राजपथ - जनपथ
गोबर मायने गुड़-गोबर
छत्तीसगढ़ के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश की वह टिप्पणी कल से चर्चा में है, जिसमें उन्होंने कहा कि यहां स्मार्ट सिटी कोई नहीं है, पूरा गोबर राज्य है। हालांकि यह टिप्पणी कोर्ट की कार्रवाई का हिस्सा नहीं है, न ही आदेश में कुछ लिखा गया है पर लोग इस वक्तव्य का अपने-अपने हिसाब से मतलब निकाल रहे हैं। कोई कह रहा है कि एक बूढ़ा तालाब का टेंडर निरस्त करने को लेकर ही क्या यह विचार जस्टिस साहब का बन गया? शायद नहीं। हर मामले पर याचिका तो नहीं लगाई जाती पर खबरों में तो हर रोज लोग देख रहे हैं कि शहरों में किस तरह से विकास की योजनाएं अधूरी हैं। फिर एक्टिंग चीफ जस्टिस तो छत्तीसगढ़ के ही रहने वाले हैं। यहां से उनका सरोकार कैसे छूट सकता है?
बिलासपुर शहर जहां हाईकोर्ट स्थापित है वहां हाईकोर्ट की तरफ जाने वाला फ्लाईओवर अधूरा है। भाजपा शासन काल में यह अंडरग्राउंड सीवरेज की वजह से खोदापुर कहा जाता था तो अब वही बात अमृत मिशन की खुदाई के चलते हो रही है। दोनों योजनाएं अधूरी हैं। तालाब सौंदर्यीकरण, सडक़ चौड़ीकरण के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च किये जा चुके हैं पर शहरों की सूरत नहीं बदली। छत्तीसगढ़ में रायपुर, नवा रायपुर और बिलासपुर स्मार्ट सिटी परियोजना में शामिल हैं, पर जैसा देश के बाकी स्मार्ट सिटी परियोजनाओं का है, अपने यहां भी पांच साल से यह घिसट-घिसट के चल रही है। हाईकोर्ट वाले बिलासपुर में तो मुश्किल से एक सडक़ ही तैयार हो पाई है। केन्द्र सरकार के एक सर्वेक्षण में दो दिन पहले ही रायपुर का नाम उन शहरों में आया था, जिसे रहने के लिहाज से बेहतर राजधानी माना गया है। तो मान लें कि देश के बाकी राज्यों में भी शहर विकास की स्थिति बहुत अच्छी नहीं होगी।
कुछ लोग कह रहे हैं कि यह टिप्पणी राज्य सरकार पर नहीं, स्मार्ट सिटी पर है जो केन्द्र की योजना है। राज्य पर टिप्पणी करनी होती तो जंगल राज्य, गुंडा राज्य, भ्रष्ट राज्य जैसा कुछ कहा जाता। यह बात अलग है कि अदालतों की निगाह में हाईकोर्ट के सामने सडक़ पर सैकड़ों की संख्या में विचरण कर रहे मवेशी भी पड़ जाते होंगे। पर गोबर राज्य तो कहने में कोई दिक्कत नहीं है। गोबर खरीदी योजना से तो गरीबों का भला हो रहा है। दूसरे राज्य भी इस तरह की योजना शुरू करने जा रहे हैं। दरअसल, यह टिप्पणी शहरों के विकास के लिये आने वाले फंड के दुरुपयोग से सम्बन्धित है, योजनाओं को समय से पूरा नहीं करना, फंड को बर्बाद कर देना। अच्छी खासी योजनाओं का गुड़-गोबर कर दिया जाना। शहरों में व्यवस्थित बसाहट हो, सडक़ें हो, स्कूल, अस्पताल हों, सबको साफ पानी मिले, गंदगी और मच्छर से छुटकारा मिले, सौंदर्यीकरण की योजनाओं को समय पूरा करें। जो पूरी हो जाए उनका ठीक तरह से मेंटेनेंस हो तब शायद ऐसी टिप्पणी सुनने को नहीं मिलेगी।
भाजपा की बस्तर में लड़ाई वैसी, जैसी चाहिये
कांग्रेस और भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच हुई झड़प के बाद मामला तूल पकड़ रहा है। सोमवार को भाजपा कार्यालय के सामने कांग्रेस कार्यकर्ता महंगाई के खिलाफ धरना-प्रदर्शन कर रहे थे। इस बीच युवा मोर्चा के कार्यकर्ता आ गए और उन्होंने कांग्रेस सरकार और सीएम के खिलाफ नारा लगाना शुरू कर दिया। दोनों तरफ से भीड़ बढ़ी और माहौल गर्म हो उठा। आनन फानन में तीन थानों की पुलिस वहां बुलानी पड़ी। इस बीच सांसद दीपक बैज का काफिला भी रोक लिया गया। इससे कांग्रेस नेता ज्यादा नाराज हो गये। किसी तरह बैज को आगे रवाना किया गया। कांग्रेस नेताओं ने भाजपा दफ्तर में घुसने की भी कोशिश की। दोनों दल एक दूसरे की पिटाई, धक्का-मुक्की पर आमादा हो गये। किसी तरह से पुलिस ने स्थिति संभाल ली।
