राजपथ - जनपथ
दिल्ली ने बुलाया है
खाद्य विभाग में विशेष सचिव मनोज सोनी की प्रतिनियुक्ति की अवधि बढ़ाने के केन्द्र सरकार ने मना कर दिया है। सोनी भारतीय दूरसंचार सेवा के अफसर हैं, और पिछले सात साल से छत्तीसगढ़ सरकार में प्रतिनियुक्ति पर थे। खाद्य विभाग में मनोज सोनी, पीडीएस देख रहे थे।
राज्य सरकार ने उनकी प्रतिनियुक्ति बढ़ाने का आग्रह किया था, लेकिन केन्द्र सरकार ने इससे इनकार कर दिया, और तुरंत रिलीव करने के लिए लेटर भेज दिया है। इससे पहले केंद्र ने दूरसंचार सेवा के अफसर वीके छबलानी की प्रतिनियुक्ति बढ़ाने से मना कर दिया था। छबलानी पिछले 9 साल से छत्तीसगढ़ सरकार में सेवा दे रहे थे।
अटकलों से भी ख़ुशी तो है ही
खबर है कि कांग्रेस हाईकमान ने निगम-मंडलों के पदाधिकारियों की सूची पर मुहर लगा दी है। चर्चा है कि सूची में कुछ कम 70 नेताओं के नाम हैं। कांग्रेस नेता सूची का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। सोशल मीडिया में संभावित नाम तैर रहे हैं। मगर इन नामों में सच्चाई कितनी है, इसका कुछ पता नहीं है। फिर भी कुछ नेता संभावित सूची में नाम आ जाने से ही खुश हैं।
सूची जारी होने में देरी क्यों हो रही है, इसका पार्टी के लोग भी ठीक-ठीक अंदाजा नहीं लगा पा रहे हंै। इससे परे सीएम भूपेश बघेल ने गुरुवार को दो मंत्री रविन्द्र चौबे, और मोहम्मद अकबर के साथ लंबी बैठक की है। चर्चा है कि बैठक में निगम-मंडलों की सूची से लेकर कुछ कैबिनेट प्रस्तावों पर बात हुई है। मगर इस बात का जवाब नहीं मिल पा रहा है कि सूची आखिर कब जारी होगी?
फ्रंटलाइन वर्कर भी लाइन में
जब राज्य में कोविड वैक्सीन की कमी की खबरें सुर्खियों में थी, तब लोग भी टीका लगवाने के लिए घरों से बाहर नहीं निकल रहे थे। अब जब केंद्र सरकार ने काम हाथ में लिया है और टीके आ रहे हैं, लोग भी वैक्सीन लगवाने के लिए बाहर निकलने लगे हैं। इसकी एक वजह तीसरी लहर की आशंका भी है।
राजधानी रायपुर सहित बिलासपुर, रायगढ़, कोरबा आदि जिलों में बीते कुछ दिनों से वैक्सीनेशन की रफ्तार बढ़ गई है। ऐसे में सब्जी विक्रेताओं, बस व ट्रक ड्राइवरों, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं, पंचायत कर्मियों, पीडीएस दुकान संचालकों, कोटवार और राज्य सरकार के अधीन काम करने वाले कर्मचारी, शमशान के कर्मचारी, दिव्यांग आवश्यक सेवा में काम करने वाले शासकीय शासकीय कर्मचारी, वकील, पत्रकार थोड़े मायूस दिखाई दे रहे हैं। वजह यह है कि राज्य सरकार ने इन सब को प्राथमिकता से टीका लगाने के लिए फ्रंटलाइन वर्कर का दर्जा दे रखा है। पर इन्हें ऐसी कोई सुविधा नहीं मिल रही है कि टीकाकरण केंद्रों में जाएं और प्राथमिकता से टीके लगा कर लगवा कर लौट जाएं। इन्हें भी दूसरों की तरह कोविन ऐप में पंजीकरण कराना अनिवार्य है। जिस तरह से दूसरे लोग लाइन में लग रहे हैं इन्हें भी उसी तरह लगकर टीका लगवाना होगा। दरअसल जैसे ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सभी को टीका लगाने का काम राज्यों से अलग करके खुद के हाथ में ले लिया है पूरी व्यवस्था बदल गई है। अब सीजी टीका ऐप भी बंद हो गया। शायद अघोषित रूप से फ्रंटलाइन वर्करों की विस्तारित की गई सूची भी रद्द कर दी गई है।
खुशामद ने चुनावों की याद दिलाई
