राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : जीपी सिंह -1
12-Jul-2021 5:21 PM
छत्तीसगढ़ की धड़कन और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : जीपी सिंह -1

जीपी सिंह -1

निलंबित एडीजी जीपी सिंह की डायरी का भूत सरकार, और विपक्ष के ताकतवर लोगों की पीठ पर सवार हो रहा है। और जब विपक्ष के एक बड़े नेता ने डायरी के पन्नों को सार्वजनिक करने की मांग की, तो उन्हीं की पार्टी के लोगों के बीच आपस में खुसुर-फुसुर शुरू हो गई, क्योंकि जीपी सिंह बिलासपुर में भी रहे हैं, और चर्चा है कि डायरी के पन्नों में विपक्ष के इस नेता पर भी काफी कुछ लिखा है। यही नहीं, भाजपा के एक बड़े नेता को मौनी बाबा की संज्ञा दी है। कुछ के तो प्रापर्टी डिटेल्स भी हैं। जाहिर है कि पन्ने सार्वजनिक हुए, तो विपक्ष के नेताओं को बुरा लग सकता है।

जीपी सिंह -2

जीपी सिंह के घर से बरामद डायरी के पन्नों की हस्तलिपि विशेषज्ञों से जांच कराई जा रही है। जिन्होंने भी पन्ना पलटा है, उसे पढक़र उनके होश फाख्ता हो गए हैं। डायरी में ऐसी-ऐसी बातें लिखी गई है जिसे जुबान में लाने से अफसर भी कतरा रहे हैं। पन्ने में तो पुलिस महकमे के एक बड़े साब के बारे में यह लिखा है, कि वे हर हफ्ते सुहागरात मनाते हैं।

डायरी के पन्नों में नेताओं से परे पिछली, और मौजूदा सरकार के ताकतवर अफसरों का विशेष तौर पर जिक्र है। उनको लेकर भी काफी गपशप है। पन्ने में ज्यादातर अफसरों, और नेताओं का कोड नाम दिया गया है। पिछली सरकार के दो ताकतवर अफसरों को तो अल्फा, और टकला नाम से संबोधित कर उनके खिलाफ काफी भला बुरा लिखा गया है। डायरी के पन्नों की लिखावट की सत्यता की भले ही अभी पुष्टि नहीं हुई है, लेकिन जिन अफसरों के नाम डायरी में हैं, वे सभी जीपी से खफा हैं।

जीपी सिंह -3

छापेमारी के बाद जीपी सिंह की करोड़ों की अघोषित संपत्ति का पता चला है। सरकारों ने उन्हें यह संपत्ति जुटाने का खूब मौका दिया। मसलन, रायपुर रेंज के आईजी रहते हुए पीएचक्यू में खरीदी का इंचार्ज भी बनाया गया था। छत्तीसगढ़, और संभवत: मध्यप्रदेश में भी इस तरह की कोई दूसरी मिसाल नहीं है। पिछली सरकार में तो कैबिनेट की बैठक में एक ताकतवर मंत्री ने जीपी सिंह का नाम लेकर काफी कुछ कहा था। उन्होंने मुख्यमंत्री रमन सिंह से कह दिया था कि वो आईजी को कोई काम नहीं कहते हैं क्योंकि जो काम उन्हें कहा जाता है उसका ठीक उल्टा करते हैं, पिछले एक-डेढ़ साल से आईजी से बात करना भी बंद कर दिया है। मंत्री यही नहीं रूके, उन्होंने यहां तक कह दिया था कि आईजी की मंथली इनकम 5 करोड़ रूपए है। इन सबके बावजूद जीपी सिंह की हैसियत नहीं घटी। सरकार बदलने के बाद कुछ दिन लूपलाइन रहने के बाद फिर पॉवरफुल हो गए, और उन्हें एसीबी-ईओडब्ल्यू का मुखिया बना दिया गया।

जशपुर में पहले उद्योग के लिये घमासान...