पर, मामला फिलहाल जल्दी ठंडा होने वाला है, ऐसा नहीं दिखाई देता। बीजेपी ने कल प्रेस कांफ्रेंस कहा कि हमारे जन-जागरण आंदोलन से घबराकर कांग्रेस नेता गुंडागर्दी पर उतर आये हैं। इधर कांग्रेस ने बोधघाट थाने में तीन शिकायतें भाजपा नेताओं के खिलाफ दर्ज कराई। एसपी बस्तर से मुलाकात की है और भाजपा नेताओं के खिलाफ दर्ज पुराने मामलों में अब तक कोई कार्रवाई नहीं होने पर सवाल किया है।
अब लड़ाई ठीक रहेगी। भाजपा संगठन के नये प्रभारी जिस तेवर के लिये रायपुर में पार्टी नेताओं को तैयार कर रहे थे वह बस्तर में दिखने लगा है।
मेगा जागरुकता अभियान भी जरूरी
21 जून को पूरे देश में कोविड टीकाकरण का मेगा अभियान शुरू हुआ। देशभर में एक ही दिन में 84 लाख लोगों को टीका लगाने का रिकॉर्ड बना। छत्तीसगढ़ में भी करीब 1 लाख लोगों को एक ही दिन में टीका लगाने का रिकॉर्ड रहा। छत्तीसगढ़ में अब आने वाले कुछ दिनों तक तक वैक्सीन की कमी होगी, इसकी कोई आशंका दिखाई नहीं दे रही है। ऐसा इसलिये भी है क्योंकि अधिकांश जिलों में पहले दिन वैक्सीनेशन के लिये जो लक्ष्य रखे गये थे वे पूरे नहीं हुए। लक्ष्य प्रत्येक जिले में 15 से 30 हजार तक वैक्सीन लगाने का था लेकिन कहीं 8, 10 तो कहीं 3, 4 हजार लोगों ने ही टीके लगवाये। इसकी वजह कोविड की दूसरी लहर के बाद लोगों का बेफिक्र होते जाना तो है ही, वैक्सीन को लेकर तरह-तरह की भ्रामक सूचनाओं और अफवाहों का खासकर ग्रामीण इलाकों में फैलना भी है। जिस दिन देश में वैक्सीनेशन का रिकॉर्ड बन रहा था, उसी दिन सरगुजा जिले के मणिपुर चौकी के अंतर्गत ग्राम लब्जी में टीकाकरण के लिये गये स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के साथ मारपीट कर दी और भगा दिया। यह पहली घटना नहीं है। जीपीएम जिले में मितानिन पर जानलेवा हमला भी हो चुका है। पुलिस वालों की समझाइश भी कई जगह काम नहीं कर रही है। रायगढ़ जिले में पुलिस ने सोशल मीडिया पर वैक्सीन को लेकर अफवाह फैलाने वाले एक व्यक्ति को गिरफ्तार भी किया है। स्थिति ऐसी बन रही है कि टीकों की उपलब्धता की चिंता अगर समाप्त भी हो गई तो जागरुकता की कमी और अफवाहों के कारण वैक्सीनेशन का लक्ष्य हासिल करने में बड़ी दिक्कत होगी। हैरानी यह है कि इस अभियान को जन-प्रतिनिधि, पंचायत प्रतिनिधियों के माध्यम से गांवों में चलाया जा सकता है, पर इस पर अब तक जोर नहीं दिया गया है। वैक्सीनेशन की सफलता पर भीतर कोई राजनीति तो नहीं हो रही है?
धान बर्बाद होने से वेतन पर संकट
धान का बारिश में खराब होना और नुकसान सोसायटियों के खाते में जुड़ जाना। कवर्धा जिले में काम कर रही लगभग सभी 90 समितियों के 400 कर्मचारियों ने इसी वजह से इस्तीफा दे दिया है। उनका वेतन बीते चार महीनों से इस आशंका के चलते रोक लिया गया है कि जो हजारों क्विंटल धान उठाव के चलते खराब हो रहे हैं उसका बोझ सोसाइटियों को उठाना पड़ेगा। हालांकि उनका इस्तीफा अब तक स्वीकार नहीं किया गया है पर यह पहला मौका है जब एक साथ इतने कर्मचारियों ने अपनी नौकरी दांव पर लगा दी है। संग्रहण और खरीदी केन्द्रों में पड़े-पड़े सड़ जाना और सैकड़ों करोड़ के धान का नुकसान होना, यह सिलसिला तो वर्षों से चला आ रहा है। पर कम से कम ऐसी व्यवस्था तो की ही जानी चाहिये कि धान के नुकसान का बोझ समितियों के कर्मचारियों को अपने वेतन रुक जाने के रूप में उठाना पड़े। आखिर वे तो इस बर्बादी के लिये जिम्मेदार हैं नहीं।