नि:संदेह टीकाकरण ने रफ्तार तो पकड़ी है पर अभियान लक्ष्य से पीछे ही चल रहा है। टीका फ्री में लगाया जा रहा है यह काफी नहीं है। किसी भी सरकारी योजना की सफलता के लिए जरूरी है तोहफे का तडक़ा भी हो। टीका लगाने का लाभ इसे लगवाने वालों को ही है पर सरकार, अधिकारियों व जनप्रतिनिधियों को इसके लिए बार-बार लोगों से अपील करनी पड़ रही है। इस अपील का साइड इफेक्ट यह हुआ है कि लोगों ने समझ लिया टीका लगवाना उनकी नहीं सरकार की जरूरत है। अब ऐसी स्थिति में जनप्रतिनिधि करें तो क्या करें? रायपुर में इसका एक तोड़ निकाला गया है कि टीका पहली बार लगवाने वालों को लकी ड्रा के आधार पर घरेलू इस्तेमाल की चीजें उपहार में दी जाए। इनमें टेलीविजन रेनकोट, कुकर, छतरी, आयरन, प्रेशर कुकर, मिक्सर आदि शामिल हैं। कई पार्षद एक किलो शक्कर का ऑफर भी दे रहे हैं। मेयर रविवार को सभी वार्डों के पार्षदों के साथ जन-जागरण अभियान भी शुरू करने वाले हैं। वे स्वेच्छानुदान से सबसे ज्यादा टीका कराने वाले वार्ड पार्षद को 5 से 10 लाख तक अतिरिक्त राशि भी देने वाले हैं। कुछ दिन पहले मेयर ने अनाउंस किया था कि विचार कर रहे हैं, जो लोग टीका नहीं लगवायेंगे, उनका राशन रोक दिया जायेगा। इस पर अधिकारियों का तुरंत खंडन आ गया। राशन रोकना एक दंड होगा, जिसका विरोध हो सकता है, इसलिये कुछ छीनने के बजाय कुछ देकर लोगों को टीका के लिये मनाने का रास्ता चुना गया है। लोकतंत्र में यही जरूरी है। फिर यह कोई नई बात नहीं है। उपहार का ऑफर टीके के लिये तो खुलेआम की गई है। इस तरह से चोरी-छिपे बांटने रहने का रिवाज तो प्राय: चुनाव के दिनों में रहा ही है। कांग्रेसी कह सकते हैं कि किसी सरकारी कार्यक्रम को उत्सव की शक्ल देना केवल एक पार्टी की बपौती नहीं है।
नहीं चाहते अभिभावक, स्कूल खुलें
पहले यह चर्चा चल रही थी की जून के तीसरे सप्ताह से स्कूलों को खोला जा सकता है लेकिन स्कूल शिक्षा मंत्री डॉक्टर प्रेमसाय सिंह के बयान से साफ हो गया कि अभी इस बारे में कुछ भी निर्णय नहीं लिया गया है। दूसरी लहर तो अब लगभग अपनी समाप्ति की ओर है लेकिन तीसरी लहर डेल्टा वैरीएंट के साथ पहुंचने के अनुमान ने अभी सतर्क कर रखा है। दूसरी लहर में एकाएक जिस तेजी से ऑक्सीजन बेड और वेंटिलेटर के अभाव में लोगों की मौत हुई उसे दोहराना कोई भी नहीं चाहता। आशंका यह भी है कि तीसरी लहर बच्चों के लिए ज्यादा नुकसानदायक हो सकती है। फिर ऐसे मौके पर स्कूलों में को खोलने का निर्णय लेना विवादित हो जाएगा।
एक सर्वे एजेंसी ने 25 मई से 15 जून के बीच एक सर्वेक्षण किया है जिसकी रिपोर्ट कहती है कि 76 फ़ीसदी माता पिता अपने जिले में कोरोनावायरस को शून्य हो जाने तथा सबको टीका लग जाने के बाद ही बच्चों को स्कूल भेजना चाहते हैं। यह सर्वेक्षण यह भी कहता है कि माता-पिता बच्चों के वैक्सीन की प्रतीक्षा कर रहे हैं और उम्मीद है सितंबर तक उनके टीके आ जाएंगे। तीसरी लहर 4-6 हफ्ते के बाद आने का अनुमान लगाया गया है। यह भी समय करीब सितंबर को ही जाता है। फिर भी सितम्बर शांति से गुजरा तब भी सर्वे के अनुसार लोग दिसंबर 2021 तक इंतजार करना चाहते हैं। शिक्षा विभाग के अधिकारी कह रहे हैं कि यदि इस साल के अंत तक भी कोई बड़ी लहर नहीं आती है तो बचे हुए तीन-चार महीनों में स्कूल खोल कर कोर्स पूरा कराया जा सकता है और स्थिति ऐसी बन सकती है कि पिछले 2 सालों की तरह जनरल प्रमोशन की नौबत न आए और वार्षिक परीक्षा ली जा सके।