सली पैदा होने का खतरा दिखाई दे रहा है। तो, क्या अगला कदम यह होगा कि वीडियो फैलाने वाले पर छत्तीसगढ़ जन सुरक्षा कानून लगा दिया जायेगा?
अजय चंद्राकर के तेवर
भाजपा कार्यसमिति में पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर के भाषण की राजनीतिक हलकों में जमकर चर्चा है। वैसे तो शिव प्रकाश के हवाले से मीडिया में काफी कुछ बात आई, लेकिन बैठक में मौजूद भाजपा के लोग इससे इंकार कर रहे हैं। मगर अजय चंद्राकर के भाषण तो मीडिया में ज्यादा नहीं आई, लेकिन पार्टी के लोगों की जुबान पर है। अजय ने साफ तौर पर कह दिया कि जब तक मुखर नहीं रहेंगे, प्रदेश में सरकार की कल्पना करना भी बेमानी है।
उन्होंने कहा कि लड़ाई के लिए मानसिक रूप से तैयार रहने की जरूरत है। अजय ने सीधे-सीधे पूछ लिया कि कितने लोग सीएम के खिलाफ सीधे मोर्चा खोलने के लिए तैयार हैं? कार्यसमिति के ज्यादातर सदस्यों ने हाथ बांधे रखा। अजय को पार्टी के भीतर अपेक्षाकृत भले ही भरपूर समर्थन नहीं मिल रहा, लेकिन वे अकेले ही सोशल मीडिया प्लेटफार्म से लेकर विधानसभा तक सरकार के खिलाफ मुखर हैं। सदन के भीतर उनकी तेज आवाज से बगल में बैठने वाले नारायण चंदेल भी कई बार परेशान हो जाते हैं।
बडग़ैया को प्रमोशन!
सीसीएफ एसएसडी बडग़ैय्या को एपीसीसीएफ पद देने का प्रस्ताव है, और इसके लिए केन्द्र सरकार को लेटर लिखा गया है। वैसे तो एपीसीसीएफ के रिक्त पदों पर पदोन्नति के लिए केन्द्र से अनुमति की जरूरत नहीं होती है। मगर बडग़ैय्या का केस थोड़ा अलग है। पिछली सरकार ने उन्हें वीआरएस देने की अनुशंसा कर दी थी। मगर केन्द्र ने कुछ बिन्दुओं पर जानकारी मांग ली थी। इसके बाद प्रस्ताव आगे नहीं बढ़ा। बाद में सरकार ने उन्हें प्रमोट भी कर दिया। अब जब दोबारा प्रमोशन की फाइल चल रही है, तो केन्द्र से अनुमति मांगी गई है। देखना है कि अनुमति कब तक मिल पाती है।
सिलगेर के लोगों को न्याय दिलाने की बात
छत्तीसगढ़ सरकार में बस्तर के एकमात्र मंत्री कवासी लखमा का कद प्रभारी मंत्री के रूप में और बढ़ गया। अब उनके पास बस्तर के 9 विधानसभा क्षेत्रों की जिम्मेदारी है। मीडिया से बातचीत में उनका यह स्वीकार करना कि सिलगेर की घटना का दुख है, दुबारा ऐसी घटना कभी नहीं होनी चाहिये, उल्लेखनीय है। पर, सिलगेर को लेकर आंदोलन जारी है। बस्तर के बाकी इलाकों के लोग भी रैलियां निकाल रहे और घेराव कर रहे हैं। वे ऐसे पोस्टर लेकर चल रहे हैं जिसमें सांसद, विधायकों को श्रद्धांजलि दे दी गई है। अलग बस्तर राज्य की मांग भी की जा रही है। मंत्री कहते हैं कि इस इलाके के निवासियों को पट्टा, साफ पानी, स्वास्थ्य सुविधा आदि कैसे मिले, यह देखना जरूरी है। जिस जमीन पर फोर्स कैंप बना रही थी वह आदिवासियों की है भी या नहीं यह भी तय नहीं हो पाया है। मंत्री खुद मान रहे हैं कि पटवारी वर्षों से इन गांवों में नहीं पहुंचे। वे सिंगारम का भी जिक्र कर रहे हैं कि वहां 19 निर्दोष आदिवासियों को मार डाला गया था। अपने क्षेत्र से हर बार चुनाव जीतने वाले लखमा के लिये जरूरी है कि बस्तर के लोगों के साथ नजर आयें इसलिये उनके दुख-दर्द में शामिल होने का आभास कराना चाहते हैं। पर, क्या आदिवासियों की जान के बदले पट्टा देने या स्वास्थ्य की सुविधा मिल भी गई तो उसको न्याय कहा जायेगा?