राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : पार्टी टैक्स इतने खुले-खुले !
01-Jul-2021 7:14 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : पार्टी टैक्स इतने खुले-खुले !

पार्टी टैक्स इतने खुले-खुले !

प्रदेश में कांग्रेस सरकार के ढाई बरस पूरे होते ही अब सत्तारूढ़ पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं को यह लगने लगा है कि अब अगले चुनाव के दिन करीब आते जा रहे हैं और इस बीच उन्हें पार्टी की तरफ से सरकार में कोई छोटा मोटा भी ओहदा अगर नहीं मिला है तो उन्हें खुद होकर अपनी ताकत का इस्तेमाल करना चाहिए। कई जगहों पर सत्तारूढ़ पार्टी के लोग सडक़ों पर गुंडागर्दी करते तो दिखे ही हैं,  कुछ दूसरे किस्म की दादागिरी भी चल रही है। अब महासमुंद जैसे राजनीतिक रूप से ऐतिहासिक जिले में सत्तारूढ़ कांग्रेस की जिलाध्यक्ष की तरफ से सरकार के सबसे बड़े निर्माण विभाग पीडब्ल्यूडी के अफसर को चि_ी लिखी गई है कि जिले में जितने काम किए जाएं उनका अवलोकन जब पार्टी के कार्यकर्ता या पार्टी के जिलाध्यक्ष के प्रतिनिधि कर लें, तो उसके बाद ही ठेकेदार को भुगतान किया जाए। अब यह नौबत पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ पार्टी के कार्यकर्ताओं के राज की तरह की दिखाई पड़ रही है। अगर सरकारी अफसरों को सत्तारूढ़ पार्टी के नेताओं को काम दिखाने के बाद ही ठेकेदारों को पेमेंट करना है, तो जाहिर है कि ठेकेदारों के मत्थे एक खर्च और बढ़ जाएगा। अभी तक सरकारी काम करने वाले ठेकेदार ऑफिस खर्च के नाम पर किसी विभाग में 10 फ़ीसदी, तो किसी विभाग में 20 फ़ीसदी की गुंजाइश रखते हैं। कुछ मंत्री इतने दमदार भी हुए हैं कि जो 15 से 20 फ़ीसदी अपने लिए रखवाते हैं और ऑफिस का खर्च ठेकेदार या सप्लायर अलग से उठाएं। अब इन सबके साथ-साथ सत्तारूढ़ पार्टी का खर्च भी अगर ठेकेदार के मत्थे आ गया और अफसरों पर दबाव आ गया कि पार्टी का भुगतान होने के बाद ही ठेकेदार का भुगतान हो, तो इससे नुकसान ठेकेदार का नहीं होगा, सीमेंट मे रेत और बढ़ जाएगी, मुरम की जगह मिट्टी बढ़ जाएगी, ईंटें और घटिया लगने लगेंगी, और छड़ की मोटाई घट जाएगी। आगे तो फिर ऐसी इमारतों में पढऩे वाले बच्चे जानें जिनके सिर पर छत के गिरने का खतरा और अधिक हो जाएगा।

सकते में आईपीएस

छत्तीसगढ़ के 28 में से 21 जिलों के आईपीएस अफसरों के तबादले के ठीक दूसरे दिन आईपीएस अधिकारी जी पी सिंह पर शिकंजा कसा गया है। आईपीएस ट्रांसफर में कुछ अफसर मनचाहे जिलों में पोस्टिंग नहीं मिलने से निराश हुए थे, हालांकि अपेक्षाकृत कुछ जूनियर माने जा रहे अफसरों को बड़े जिलों की कमान मिली है, लेकिन जिन अधिकारियों को बड़े जिलों की जिम्मेदारी मिलने की अटकलें लगाई जा रही थी, उनके साथ ऐसा नहीं हुआ तो स्वाभाविक है कि उन्हें निराशा हुई होगी। इसमें से कुछ अगली बार बड़ा जिला पाने की कोशिश में अभी से लग गए थे, लेकिन जैसे ही तबादले के दूसरे दिन आईपीएस अधिकारी के ठिकानों पर छापेमारी की कार्रवाई हुई। आईपीएस अधिकारी सकते में आ गए हैं। और वे फिलहाल कोई जोड़-तोड़ में रहने के पक्ष में नहीं हैं। किसी आईपीएस पर पहली बार इतनी बड़ी कार्रवाई हुई है। वैसे भी जीपी सिंह की गिनती पावरफुल अधिकारियों में होती है। पिछली और मौजूदा सरकार के कार्यकाल में अहम पदों पर रहे हैं। एसीबी और ईओडब्ल्यू के चीफ भी रहे हैं। जाहिर है इतने बड़े अधिकारी पर कार्रवाई होने के बाद आईपीएस तबादलों को लेकर जुगाडमेंट करने से बचेंगे। हालांकि जीपी सिंह के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने के कारण कार्रवाई हुई है, लेकिन चर्चा यह है कि कार्रवाई किसी दूसरे मकसद से की गई है। संभव है कि छापे की जानकारी बाहर आने के बाद कुछ माजरा स्पष्ट हो पाएगा। दूसरी चर्चा यह भी है कि राज्य के एक और चर्चित आईपीएस से जीपी सिंह की नजदीकियों के कारण वे संदेह के घेरे में हैं। अगर, संदेह सच हुआ तो आने वाले दिनों में कुछ और बड़े अफसरों के खिलाफ कार्रवाई हो सकती है।

बोरा के रिलीविंग में देरी की सियासी वजह

छत्तीसगढ़ कैडर के 1999 बैच के आईएएस सोनमणि बोरा सेंट्रल डेपुटेशन में जाने के लिए रिलीविंग का इंतजार कर रहे हैं। पिछले महीने से यह चर्चा जोरों पर है कि उन्हें कभी भी दिल्ली जाने की अनुमति मिल सकती है। उन्हें दिल्ली में भूमि संसाधन विभाग में संयुक्त सचिव बनाने का आदेश काफी पहले ही निकल चुका है, लेकिन राज्य से अभी तक उन्हें रिलीव नहीं किया गया है, जबकि वे छत्तीसगढ़ में बिना विभाग के सचिव हैं। ऐसे में उनको अनुमति नहीं मिलना प्रशासनिक हलकों में चर्चा का विषय बना हुआ है। सोनमणि बोरा असम के रहने वाले हैं और हाल ही में वहां विधानसभा के चुनाव हुए हैं। असम चुनाव में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री मुख्य ऑब्जर्वर बनाए गए थे। मुख्यमंत्री और उनकी टीम ने महीनों तक असम में डेरा डाल कर पूरे चुनाव अभियान में ताकत के साथ सक्रिय थे। वहां कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता आईएएस बोरा के करीबी रिश्तेदार हैं। ऐसे में यह संभव नहीं है कि बोरा के बारे में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री और असम के कांग्रेस नेता के बीच चर्चा नहीं हुई होगी? इसके बाद भी बोरा के रिलीविंग में हो रही देरी को राजनीतिक कारणों से जोडक़र देखा जा रहा है। 

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