जशपुर एक ऐसा जिला है, जहां भूगर्भ में हीरा, लोहा, बाक्साइट का भंडार होने के बावजूद अब तक एक भी बड़ा उद्योग नहीं लगा है। स्वर्गीय दिलीप सिंह जूदेव के समय से ही जिले को उद्योगों से बचाने के पीछे तर्क रहा है कि इससे यहां का पर्यावरण, प्राकृतिक सौंदर्य, जल-जंगल और जमीन का दोहन होने लगेगा और बाहरी लोगों के आने से जिले की विशेष पहचान खत्म हो जाएगी। यहां पर रेलवे लाइन लाने का विरोध भी इसी वजह से किया जाता रहा है। जिला आज तक रेल सुविधाओं से वंचित है, जबकि यहां से रांची की दूरी केवल 4 घंटे की है। अब जिले के टांगर गांव में प्लांट स्थापित करने के लिए 4 अगस्त को जन सुनवाई रखी गई है। भाजपा नेता नंद कुमार साय, गणेश राम भगत और स्वर्गीय जूदेव के पुत्र प्रबल प्रताप ने उद्योग लगाने का विरोध करते हुए कहा है कि-टाइगर अभी जिंदा है और वे पिता के सपनों को टूटने नहीं देंगे।

पहले तो जशपुर को उद्योगों से बचाए रखने के मामले में सबकी एक राय थी। मगर अब पीढ़ी बदल रही हैं एक तबका ऐसा भी है जो चाहता है कि अब उद्योगों को नहीं रोकना चाहिए। जशपुर में ह्यूमन ट्रैफिकिंग एक बड़ी समस्या है। उद्योग का समर्थन करने वाले लोगों का कहना है कि यहां उद्योग आने से रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और बेरोजगारी के कारण होने वाली मानव तस्करी और पलायन रुकेगा। उद्योगों का विरोध करने वाले भाजपा नेताओं की ग्रामीणों के साथ झड़प भी हुई है। भगत के खिलाफ खूब नारेबाजी हुई और उन्हें सभा नहीं करने दी गई। अब 4 अगस्त को होने वाली जन-सुनवाई से ही मालूम होगा कि क्या यहां उद्योग लगने की शुरूआत हो सकेगी?

सरगुजा में रोहिंग्या शरणार्थी!

अंबिकापुर के महामाया पहाड़ में अवैध कब्जे का मुद्दा इऩ दिनों गरमाया हुआ है। इसकी शिकायतें मिलने पर प्रशासन ने जांच भी मिठाई हुई है लेकिन अब यह सुनने में आ रहा है की कई रोहिंग्या शरणार्थियों ने भी यहां कब्जा जमाया हुआ है। उनके आने की कोई सूचना प्रशासन के पास नहीं है। केंद्र की भाजपा सरकार ने म्यांमार से विस्थापित रोहिंग्या के देश में प्रवेश पर रोक लगा रखी है। यहां उनके शरण लेने, वह भी अवैध कब्जे की जमीन पर, की जानकारी प्रशासन को नहीं मिल सकी यह आश्चर्यजनक स्थिति है। क्षेत्र के विधायक और स्वास्थ्य मंत्री टी एस सिंहदेव ने जिला प्रशासन को पत्र लिखकर इसकी जांच करने और तुरंत कार्रवाई करने के लिए कहा है।

सवाल यह भी है कि देश की सीमाओं से उनका प्रवेश कैसे हुआ और सरगुजा तक यह कैसे पहुंचे पहुंच गए। यदि आना हो चुका है तो इन्हें क्या वापिस भेजा जायेगा? यहां कोई डिटेंशन सेंटर तो है नहीं। प्रशासन कानून के मुताबिक काम करेगा,  या फिर मानवीय आधार पर कोई रियायत बरती जाएगी?

उत्तर प्रदेश के जनसंख्या कानून पर एक  पुराना किस्सा याद आया

एक नेताजी लोकसभा में परिवार नियोजन और जनसंख्या नियंत्रण पर लंबा चौड़ा भाषण दे रहे थे।

लालू जी को यह बात नागवार गुजरी उन्होंने सदन में उठकर कहा  ''one who cannot play the game cannot make rules''

अभी भी यही स्थिति है...

बस्तर पर कोरोना का हमला

इस समय बीजापुर और सुकमा जैसे आदिवासी बाहुल्य जिलों में सर्वाधिक कोरोना संक्रमण के मामलों का होना हैरान करता है। बीजापुर में समय 550 से अधिक तथा सुकमा में करीब 500 सक्रिय मरीज हैं। बस्तर संभाग के अलावा बिलासपुर संभाग में भी कोरोना के मामले बढ़ रहे हैं। पिछले 1 हफ्ते से प्राय: सभी जिलों में कोरोना के नए मामले बढ़ते जा रहे हैं। मौजूदा संख्या चूंकि अप्रैल-मई के प्रतिदिन आने वाले हजारों केस  के मुकाबले कम है, इसलिए यह आंकड़ा लोगों को चौंका नहीं रहा है।  यह स्थिति तब ज्यादा चिंतनीय समझ आती है जब दीखता है कि वैक्सीन के कमी के कारण टीकाकरण का काम रोकना पड़ा है।

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