राजपथ - जनपथ
लापता की तलाश
कोरोना संक्रमण की वजह से कई सांसद-विधायकों ने अपने क्षेत्र का दौरा करना बंद कर दिया है। ये कुछ जरूरी मौकों पर ही क्षेत्र जाते हैं। ऐसे जनप्रतिनिधियों के खिलाफ इलाके में विरोधी सक्रिय हैं, और सोशल मीडिया में अपनी भड़ास निकाल रहे हैं। सरगुजा के प्रतापपुर क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले स्कूल शिक्षा मंत्री डॉ. प्रेमसाय सिंह भी काफी समय से क्षेत्र नहीं गए हैं।
सरगुजा जिले में कोरोना काफी फैला हुआ है। यही वजह है कि डॉ. प्रेमसाय सिंह क्षेत्र नहीं जा पा रहे हैं। यद्यपि वे स्थानीय लोगों के संपर्क में रहते हैं, और जन समस्या का निराकरण भी कर रहे हैं। बावजूद इसके विरोधियों ने सोशल मीडिया में उनकी फोटो के साथ मैसेज पोस्ट किया, जिसमें उन्हें लापता बताया गया। यह भी कहा गया कि प्रेमसाय सिंह करीब 2 साल से अपने क्षेत्र से लापता हैं।
क्षेत्र की जनता ने काफी खोजबीन की, लेकिन अभी तक नहीं मिले। अंतिम बार सफेद धोती, कुर्ता, और हाफ जैकेट में कुशवाहा वेल्डिंग वाड्रफ नगर के सामने देखे गए थे। पता बताने वाले या मिलाने वाले को क्षेत्र की जनता द्वारा उचित इनाम दिया जाएगा। कुछ इसी तरह के मैसेज कांकेर सांसद मोहन मंडावी, और जांजगीर-चांपा के सांसद गुहाराम अजगले के लिए भी पोस्ट किए गए।
गुहाराम लंबे समय से दिल्ली में हैं। वैसे भी जांजगीर-चांपा जिला प्रदेश के सबसे ज्यादा कोरोना प्रभावित है। कोरोना संक्रमण के बीच लोगों से मिलना-जुलना जोखिम भरा है। देश के कई जनप्रतिनिधियों की मौत भी हो चुकी है। छत्तीसगढ़ में भी अधिकांश विधायक-सांसद कोरोना के चपेट में आ चुके हैं। ऐसे में अगर ये जनप्रतिनिधि आम लोगों से मेल मुलाकात से परहेज कर रहे हैं, तो यह गलत भी नहीं है।
बैस और संभावनाएँ
त्रिपुरा के राज्यपाल रमेश बैस का झारखण्ड तबादले से समर्थकों में खुशी का माहौल है। बैस के त्रिपुरा जाने के बाद, जो नेता संपर्क में नहीं थे वो भी अब बधाई देने के लिए उनके निवास जुटने लगे हैं। पहले चर्चा थी कि उन्हें बिहार भेजा जा सकता है, इससे उनके करीबी उत्साहित नहीं थे। मगर झारखण्ड का राज्यपाल बनाए जाने से समर्थक गदगद हैं। इसकी एक वजह ये भी है कि झारखंड, छत्तीसगढ़ की तरह खनिज-संपदा से भरपूर है, और वहां कारोबार की काफी संभावनाएं भी हैं। हालांकि झारखंड में झामुमो गठबंधन की सरकार है। और यह कहना कठिन है कि संवैधानिक पद पर आसीन बैस अपने से जुड़े लोगों की कुछ मदद कर पाएंगे। फिर भी बैस के नजदीक आने से समर्थक खुश हैं।
कोरोना से राजधानी में कितनी मौतें?
