राजपथ - जनपथ

छत्तीसगढ़ की धडक़न और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : खेतों में उतर जाना एसडीएम का
26-Jul-2021 7:12 PM
छत्तीसगढ़ की धडक़न और हलचल पर दैनिक कॉलम : राजपथ-जनपथ : खेतों में उतर जाना एसडीएम का

खेतों में उतर जाना एसडीएम का
पथरिया विकासखंड के ग्राम सुल्फा में रोपाई कर रहे किसान उस समय उत्साहित हो गये जब संयुक्त कलेक्टर और एसडीएम प्रिया गोयल उनका हाथ बंटाने के लिये खेत में उतर गई। उन्होंने खुद थरहा लेकर रोपा लगाना शुरू कर दिया। वे जैविक खेती मिशन योजना का काम देखने के लिये ब्लॉक के गावों का दौरा कर रही थीं, इसी दौरान किसानों से बात करने के दौरान धान की रोपाई चल रही खेत में उतर गईं। इसके बाद उन्होंने एकत्र हुए किसानों को जैविक खेती का महत्व और इस सम्बन्ध में सरकार की योजना की जानकारी दी।
चार दिन पहले बिहारपुर में मनेन्द्रगढ़ की एसडीएम ने एक कार्यक्रम में अपनी अप्रिय बोली से शिक्षकों को नाराज कर दिया था। शिक्षक उनके खिलाफ आंदोलन पर भी उतर गये हैं। शिक्षकों ने तो जाति प्रमाण पत्र की दिक्कत दूर करने के लिये यहां शिविर लगाया था, जिसकी सराहना होनी थी। शिक्षक कहते हैं, वे हतोत्साहित हुए। इधर एक एसडीएम यह भी हैं जिन्होंने अपनी ड्यूटी करते हुए किसानों का उत्साह बढ़ाया। हर तरह के लोग, हर जगह होते हैं, सरकारी सेवाओं में भी।  

कोई रोहिंग्या नहीं मिला पहाड़ में...
बीते कुछ समय से रोहिंग्या समुदाय के लोगों को अम्बिकापुर में पनाह दिये जाने का मामला उछला है। रोहिंग्या जिनमें ज्यादातर मुसलमान हैं, उन्हें म्यांमार (बर्मा), 1982 में पास किये गये एक कानून के मुताबिक अपना नागरिक नहीं मानता। इसके बाद उन्हें सभी सरकारी सेवाओं और नागरिक अधिकारों से वंचित कर दिया गया है। हालांकि इनके पूर्वज किसी जमाने में बौद्ध राजा के नौकर हुआ करते थे। पर वहां अल्पसंख्यक हैं। थाइलैंड, पाकिस्तान, बांग्लादेश सहित कई देशों में इन्होंने प्रताडऩा से तंग आकर शरण ली है। भारत भी इन देशों में शामिल हैं। भारत में करीब 40 हजार से अधिक रोहिंग्या होने का अनुमान है। ज्यादातर लोग जम्मू में हैं। सरकार की नीति इन्हें शरण देने की नहीं है। उनके म्यांमार और बांग्लादेश वापसी के लिये सरकार प्रयासरत है। ऐसे में अगर छत्तीसगढ़ में किसी जगह पर रोहिंग्या होने का मामला सामने आता है तो यह सनसनी पैदा करता है और राजनीतिक, चुनावी मुद्दा भी बनता है। अम्बिकापुर में कुछ भाजपा नेताओं ने हाल ही में आरोप लगाया था कि कांग्रेस सरकार महामाया पहाड़ में अवैध रूप से पहुंचे रोहिंग्या लोगों को बसा रही है। प्रशासन कोई कार्रवाई क्यों नहीं कर रहा है।
कांग्रेस की छात्र इकाई ने इन आरोपों के बाद रोहिंग्या मुसलमानों की तलाशी का अभियान चलाया है, जो निश्चित ही आरोपों का जवाब देने के लिये है। उन्होंने महामाया पहाड़, जहां उनके बसे होने की बात की जाती है, के झगरपुर, भगवानदास गली, मदबगीचा, रसानगर आदि इलाकों का तीन दिन तक पैदल भ्रमण किया और वहां रहने वालों के दस्तावेजों की जांच की। एसएसयूआई ने निष्कर्ष निकाला है कि यहां पर कोई भी रोहिंग्या शरणार्थी नहीं रहता।
ऐसा करके कांग्रेस की छात्र इकाई ने प्रशासन की एक तरह से मदद ही की है। वैसे यह तलाशी प्रशासन को ही करनी चाहिये। भाजपा के पास जो सबूत या जानकारी हैं उन्हें भी सामने लाया जाना चाहिये ताकि पता चल सके कि उनके आरोपों में कितनी सच्चाई है।

रोका-छेका अभियान की नई व्याख्या
सरकारी भर्ती विज्ञापन नहीं निकलने से युवाओं में निराशा है। जिन नौकरियों के लिये आवेदन लिये, परीक्षा ली गई-उनमें नियुक्ति का आदेश भी जारी नहीं होने की समस्या का सामना वे कर रहे हैं। ऐसे बेरोजगार युवाओं ने सोशल मीडिया पर रोका-छेका अभियान की व्याख्या अपने तरीके से की है। इसमें व्यंग्य भी है, दर्द भी।  

पेगासस की दहशत

पेगासस नाम के जासूसी सॉफ्टवेयर की खबरें अब पूरे हिंदुस्तान को इस बात का भरोसा दिला रही है कि सिर्फ उन्हीं लोगों के टेलीफोन जासूसी से परे हैं, जो महत्वहीन हैं, और जिनसे सरकारों को कोई खतरा नहीं लगता है। इसके अलावा बाकी तमाम लोगों के फोन में सरकार की निगरानी में हैं, और फोन के रास्ते उनकी निजी जिंदगी भी खुली हुई है।

अभी छत्तीसगढ़ के व्हाट्सएप नंबरों को लेकर नक्सलियों की तरफ से एक ग्रुप बनाया गया जिसमें छत्तीसगढ़ के सैकड़ों पत्रकारों को जोड़ा गया। ग्रुप का नाम ही लाल सलाम था और शुरू होते ही उसमें नक्सलियों के प्रेस नोट और उनका प्रोपेगेंडा मटेरियल पोस्ट होने लगा. एक-एक करके सारे लोग ग्रुप छोडऩे लगे। इसके बाद एक व्यक्ति ने ग्रुप बनाने वाले लोगों के नाम यह अपील पोस्ट की कि सरकार की निगरानी सब लोगों पर है, इसलिए इस ग्रुप से अलग कर दें।

हालांकि आज के माहौल की दहशत ऐसी है कि नामी-गिरामी पत्रकारों ने भी आनन-फानन यह ग्रुप छोड़ दिया, जो कि नक्सलियों ने अपने प्रेस नोट या प्रचार सामग्री को फैलाने के लिए बनाया है। मीडिया के लोगों पर ऐसे प्रेस नोट पाने को लेकर कोई जुर्म कायम नहीं हो सकता क्योंकि नक्सली तो कोई न कोई नंबर हासिल करके उस पर अपने प्रेस नोट भेजते ही हैं, लेकिन दहशत कुछ ऐसी है कि कौन सरकार से पंगा ले, यह सोचकर लोग तुरंत यह ग्रुप छोड़ दे रहे हैं। ([email protected])

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