राजपथ - जनपथ
ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने का नया ठिकाना
कोरोना काल में जब कई काम धंधे बंद हो गए हैं, मोटर ड्राइविंग ट्रेनिंग सेंटर चलाने वालों के दिन बीते एक तारीख से फिर रहे हैं। केंद्रीय सडक़ परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने अब पॉलिसी बनाई है कि ड्राइविंग लाइसेंस लेने के लिए आरटीओ के मैदान में जाकर टेस्ट नहीं देना होगा। किसी मान्यता प्राप्त ट्रेनिंग सेंटर की परीक्षा में आप पास हो गए तो उसी सर्टिफिकेट से आपका लाइसेंस जारी कर दिया जायेगा। हमारे देश में सडक़ दुर्घटनाओं का आंकड़ा भयावह है। इसकी एक बड़ी वजह है बिना लाइसेंस के वाहन चलाना या फिर लाइसेंस फर्जी तरीके से हासिल कर लेना। स्वास्थ्य परीक्षण के बिना ही यहां फिटनेस सर्टिफिकेट मिल जाते हैं। रुपये ढीलने पर बिना किसी दिक्कत के लाइसेंस घर पहुंच जाता है। पर क्या नई पॉलिसी से परिवहन विभाग में व्याप्त गोरखधंधे पर रोक लग सकेगी?
ट्रेनिंग सेंटर वास्तव में कितनी ट्रेनिंग देंगे और कितने लोग ऊपर के खर्चे करके बिना प्रशिक्षण लिए ही सर्टिफिकेट हासिल कर लेंगे, यह देखना पड़ेगा। अभी तो बस ऐसा लग रहा है कि लेन-देन का व्यवहार एक जगह से बदल कर दूसरी जगह पर शिफ्ट हो जाएगा।
छत्तीसगढ़ ओलम्पिक में शून्य
हर बार की तरह ओलम्पिक खेलों में भाग लेने वाले खिलाडिय़ों की सबसे ज्यादा संख्या हरियाणा से है। पर आकार की दृष्टि से केरल और पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर की भागीदारी भी शानदार है। जम्मू-कश्मीर, अरुणाचल प्रदेश जैसे सीमा के राज्यों और पूर्वोत्तर के मेघालय, त्रिपुरा से किसी खिलाड़ी का नाम इस सूची में नहीं है। इन राज्यों की हालातों के कारण इसका कारण कुछ हद तक समझा जा सकता है, पर छत्तीसगढ़ से भी कोई खिलाड़ी नहीं है, बिहार की तरह। कभी अंतर्राष्ट्रीय स्तर के इन खेलों में उपलब्धि मिली भी तो सरकारी, सार्वजनिक उपक्रमों के खिलाडिय़ों की बदौलत। ओलम्पिक या अंतर्राष्ट्रीय खेलों में हिस्सेदारी से राज्य की पहचान बनती है। पर ऐसा लगता है कि छत्तीसगढ़ ने कभी ओलम्पिक स्तर के खिलाडिय़ों को तैयार करने के बारे में सोचा नहीं। अभी तो हालत यह है कि छत्तीसगढ़ राज्य से हैं बताने पर, कहा जाता है- वही नक्सलियों का इलाका?
निर्विवाद बैस का विवाद में घिर जाना
कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दल कई राज्यपालों पर आरोप लगाते रहे हैं कि वे भाजपा या आरएसएस कार्यकर्ता की तरह काम कर रहे हैं। पर कभी छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री पद के दावेदार रहे त्रिपुरा के राज्यपाल रमेश बैस के साथ कोई ऐसा विवाद अब तक नहीं जुड़ा। पहले भी जब भाजपा नेता थे वे ज्यादातर विवादित मामलों में चुप रहते थे। विवाद पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की सोशल मीडिया पर की गई एक पोस्ट से खड़ा हुआ। उन्होंने कल चाय पर बैस से मुलाकात की। इसकी जानकारी देते हुए ट्विटर पर उन्होंने लिखा- ‘छत्तीसगढ़ भाजपा के वरिष्ठ नेता’- रमेश बैस। तुरंत इस ओर कांग्रेस के एक कार्यकर्ता मणि वैष्णव का इस ओर ध्यान गया। उन्होंने प्रतिक्रिया में लिख डाला- भाजपा संविधान को अपनी बपौती समझती है, कम से भाजपा नेता लिखने से पहले पूर्व तो लिख लेते? गलती तो थी, तुरंत पोस्ट हटाकर संशोधित पोस्ट डाली गई।
जब बच्चों को वैक्सीन लगाना होगा..
बड़ों को कोविड वैक्सीन लगाने की खूबी बताने के लिये जागरूकता
का अभियान छेड़ा गया है। पर बच्चों को क्या भाषण पिलाया जा सकेगा?