देशभर में कोरोनावायरस से कितनी मौतें हुई है इस बारे में अलग-अलग दावे किए जाते हैं। राज्य सरकारों पर आरोप है कि वह मौतों के आंकड़ों को छिपा रही है। ऐसा देश-विदेश की कई सूचना एकत्र करने वाली एजेंसियां भी कह रही है। बीबीसी न्यूज़ सर्विस की रिपोर्ट विश्वसनीय मानी जाती है। हाल ही में की गई पड़ताल के बाद न्यूज़ सर्विस ने दावा किया है कि हजारों ऐसी मौतें हुई हैं जिनकी गिनती नहीं की गई। इसके लिए 8 राज्यों के जिन 12 शहरों से आंकड़े उन्होंने जुटाये हैं, एक शहर रायपुर भी है। रायपुर में जब सरकारी आंकड़ा 516 बताया गया तब बीबीसी की ओर से किए गए सर्वे में कहा गया कि 340 और मौतें हुई हैं जिनका रिकॉर्ड कहीं दर्ज नहीं है। यह केवल रायपुर की बात है, पूरे छत्तीसगढ़ में ऐसा अंतर हो सकता है। बीबीसी के मुताबिक कोरोना की मौत कई राज्यों ने सिर्फ उन्हीं मामलों में दर्ज की जिन्हें कोई दूसरी बीमारी नहीं थी। जिन्हें कोरोना के अलावा दूसरी बीमारी थी, दूसरी बीमारी के खाते में दर्ज कर दी गई। आमतौर पर जितनी मौतें दर्ज की गई है, कहीं कहीं तो 4 गुना ज्यादा मौतें हैं। यूपी और बिहार में मौतों के आंकड़े कम बताने की खबरें तो पहले ही आ चुकी है, अब छत्तीसगढ़ भी इसी संदेह से गुजर रहा है। कोरोना से होने वाली मौतों का सर्टिफिकेट नहीं दिया जाना तो एक अलग समस्या है। विशेषज्ञ कहते हैं कि यदि मौतें छुपाई गई तो तीसरी लहर के नियंत्रण की रणनीति कारगर नहीं हो पाएगी।
वेतन चाहिये तो खिलाओ बकरा-भात
स्कूल शिक्षा सबसे भ्रष्ट समझे जाने वाले विभागों में से एक है। यहां काम करने वाले स्टाफ की भी संख्या बाकी सभी विभागों से ज्यादा है, क्योंकि गांव गांव में स्कूल हैं। मध्यान्ह भोजन है, फर्नीचर, स्कूल ड्रेस की खरीदी है लैब है, खेल है, ट्रेनिंग है। और भी रास्ते हैं जैसे, एक अधिकारी कोई न कोई कारण बताकर किसी भी शिक्षक को नोटिस जारी कर देगा फिर उस नोटिस पर क्या कार्रवाई की जाएगी यह टेबल के नीचे से मिलने वाली रकम से तय होती है। मगर बलौदा बाजार जिले के बया गांव की जो घटना सामने आई है उसने तो हदें पार कर दी। एक नवविवाहिता शिक्षिका का वेतन बीते 8 माह से रोक रखा गया है। वजह यह सामने आई कि शादी के बाद उसने अपना सरनेम नहीं बदला। इस रुकावट को उसने प्रक्रिया पूरी करके दूर कर ली। फिर भी वेतन जारी नहीं किया जा रहा है। महिला ने यूनियन के नेताओं से फरियाद लगाई है और बताया है कि वेतन मांगने पर ऑफिस का बाबू उसे जान से मारने की धमकी देता है शराब पीकर बकरा-भात खिलाने की मांग करता है। प्राचार्य उनका वेतन बिल भी कोषालय में जमा नहीं कर रहे हैं। शिक्षक संघ के पदाधिकारियों ने इस मामले एक्शन लिया है और सोशल मीडिया के जरिए सीधे मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के ध्यान में बात लाई है। देखें शिक्षिका को राहत मिल पाती है।
यह टकराव की शुरुआत तो नहीं?
सरगुजा से प्रतिनिधित्व करने वाले स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने मुख्यमंत्री को लेमरू एलीफेंट प्रोजेक्ट को लेकर पत्र लिखा है। उन्होंने इस बात पर नाराजगी जताई है कि परियोजना क्षेत्र का दायरा घटाने को लेकर उनका नाम घसीटा जा रहा है। सिंहदेव कह रहे हैं कि पूर्व के प्रस्ताव पर उन्हें कोई आपत्ति नहीं, जिसमें लेमरू एलिफेंट रिजर्व को 1995 वर्ग किलोमीटर रखा गया है। फिर भी वन विभाग ने अपने पत्राचार में लिखा है कि मैंने क्षेत्र कम करने की कोई सिफारिश की है। सिंहदेव के अलावा वन विभाग ने अपने पत्राचार में सरगुजा, कोरिया, कोरबा, जशपुर के कई विधायकों के भी नाम हैं।
यदि सिंहदेव की यह बात सच है तो यह हैरान करता है कि किसी मंत्री का नाम उनसे पूछे बिना कोई अधिकारी कैसे ले रहा है। अब तो बाकी विधायकों से भी पूछा गया होगा, इस पर संदेह हो रहा है। हालांकि उनकी ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। मामला सरगुजा का है इसलिए सिंहदेव की राय मायने रखती है। लेकिन लोग यह भी कयास अब लगा रहे हैं कि यह सत्ता संघर्ष के लिये टकराव की नई शुरुआत हो सकती है। और कह रहे हैं, इसके जिम्मेदार होंगे अडानी।