राजपथ - जनपथ
एवज में नियमित आमदनी मिले तो?
बस्तर से लेकर सरगुजा जशपुर तक जहां भी नये प्लांट लगाने की बात आती है, इन इलाकों में बसे आदिवासी भयभीत हो जाते हैं। ऐसा शायद ही कभी हुआ हो कि कोई प्लांट इन इलाकों में बिना विरोध के लगा हो। बस्तर के सुलगने की एक वजह यह भी है। सरगुजा में भी एलिफेंट रिजर्व क्षेत्र को घटाने की कोशिशों का विरोध हो रहा है। जशपुर में टांगर गांव में होने वाली जन सुनवाई का भी एक बड़ा वर्ग विरोध कर रहा है। जब ऐसे प्रसंग बार-बार सामने आ रहे हों तो पुनर्वास की नीति पर जरूरी हो जाता है जरूरी बदलाव हो। जंगल और पानी के दोहन के अलावा सबसे बड़ी चिंता इस इलाके में रहने वालों की आजीविका पर खतरा मंडराता है। जमीन अधिग्रहण अधिनियम में मुआवजा तय करने का अधिकार राज्य सरकारों को दे रखा है। पर यहां की पुनर्वास नीति 2005 की ही है, जिसमें जमीन के बदले जमीन देने और साथ ही मुआवजा देने की बात तो है पर बेदखल होने वाले परिवारों को नौकरी मिलने की गारंटी नहीं है। ऐसे वक्त में राज्यपाल अनुसूईया उइके ने एक पत्र सीएम बघेल को लिखा है कि जिन परिवारों को बेदखल किया जाये उन्हें कम्पनियों का शेयर होल्डर बनाया जाये। उन्हें सरकार को मिलने वाली रॉयल्टी का भी एक हिस्सा दिया जाये। यही नहीं उनकी इस नियमित आमदनी को मूल्य सूचकांक से भी जोड़ा जाये ताकि उनकी आय भी महंगाई के साथ बढ़े। सैद्धांतिक रूप से इससे कोई असहमत कैसे हो सकता है। यह कोई नई मांग, नया विचार भी नहीं है।
प्राय: देखा गया है कि एकमुश्त मिलने वाले मुआवजे का लोग सही इस्तेमाल नहीं कर पाते। मैदानी इलाका हो या आदिवासी इलाका। वे खूब सारा पैसा एक साथ मिल जाने के बावजूद इसका ठीक तरह से प्रबंधन नहीं कर पाते, क्योंकि यह वे जानते ही नहीं। बल्कि दलालों, ठगों की नजर इस रकम पर रहती है। बहुत से लोगों की यह हालत हो चुकी है कि जमीन तो उन्होंने खो ही दी, एवज में मिली रकम भी नहीं बची। एकमुश्त मुआवजा देकर जवाबदेही से बचना कोई सही तरीका नहीं है। अब जब रोजगार और नौकरी के अवसर घट रहे हैं। ऐसा होने से शायद विरोध कुछ कम हो, सरकार के प्रति भरोसा बढ़े।
कंप्यूटर से किसानी तक
लॉकडाउन और कोरोना महामारी के कारण स्कूलों में पढ़ाई बंद हुई तो कई शिक्षकों ने तयशुदा पाठ्यक्रम से हटकर नए प्रयोग किए हैं। बेमेतरा जिले के खंडसरा गांव के सरकारी स्कूल में कृषि पर व्यावसायिक पाठ्यक्रम शुरू किया गया है और बच्चों को इसका व्यावहारिक प्रशिक्षण दिया जा रहा है। शिक्षक इन्हें बता रहे हैं कि श्री विधि से खेती करने में बीज, पानी, खाद की जरूरत कम पड़ती है और कुल मिलाकर लागत कम आती है। अब यह बच्चे जो ज्यादातर किसान परिवारों से ही जुड़े हैं वह इसका प्रयोग अपने खेतों में भी करने के लिये अपने माता-पिता को कह सकते हैं। फिलहाल ये ग्राम चमारी के महामाया मंदिर परिसर की जमीन पर श्री पद्धति से रोपाई करना सीख रहे हैं।
अभी से पत्ते क्यों खोलें?
जिन लोगों ने सोच रखा था कि अगला विधानसभा चुनाव भी भूपेश वर्सेस डॉ. रमन होने जा रहा है उन्हें प्रदेश भाजपा की प्रभारी महासचिव के बयान से थोड़ी हैरानी हो सकती है। उन्होंने कहा कि पार्टी किसी को मुख्यमंत्री के दावेदार के रूप में प्रोजेक्ट नहीं करेगी, संगठन के आधार पर चुनाव लड़ा जायेगा। वैसे भी, जब ढाई साल बाद चुनाव होने हैं तो अभी से घोषणा कर अपनी ही पार्टी के बाकी दावेदारों को नाराज क्यों किया जाये? वे तो घर बैठ जायेंगे। पिछले चुनाव में जो ऐतिहासिक हार भाजपा को मिली उसके चलते तो उसी नाम पर, ऐसा जोखिम बिल्कुल नहीं उठाया जा सकता। यह बात अलग है कि सन् 2018 का चुनाव डॉ. रमन सिंह के चेहरे के नाम पर ही लड़ा गया था और कांग्रेस की इस बात को लेकर हंसी उड़ाई जाती है कि उनके पास मुख्यमंत्री का कोई एक चेहरा नहीं है, 6-6 दावेदार हैं। अब सन् 2023 के चुनाव में स्थिति ठीक उलट होने के आसार दिखाई दे रहे हैं।